उत्तराखण्ड
खूब हल्ला मचने के बाद उत्तराखंड में पुष्कर सिंह धामी का सख्त भू-कानून, खोदा पहाड़, निकली चुहिया
खूब हल्ला मचने के बाद उत्तराखंड में पुष्कर सिंह धामी का सख्त भू-कानून, खोदा पहाड़, निकली चुहिया
जगमोहन रौतेला, हल्द्वानी। उत्तराखंड में जमीनों के अंधाधुंध खरीद फरोख्त पर लगाम लगाने और यहॉ के मूल निवासियों के हक हकूकों को बनाए रखने के लिए पिछले 4 साल से सख्त भू कानून का हल्ला खूब मचा हुआ था। प्रदेश में सख्त भू कानून लागू करने की मांग को लेकर राज्य के कई शहरों और छोटे कस्बों में प्रदर्शन हुए। उत्तराखण्ड क्रान्ति दल ने गत 24 अक्टूबर 2024 को देहरादून में विशाल ताण्डव रैली निकाली। यह सब प्रदेश सरकार पर दबाव बनाने की रणनीति के तहत किया जा रहा था ताकि एक बेहतर भू कानून उत्तराखंड में लागू किया जा सके। तीन-चार साल तक सख्त भू कानून लागू करने का खूब हल्ला मचाने और पूर्व मुख्य सचिव सुभाष कुमार की अध्यक्षता में कमेटी बनाने और उसके बाद उस कमेटी की रिपोर्ट को लागू करवाने के बारे में मुख्य सचिव राधा रतूड़ी की अध्यक्षता में कमेटी बनाई गई। इतना सब करने के बाद विधानसभा के बजट सत्र में प्रदेश सरकार ने भू कानून के नए संशोधन का जो मसौदा सदन में रखा और गत 21 फरवरी 2025 को वह सदन में पारित भी हो गया। उसे अगर गौर से देखें तो यह पूरी तरह से खोदा पहाड़, निकली चुहिया वाले कहावत को ही चरितार्थ करता है और कुछ नहीं। इसमें कहीं भी जमीनों की अंधाधुंध खरीद फरोख्त पर रोक नहीं लगने वाली है। अपितु यह एक तरीके से यहां के लोगों के साथ प्रदेश सरकार द्वारा की गई धोखाधड़ी ही साबित होने वाली है। प्रदेश मंत्रिमंडल की गत 19 फरवरी 2025 को विधानसभा में हुई बैठक में बहुचर्चित भू कानून संशोधन विधेयक को मंजूरी दी गई। जिसमें हरिद्वार और उधमसिंह नगर को छोड़कर बाकी 11 जिलों में उत्तराखंड से बाहर के लोग कृषि और उद्यान के लिए जमीन नहीं खरीद पाएंगे इसका प्रावधान किया गया। अभी तक उत्तराखंड से बाहर के लोग बिना मंजूरी के 250 वर्ग मीटर और मंजूरी लेकर सारे 12.50 एकड़ तक कृषि भूमिए खेती और उद्यान के लिए खरीद सकते थे। उत्तराखंड से बाहर के लोगों को अभी तक जिलाधिकारी स्तर से जमीन खरीदने की आसानी से मंजूरी मिल रही थी। इस व्यवस्था को मंत्रिमंडल ने पूरी तरह समाप्त कर दिया। अब जिलाधिकारी स्तर से मंजूरी देने के प्रावधान को ही समाप्त कर दिया गया है। अब कृषि व उद्यान को छोड़कर अन्य किसी विशेष प्रयोजन के लिए किसी को जमीन खरीदनी होगी तो मंजूरी जिला अधिकारी नहीं देंगे, बल्कि प्रस्ताव शासन को भेजा जाएगा। शासन के स्तर पर ही उस पर निर्णय होगा। मंत्रिमंडल के इस निर्णय के बाद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि नया भू कानून लागू होने के बाद पहाड़ पर सक्रिय लैंड बैंक माफिया पर शिकंजा कसेगा। कृषि व उद्यान के नाम पर जमीनें को खरीद कर लैंड बैंक बनाने वालों को इससे झटका लगेगा और पहाड़ पर जमीनों का बेहतर प्रबंधन होगा साथ ही विकास योजनाओं के लिए जमीन उपलब्ध हो सकेगी। प्रदेश मंत्रिमंडल की मंजूरी के बाद सदन में 20 फरवरी 2025 को पेश किए गए उत्तराखंड उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश और भूमि व्यवस्था अधिनियम 1950 संशोधन विधेयक 2025 के अनुसार नगर निगम, नगर पंचायत, नगर पालिका, छावनी परिषद क्षेत्र की सीमा के अंतर्गत आने वाले और समय.समय पर नगर निकायों में सम्मिलित किया जा सकने वाले क्षेत्रों को छोड़कर यह संपूर्ण उत्तराखंड में लागू होगा। संशोधित भू कानून के अनुसार अब नगर निकाय सीमा से बाहर भी दूसरे राज्यों के लोगों के लिए 250 वर्ग मीटर जमीन खरीदने के मानक को और सख्त किया गया है। अब दूसरे राज्य के लोगों को जमीन खरीदने के लिए सब रजिस्ट्रार के समक्ष बाकायदा कानूनी शपथ पत्र देकर बताना होगा कि उनके पास उत्तराखंड में कहीं जमीन नहीं है। नई व्यवस्था में एक परिवार एक बार ही उत्तराखंड में 250 वर्ग मीटर जमीन खरीद सकेगा। शपथ पत्र झूठा निकलने पर सरकार जमीन जब्त कर लेगी। उत्तराखंड में नगर निकाय की सीमा से बाहर दूसरे राज्य के लोगों के लिए सिर्फ 250 वर्ग मीटर जमीन खरीदने का नियम है। नया कानून के लागू होने पर निकाय सीमा में यदि कृषि भूमि खरीदी है तो उसका प्रयोग सिर्फ और सिर्फ खेती के लिए ही करना होगा। अभी तक उत्तराखंड में नगर निकाय सीमा के भीतर बाहरी लोगों की जमीन खरीद की छूट है। भले ही जमीन आवासीय हो या कृषि भूमि। नया भू कानून लागू होने के बाद जमीन खरीदते समय दूसरे राज्य के खरीदार को अपनी मंशा और जमीन के उपयोग की भी स्पष्ट जानकारी देनी होगी। अगर किसी भी तरह से भूमि का दूसरा इस्तेमाल किया जाता है तो प्रशासन स्तर से जमीन को सीधे सरकार के कब्जे में लेने की कार्रवाई की जाएगी। विधानसभा के बजट सत्र में 21 फरवरी 2025 को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने विधेयक 2025 पर चर्चा के दौरान कहा कि यह संशोधन भू सुधारों में अंत नहीं अपितु एक शुरुआत है। राज्य सरकार ने जन भावनाओं के अनुरूप भू सुधारों की नींव रखी है। भू प्रबंधन एवं भू सुधार पर आगे भी अनवरत रूप से कार्य किया जाएगा। सबसे आश्चर्यजनक यह है कि भू कानून में किया गया कथित संशोधन व्यापक बहस के बिना ही सदन में पारित हो गया। इस कानून को लेकर सदन के अंदर भाजपा के विधायकों की चुप्पी तो समझ में आती है। भाजपा के किसी विधायक के अंदर यह हिम्मत नहीं थी कि वह अपनी ही सरकार द्वारा लाए गए संशोधनों के कुछ प्रावधानों पर सवाल उठाती, पर कांग्रेस के विधायकों ने भी इसकी खामियों पर बहुत कुछ सदन के अंदर नहीं बोला। सदन में विधेयक के पारित हो जाने के बाद कांग्रेस विधायक अब बयानबाजी कर रहे हैं। जहां उनको इस विधेयक के कुछ प्रावधानों पर खुलकर सवाल उठाने चाहिए थे, वहां उन्होंने चुप्पी साध का रखी। सरकार का दावा है कि बाहर के लोग 250 वर्ग मीटर से अधिक जमीन नहीं खरीद पाएंगे और एक परिवार में से एक ही सदस्य यह भूखंड खरीद सकेगा। परिवार के अन्य सदस्यों बेटा, पत्नी, बहू आदि भूखंड नहीं खरीद पाएंगे। इसके लिए भूखंड खरीदने वाले का आधार कार्ड जमीन के कागजों के साथ लिंक किया जाएगा ताकि अगर वह दूसरी जगह पर भूखंड खरीदना है तो इसकी जानकारी मिल सके। यहां पर सवाल यह है कि भूखंड खरीदने पर परिवार के सभी सदस्यों के आधार कार्ड तो लिंक नहीं होंगे। आधार कार्ड तो केवल उसी व्यक्ति का लिंक होगा, जिसके नाम से भूखंड खरीदा जाएगा। ऐसी स्थिति में परिवार का दूसरा सदस्य दूसरी जगह पर भूखंड खरीदेगा तो इस पर रोक कैसे लगेगी। इसी संशोधित भू कानून में एक लचर व्यवस्था यह भी है कि सरकार यह दावा कर रही है कि हरिद्वार और ऊधमसिंह नगर को छोड़कर अन्य 11 जिलों में कोई भी बाहर का व्यक्ति किसी भी तरह से जमीन नहीं खरीद पाएगा। वहीं दूसरी ओर 19 से अधिक ऐसे काम हैं, जिनके लिए 30 साल की लीज पर जमीन देने की बात कही गई है। इस व्यवस्था में भी सरकार का दावा है कि कृषि और उद्यान से संबंधित जमीनों का उपयोग नहीं किया जाएगा। तब यह जमीन आएगी कहां से, वह जमीन कौन सी होगी, जो इन विभिन्न कार्यों के लिए 30 साल की लीज पर दी जाएगी। इसी तरह की लचर कानूनी व्यवस्थाओं से यह पूरी तरह स्पष्ट है कि सरकार की मंशा राज्य की जमीनों को खुर्द बुर्द होने से बचाने की नहीं, अपितु सख्त भू कानून के नाम पर कानून, कानून खेलने की है और कुछ नहीं। भू कानून में संशोधन पर भाकपा माले के उत्तराखण्ड राज्य सचिव इन्द्रेश मैखुरी कहते हैं कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की सरकार द्वारा उत्तराखंड उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश अधिनियम 1950 में संशोधन के लिए लाया गया विधेयक, जिसे आम बोलचाल की भाषा में भू कानून कहा जा रहा है, एक ऐसा कानून है, जो जमीनों की लूट को रोकता नहीं है, बल्कि लूट के रास्ते को घुमावदार बनाता है। इसके साथ ही इस विधेयक की धारा 156 में किए गए संशोधन के तहत पूरे प्रदेश में खेती, बागवानी से लेकर वैकल्पिक ऊर्जा परियोजनाओं तक कई सारे उद्देश्यों के लिए भूमि 30 साल तक की लीज पर ली जा सकती है। इसका आशय यह है कि पूरे प्रदेश की जमीनें ही भू भक्षियों के निशाने पर होंगी। अब जब शीघ्र ही विधेयक राज्यपाल की मंजूरी के बाद कानून बन ही जाएगा तो विचारणीय है कि इस कानून से क्या सच में जमीनों की लूट पर रोक लग जाएगी क्या सच में सरकार की व नेताओं की ऐसी कोई मंशा भी है या नहीं, इसके लिये तथ्यों की गहराई में जाकर समझने की जरूरत है कि इस कानून में जो कि राज्य में जमीनों की लूट को रोकने के लिए लाया गया है, उसमें इसके लिए क्या प्राविधान किये गये है, जो लूट की छूट चल रही थी, उस पर रोक लगाने के लिए क्या कुछ किया गया है। क्या ऐसे में यह आशंका व्यक्त करना सही न होगा कि किसी ग्रामीण क्षेत्र में क्योंकि जब वहां भू कानून लगा होगा, तब तो वहां की जमीन की कीमत नगर क्षेत्र की तुलना में बहुत सस्ती रहेगी, इसलिए पहले सरकार में बैठे नेता. आला अफसर और भू माफिया उन गांव की जमीनों का सस्ते में सौदा कर लेंगे और फिर सांठ.गांठ से उस ग्रामीण क्षेत्र को नगर निकाय में मिला कर बड़ी.बड़ी मशीनों के मालिक बनकर बाद में जमीनों की सौदेबाजी करके उससे अरबों रुपये कमाएंगे। अगर गठजोड़ की मंशा ऐसी नहीं है तो फिर इस कथित सशक्त कानून में ऐसा प्राविधान क्यों किया गया, इससे तो यही लगता है कि सरकार जिस तरह से भू माफियाओं, पूंजीपतियों और भ्रष्टाचारियों को ही अब तक संरक्षण देती नजर आती रही है, वह आगे भी उनके हितों को ही संरक्षण देती रहेगी। काफल ट्री फेसबुक पेज से साभार
