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उत्तराखण्ड

25 वर्ष का कालखण्ड पहाड़ी इलाकों से पलायन राज्य के लिए एक बड़ा नासूर : यशपाल

सीएन, देहरादून। नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य ने कहा कि हर उत्तराखण्ड वासी के जीवन में 9 नवंबर का दिन एक अति विशिष्ट दिन है।इसी दिन देवभूमि उत्तराखंड को 27 वें राज्य के रूप में स्वीकृति मिली । पृृथक राज्य के रुप में घोषणा होने के बाद 9 नवंबर, 2000 का वह दृृष्य मन को हर्षित और उत्साहित करता है । उन्होंने कहा कि 25 वर्ष का कालखण्ड  किसी भी राज्य की दशा और दिशा को देखने के लिए एक बड़ा समय होता है। पृृथक राज्य की खुशियां मनाने के साथ-साथ अब आत्ममंथन का भी समय भी आ गया है। आज हम जब अपनी उपलब्धियों की चर्चा करंे तो इस यक्ष प्रश्न का जबाब भी हमें ही खोजना होगा कि जिस उत्तराखंड का सपना राज्य आंदोलनकारियों ने देखा था. क्या वह आज तक पूरा हो पाया है ? श्री आर्य ने कहा कि निसंदेह इन 25 सालों में हमने बहुत सारी उपलब्धियां अर्जित की हैं लेकिन कुछ क्षेत्र ऐसे भी रह गए हैं कि जिन्हें देखकर हम सभी के चेहरे पर कुछ चिंता के भाव आते हैं, कुछ निराशा झलकती है। “कोदा झंगोरा खाएँगे. उत्तराखंड बनाएँगे” के नारों के बीच बना यह राज्य आज उस मुहाने पर खड़ा है जहाँ कोदे, झंगोरे की खेती होना तक लगभग बंद हो गया है। .नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि राज्य आंदोलन के समय हम अपनी आर्थिकी का मुख्य आधार पर्यटन , उद्यान और जल विद्युत परियोजनाऐं को मानते थे। आज हम इन तीनों ही क्षेत्रों में लक्ष्य से बहुत दूर हैं। मैदानी कृषि में ठहराव व पर्वतीय कृषि और बागवानी में आई चिंताजनक गिरावट राज्य के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन रही है। असंतुलित विकास राज्य के सामने कई सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक व राजनैतिक समस्याओं को पैदा कर रहा है जो अत्यधिक चिंतनीय और कड़वा सत्य है। राज्य आंदोलनकारियों के सपने आज भी सपने ही हैं। राज्य की मूल अवधारणा के प्रश्न हमारे सामने आज भी वैसे ही खड़े है ।उन्होंने कहा कि आज राज्य की आर्थिक हालात किसी से छुपी नहीं है। कर्ज के बोझ से राज्य निरंतर दब रहा है। आज राज्य पर कर्जा 1 लाख 10 हजार करोड रुपये पार कर चुका है। उत्तराखंड में उत्पादकता लगातार घट रही है,  सरकार इस परेशानी का अभी तक स्थाई समाधान नहीं ढूंढ पाई है ,आज हर महीने सरकार को 200 से 300 करोड़ रुपये तक का ऋण बाजार से उठाना पड़ता है। नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि आय के संसाधन बढ़ाने की कोई चेष्टा नहीं हो रही है। 2016-2017 में हमारी राजस्व वृद्धि दर 19.50 प्रतिशत वार्षिक थी जो आज घटकर 11 प्रतिशत वार्षिक पर आ गई है। इसका मतलब है कि 2017 के बाद आय के संसाधन बढ़ाने की कोई चेष्टा नहीं हुई। 2014-2015 में जो प्रति व्यक्ति आय ₹71,000 वार्षिक थी वह 2016- 2017 में बढ़कर ₹1,73,000 प्रति व्यक्ति हो गई थी अब पिछले 6 वर्षों में 2 लाख के आस-पास ठहर सी गई है। श्री आर्य ने कहा कि मानव सूचकांक में उत्तराखण्ड की स्थिति चिंताजनक है।  आज भी जच्चा-बच्चा मृत्यु दर से लेकर सभी सूचकांक में उत्तराखण्ड राज्य राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर से कई नीचे है। यहां तक कि हंगर इंडेक्स में भी हमारी स्थिति चिंतनीय है। इसका अर्थ है लोक कल्याण और रोजगार के क्षेत्र में खर्च में गिरावट आई है। नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि पहाड़ी इलाकों से पलायन राज्य के लिए एक बड़ा नासूर बन चुका है। बीते दो दशकों में पलायन के कारण 1200 से अधिक पर्वतीय गांव वीरान याने ‘‘ घोस्ट विलेज ’’ बन चुके हैं। इन भुतहा गांवों की संख्या कनिरंतर बढ़ रही है। पृथक राज्य बनने के बाद तकरीबन 35 लाख लोग पलायन कर चुके हैं. पलायन आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक 55 लोग रोजगार के कारण, 15 शिक्षा के चलते और 10 लचर स्वास्थ्य सुविधा के कारण पहाड़ों से पलायन करने को मजबूर हुए हैं। पलायन रोकने के लिए राज्य के पास कोई ठोस रणनीति नहीं दिखाई दे रही है। उन्होंने कहा कि राज्य का युवा रोजगार की मांग को लेकर सड़कों पर उतरा हुआ है। अग्निवीर योजना सैन्य बाहुल्य प्रदेश उत्तराखंड के नौजवानों के लिए एक बड़ा धक्का सिद्ध हुई है। प्रदेश में रोजगार की पूरी व्यवस्था ठेकेदारों के अधीन है। उत्तराखंड में सरकारी सेवाएं ही रोजगार का सबसे बड़ा आधार रही । प्रदेश में 15 लाख पंजीकृत बेरोजगार हैं और लगभग इसी संख्या से ज्यादा अपंजीकृत बेरोजगार राज्य मे दर-दर रोजगार के लिए भटक रहा हैं। लगभग 1 लाख के करीब पद रिक्त हैं। परीक्षाओं को लेकर जो गड़बड़ियां सामने आई हैं उनसे राज्य के चयन सेवा आयोगों से राज्य के बेरोजगारों का भरोशा उठ सा गया है।श्री आर्य ने कहा कि स्वास्थ्य सुबिधाऐं लचर हैं पहाड़ के अस्पताल रिफरल सैंटर से अधिक नहीं हैं। राज्य के सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र तो छोड़िये जिला और उप जिला चिकित्सालयों में न तो विशेषज्ञ डाक्टर नियुक्त हैं और न ही चिकित्सीय उपकरण मौजूद हैं। नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि राज्य की राजधानी का प्रश्न उलझावपूर्ण बना हुआ है। सरकार ने गैरसैण को केवल ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित किया है लेकिन विधानसभा भवन अपनी विरानी के लिए आंसू बहा रहा है। ग्रीष्मकालीन राजधानी का शासनादेश धीरे-धीरे अपनी पूरी चमक खो चुका है। ऐसा नहीं है कि हमारे पास इन चुनौतियों का समाधान नहीं है, हमारे पास समाधान है। मगर एक समझपूर्ण, सुविचारित योजना और संकल्प शक्ति का अभाव दिखाई दे रहा है। उन्होंने कहा कि राज्य के 90 प्रतिशत माध्यमिक स्कूल बिना प्रधानाचार्यों और प्रधानाध्यापकों के संचालित हो रहे हैं। जो 10 प्रतिशत हैं वे भी मैदानी जिलों में हैं। पर्वतीय जिलों मे ंतो हर जिले में एक- दो ही प्रधानाचार्य नियुक्त हैं बिना मुखिया के ये स्कूल कैसे चल रहे हैं कोई भी समझ सकता है। श्री आर्य ने कहा कि उत्तराखंड लगातार प्राकृतिक आपदाओं का सामना कर रहा है। राज्य में प्रमुख सड़क और अन्य निर्माण परियोजनाएँ चल रही हैं जिनके पारिस्थितिक प्रभावों को बार-बार नजरअंदाज किया गया है, जिससे पहाड़ों में बाढ़, भूस्खलन, भूकंप, जंगल की आग, बादल फटने या हिमस्खलन जैसी प्राकृतिक आपदाएँ आ रही हैं।  नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि सरकार द्वारा उत्तराखंड (उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश अधिनियम 1950) में संशोधन के लिए लाया गया विधेयक, जिस आम बोलचाल की भाष में भू-कानून कहा जा रहा है, और सरकार पूरे प्रदेश में उपलब्धि के रूप में जश्न मना चुकी है एक ऐसा कानून है, जो जमीनों की लूट को रोकता नहीं है, बल्कि लूट के रास्ते को घुमावदार बनाता है। उन्होंने कहा कि आज भी राज्य की जनसंख्या का बड़ा हिस्सा भूमिहीन है। उनके पास इतनी भी भूमि नहीं है कि, यदि उन्हें भवन बनाने के लिए सरकारी योजना में कुछ  मिलता है तो वे उस भवन बनाने के लिए स्वयं की जमीन तक उपलब्ध नहीं करा पाते हैं। नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि आज राज्य निर्माण की 25 वीं वर्षगांठ के अवसर पर हम सब को मिलकर अपने प्राकृतिक संसाधनों , अपनी भव्य सांस्कृतिक विरासत , अद्भुत मानव शक्ति और क्षमता के बल पर इन सब चुनौतियों का सामना करने का संकल्प लेना चाहिए।

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