उत्तराखण्ड
मकर संक्रान्ति पर विशेष : खाले कौवा खाले, संक्रान्ति दिन को भात, कौवा खाले
पहाड़ों में कौओं को पितर मान कर मकर संक्रान्ति को खिलाये जाते है घुघुते
हिमानी बोहरा, नैनीताल। कुमाऊं के अल्मोड़ा, चम्पावत, नैनीताल तथा उधमसिंहनगर जनपदीय क्षेत्रों में मकर संक्रान्ति को (अर्थात माघ मास के एक गते को) घुघुते बनाये जाते हैं और अगली सुबह (दो गते माघ को) को कौवे को दिये जाते हैं। यह पितरों को अर्पण माना जाता है। वहीं रामगंगा पार के पिथौरागढ़ और बागेश्वर अंचल में मकर संक्रान्ति की पूर्व संध्या (पौष मास के अंतिम दिन अर्थात मसान्त) को ही घुघुते बनाये जाते हैं और मकर संक्रान्ति अर्थात माघ एक गते को कौवे को खिलाये जाते हैं। वैसे तो पहाडों में कौए को प्रिय माना जाता है और तड़के उसका स्वर घर के आस पास सुनायी देना शुभ माना जाता है पर इस दिन कौओं की विशेष पूछ रहती है। छोटे-छोटे बच्चे भी तड़के उठ, स्नान करके तैयार हो जाते हैं और घुघुतों की माला पहन कर कौवे को आवाज लगाते हैं।
काले कौवा काले, घुघुती माला खाले,
तू मेरो बौड़ लिजाले, मैं सुनूक घ्वड़ दि जाले
माघ में पूसै की रोटी, खाले कौवा खाले
संक्रान्ति दिन को भात, प्यारे कौवा खाले
ऊनै रौ यो दिन यो त्यार, कौवा तू आये हर बार
भैबड़ियों कै दिये प्यार, हंसी-खेली रौ परिवार
उड़ी उड़ी ऐजा कौवा, मीठा पूवा खाले
इसके बाद शुरू होता है रिश्तेदारों तथा मित्रगणों के घर-घर घुघूते बांटने का सिलसिला और यह कई दिनों तक चलता रहता है। जो सद्स्य घर से दूर रहते हैं उनके लिए घुघूते सम्भाल कर रख दिये जाते हैं। जिससे जब वह घर पर आयें तो उनको खाने के लिए दिये जा सकें। जो लोग अपने घर से दूर रहते हैं उनको भी घुघूते खाने का इन्तजार रहता है। आजकल घुघूते प्रियजनों तक पार्सल और कोरियर के माध्यम से भी भेजे जाने लगे हैं। वैसे घुघूतिया के दिन घुघूते बनाने के बाद इनको आवश्यकतानुसार बसन्त पंचमी तक बनाया जा सकता है, पर इस दिन इनको हर घर में बनाया जाना आवश्यक होता है। विश्व में पशु पक्षियों से सम्बंधित कई त्योहार मनाये जाते हैं पर कौओं को विशेष व्यंजन खिलाने का यह अनोखा त्यौहार उत्तराखण्ड के कुमाऊं अंचल के अलावा शायद कहीं नहीं मनाया जाता है। वैसे कौए की चतुराई के बारे में कहावत है कि ओलगिया मनुष्यों में नौआ और पक्षियों में कौआ अर्थात मानवों में नाई और पक्षियों में कौआ सबसे बुद्धिमान होते हैं। कौए की चतुराई के बारे में कई वैज्ञानिक शोध भी हो चुके हैं जिनसे भी इस बात की पुष्टि हुई है कि कौए का दिमाग अन्य पशु-पक्षियों से अधिक विकसित होता है।
राजा को जब कौवे ने घुघुतिया मंत्री के षडयंत्र की जानकारी दी
नैनीताल। घुघुतिया त्यार से सम्बधित एक कथा प्रचलित है। कहा जाता है कि कुमाऊ में एक राजा था जिसके मंत्री का नाम घुघुतिया था। घुघुतिया एक कुशल योद्धा होने के साथ साथ बड़ा ही महत्वाकांक्षी भी था। धीरे धीरे उसकी महत्वाकांक्षा इतनी बढ़ गयी कि वह खुद राजा बनने की सोचने लगा। एक बार जब वह अपने किसी साथी के साथ राजा को मारकर खुद राजा बनने का षड्यन्त्र रच रहा था तो एक कौए ने उनकी बातें सुन ली। कौव्वे को जैसे ही राजा की हत्या की साजिश की जानकारी हुई, उसने तुरन्त आकर राजा को इस बारे में सूचित कर दिया। राजा को पहले तो विश्वास नहीं हुआ परन्तु उसने घुगुतिया को गिरफ्तार कर कारागार में डाल दिया। जिसके बाद जांच में बात सही पाये जाने पर राजा द्वारा मंत्री घुघुतिया को मृत्युदंड मिला। कौए की इस चतुराई और राजा के प्रति राजभक्ति से राजा बड़ा प्रभावित हुआ और उसने राज्य भर में घोषणा करवा दी कि मकर संक्रान्ति के दिन सभी राज्यवासी कौव्वों को पकवान बना कर खिलाएँगे। तभी से कौओं के प्रति सौहार्द प्रकट करने वाले इस अनोखे त्यौहार को मनाने की प्रथा की शुरूआत मानी जाती है।