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उत्तराखंड का हाल : सोपस्टोन खनन में खुली सरकारी छूट पर हाईकोर्ट ने मारा थप्पड़, निजी हाथों में मेडिकल कॉलेज

उत्तराखंड का हाल : सोपस्टोन खनन में खुली सरकारी छूट पर हाईकोर्ट ने मारा थप्पड़, निजी हाथों में मेडिकल कॉलेज
सीएन, नैनीताल।
अदालत के आदेशों को दरकिनार करते हुए अधिकारियों की मिलीभगत से सोपस्टोन का खनन जारी है और अदालती आदेश की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। वहीं सरकारी पैसे से बने मेडिकल कॉलेज को निजी हाथों में देने का विरोध अब सड़कों पर आ रहा है। उत्तराखंड की ज्यादातर नदियां पहले से ही रेत खनन का दंश झेल रही हैं और अब सोपस्टोन के अंधाधुंध खनन ने तूल पकड़ लिया है। सोपस्टोन का यह खनन सरकारी अधिकारियों की शह पर चल रहा है और यह मिलीभगत कैसी है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अधिकारियों ने न केवल सोपस्टोन का खनन करने वालों द्वारा पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने की अनदेखी की बल्कि नैनीताल हाई कोर्ट द्वारा दिए गए जांच के आदेश को भी जानबूझकर बाधित करने का प्रयास किया। राज्य सरकार जिस तरह प्राकृतिक संसाधनों के खुलेआम दोहन को बढ़ावा दे रही है, उसे देखते हुए यह कोई हैरानी की बात नहीं। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने खुद मांग की है कि पूरे साल जल खनन की अनुमति दी जाए जबकि पर्यावरण मंत्रालय ने इसे प्रतिबंधित कर रखा है। गौरतलब है कि शराब और खनन राज्य के राजस्व के दो प्रमुख स्रोत हैं। सोपस्टोन के पाउडर का इस्तेमाल सौंदर्य प्रसाधन, चीनी मिट्टी की चीजें, पेंट बनाने में होता है। इसके साथ ही यह निर्माण सामग्री के तौर पर भी उपयोग में लाया जाता है। सोपस्टोन की भारी मांग के कारण बागेश्वर में दोहराया जा रहा है। इस इलाके में एक सौ साठ खदानें चल रही थीं और हर खदान में कई उत्खनन मशीनें लगी हुई थीं। सितंबर 2024 में स्थानीय लोगों को चिंता हुई क्योंकि एक दर्जन गांवों और कृषि क्षेत्रों में 200 से अधिक घरों में दरारें आ गई और कई ढलानें धंस गईं। ग्रामीणों ने नैनीताल हाईकोर्ट में अपील की जिसने दिसंबर 2024 में दो कोर्ट कमिश्नर की नियुक्ति का आदेश दिया ताकि वे मौके पर जाकर नुकसान की रिपोर्ट दाखिल करें। कमिश्नरों ने बताया कि जिला अधिकारियों ने उन्हें भूमि का विवरण देने से इनकार कर दिया और ग्रामीणों को धमकी दी कि अगर उन्होंने कोर्ट कमिश्नरों से बात करने की जुर्रत की तो उन्हें इसका खामियाजा भुगतना होगा। और तो और कमिश्नरों को अपने इस नतीजे को दबाने के लिए लाखों रुपये की रिश्वत की पेशकश की गई कि गांव में न रहने वाले 43 लोगों के नाम से जाली दस्तावेज बनवाए गए जिसमें उन लोगों ने खनन के लिए स्टाम्प पेपर पर अपनी सहमति दी थी। कमिश्नरों ने किसी भी तरह की सौदेबाजी से इनकार कर दिया और जमीनी हालत की एक ईमानदार मूल्यांकन रिपोर्ट तैयार की जिसके कारण हाईकोर्ट ने सोपस्टोन के  खनन पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने का आदेश दिया। साथ ही कोर्ट ने राज्य में व्याप्त पूर्ण अराजकता पर भी कड़ी टिप्पणी की। हालांकि कोर्ट के आदेश के बावजूद खनन बेरोकटोक जारी रहा जिससे अदालत को जिला खनन अधिकारी को निलंबित करने का आदेश देना पड़ा। पुलिस को इलाके में तैनात सभी मशीनों को जब्त करने का आदेश दिया गया और मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक 134 उत्खनन मशीनें जब्त की गई हैं। खनन का काम 1972 से चल रहा है लेकिन 2010 से भारी मशीनरी का इस्तेमाल मौजूदा संकट का कारण बन गया। गौरतलब है कि देहरादून की पहाड़ियों में चूना पत्थर की खदानों ने ढलानों को पूरी तरह से खत्म कर दिया है। सत्तर के दशक के शुरू में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आदेश दिया था कि सभी चूना पत्थर की खदानें बंद कर दी जाएं और पहाड़ियों को फिर से हरा.भरा किया जाए। हरिद्वार के राजकीय मेडिकल कॉलेज जीएमसी के छात्र राज्य सरकार के कॉलेज के निजीकरण और इसका प्रशासन शारदा एजुकेशनल सोसाइटी नोएडा को सौंपने के फैसले के खिलाफ अनिश्चितकालीन हड़ताल पर हैं। शारदा एजुकेशनल सोसाइटी शारदा विश्वविद्यालय चलाती है। जीएमसी का उद्घाटन प्रधानमंत्री मोदी ने दिसंबर 2021 में किया था लेकिन पहले बैच में दाखिला इसी शैक्षणिक सत्र से शुरू हुआ। 800 एकड़ बेशकीमती जमीन पर फैले इस कॉलेज को स्थापित करने में सरकार को कई सौ करोड़ रुपये खर्च करने पड़े। शारदा एजुकेशनल सोसाइटी ने कथित तौर पर राज्य सरकार को पीपीपी पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप रेवेन्यू.शेयरिंग मॉडल पर इसे चलाने के लिए 500 करोड़ रुपये का भुगतान किया है। छात्र इस बात को लेकर गुस्से में हैं कि अधिकारियों ने कॉलेज के निजीकरण के बारे में उन्हें अंधेरे में क्यों रखाघ् निजीकरण का नतीजा यह होगा कि जहां कॉलेज की फीस बढ़ जाएगीए वहीं इसका स्टेटस भी घट जाएगा। सरकारी कॉलेज कम फीस पर विषयों की एक विस्तृत श्रृंखला बेहतर फैकल्टी और पास होने के बाद बेहतर नौकरी के मौके उपलब्ध कराने के लिए जाने जाते हैं। जीएमसी के छात्र बताते हैं कि ऐसे कॉलेजों में दाखिले के लिए छात्रों की भीड़ उमड़ पड़ती है क्योंकि ये बहुत कम फीस पर चिकित्सा शिक्षा प्रदान करते हैं। हर साल लाखों छात्र सरकारी मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश के लिए राष्ट्रीय स्तर की प्रवेश परीक्षा नीट में शामिल होते हैं। यह देखते हुए कि भारत में 400 से भी कम सरकारी मेडिकल कॉलेज हैं उनमें से किसी में भी प्रवेश प्रतिष्ठा का विषय बन जाता है खासकर तब जब केवल कुछ हजार छात्र ही इसमें सफल हो पाते हैं। एक तो निजी मेडिकल कॉलेज ज्यादा फीस लेते हैं और फिर दाखिले के लिए काबिलियत को ताक पर रख देते हैं। जिसने पैसे दिए उसे ले लिया। इसी कारण गरीब परिवारों के छात्र सरकारी कॉलेजों को पसंद करते हैं। इसका एक कारण यह भी होता है कि सरकारी कॉलेजों में वंचित वर्ग के छात्रों के लिए कुछ सीटें आरक्षित हैं जबकि निजी कॉलेज इनके लिए प्रवेश मुश्किल बना देते हैं। 10 जनवरी को जीएमसी के छात्रों के एक समूह ने कॉलेज बस को किराये पर लिया ताकि देहरादून जाकर मुख्यमंत्री धामी से मिलें। इन्हीं प्रदर्शनकारी छात्रों में से एक ने कहा यहां दाखिला पाने के लिए हमने जो कड़ी मेहनत की थी अब उसकी कोई कीमत नहीं रह गई। चिकित्सा शिक्षा निदेशक डॉ. आशुतोष सयाना कहते हैं कि निजीकरण से एमबीबीएस पाठ्यक्रम में प्रवेश ले चुके 100 छात्रों की फीस में कोई वृद्धि नहीं होगी। सयाना ने उन्हें यह भी आश्वासन दिया है कि उन्हें दी जाने वाली डिग्री और प्रमाणपत्र पर मूल सरकारी संस्थान का नाम अंकित होगा। लेकिन उनकी बातों पर छात्रों को यकीन नहीं और वे परिसर के अंदर धरना दे रहे हैं। उनकी मांग है कि ये फैसले वापस हों। कांग्रेस के वरिष्ठ उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना ने सवाल किया कि 800 एकड़ बेशकीमती जमीन थाली में सजाकर एक निजी संस्थान को क्यों दी गई, उन्होंने कहा अधिकारियों का यह दावा कि उन्हें प्रशिक्षित फैकल्टी नहीं मिल पा रही है, सरासर गलत है, खासकर तब जब राज्य में सरकारी अस्पतालों को पीपीपी आधार पर निजी पार्टियों को सौंपने के पहले के प्रयास पूरी तरह विफल साबित हुए थे। सवाल उठता है सरकार एक के बाद एक मेडिकल कॉलेज की घोषणा ही क्यों कर रही है, जब वह इनमें से किसी को भी चलाने की हालत में नहीं है। ऋषिकेश के एक रिजॉर्ट में काम करने वाली अंकिता भंडारी की तीन साल पहले रेप के बाद हत्या कर दी गई थी। रिजॉर्ट भाजपा-संघ के बड़े नेता विनोद आर्य का था और उनके बेटे पुलिकत आर्य इसमें बुरी तरह फंसे थे। हालांकि सारे सबूतों के आधार पर पुलकित के इस अपराध में लिप्त होने के संकेतों के बाद भी दोषी बच निकलने में सफल रहे और अब यह केस अपनी मौत मरता दिख रहा है। अब भाजपा.आरएसएस के एक और ताकतवर नेता प्रेम चंद अग्रवाल अंकिता की हत्या वाली जगह के पास ही एक पर्यटक रिजॉर्ट बनवा रहे हैं। उनके बेटे पीयूष अग्रवाल पर रिजॉर्ट तक सड़क बनाने के लिए 26 संरक्षित पेड़ों को काटने का मामला दर्ज किया गया है। क्षेत्र के ग्रामीणों ने वन विभाग के पास शिकायत की जिसके बाद विभाग को मजबूरन उसके खिलाफ मामला दर्ज करना पड़ा। बताया जाता है कि पीयूष ने वन अधिकारियों से कहा कि पेड़ों को काटना कोई बड़ी बात नहीं है और वह सभी नुकसान की भरपाई को तैयार हैं। राज्य सरकार फिलहाल मामले की जांच कर रही है।

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