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मार्च का महीना, नई आशा और उमंगों का महीना है। मगर 2016 में हमारे चारों तरफ सभी कुछ ध्वस्त किया जा रहा था : हरीश रावत

सीएन, देहरादून। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने आठ साल पूर्व उनकी सरकार गिराने के षड्यंत्र को याद करते हुए सोशल मीडिया में लिखा है कि मार्च का महीना, नई आशा और उमंगों का महीना है। मगर 2016 में हमारे चारों तरफ सभी कुछ ध्वस्त किया जा रहा था, मूल्य-मान्यताएं, परंपराएं, शिष्टाचार, संवैधानिक बंधन और सीमाएं सब ध्वस्त  हो रही थी। दल-बदल, धन-बल, शक्ति बल और प्रलोभन बल के साथ जहां लोकतांत्रिक मूल्यों को राज्य में नष्ट करने की शुरुआत की गई, वहीं गवर्नर नाम की संवैधानिक संस्था भी गदा लिए हुए अपनी ही सरकार पर प्रहार करने लगी और जो अवशेष बचा हुआ था उसको ध्वस्तीकरण करने में जुट गई। ई.डी., सी.बी.आई. का डर दिखाकर ब्यूरोक्रेसी के एक बड़े हिस्से को अपनी ही सरकार से, जिसके साथ वह संवैधानिक नियम और कानून से बंधे हुए थे उनको होस्टाइल कर उन्हें बाध्य किया जा रहा था कि राज्य की निर्वाचित सरकार के खिलाफ वह साक्ष्य जुटाएं और तोड़-मरोड़ कर पेश करें।  आज भी एक निर्दलीय विधायक जो उस समय मंत्री थे उनसे पूछा जा सकता है कि किस प्रकार से एक वरिष्ठतम ब्यूरोक्रेट्स ने अपनी ही सरकार के खिलाफ बगावत करने के लिए उन्हें उकसाया और उन पर दबाव बनाया। इस सबके बावजूद भी उत्तराखंड की ब्यूरोक्रेसी में एक बहुत बड़े हिस्से ने पूरी निष्ठा और शक्ति के साथ अपना कर्तव्य का पालन किया और संकट काल में भी राज्य के विकास को धीमा नहीं पढ़ने दिया। जिस दिन मैं मुख्यमंत्री नहीं रहता था वह मेरी तरफ विनम्रता से पीठ फेर देते थे और जिस दिन मैं फिर मुख्यमंत्री बन जाता था, उस दिन वह पूरे लगाव और समर्पण के साथ मेरे और मेरी सरकार के निर्देशों का पालन करते थे। लगभग 4 महीने ऐसी लुका-छिपी चलती रही।  केंद्र सरकार हर हालत में हमारी सरकार के कार्य करने कि गति और लय को खंडित करना चाहती थी। मार्च के षड्यंत्र का उद्देश्य स्पष्ट था, तेजी से कार्य करती सरकार को पटरी से उतारना इसीलिए एक लंबे षड्यंत्र के साथ  दल-बदल, सरकार गिराने, राष्ट्रपति शासन आदि-आदि, बजट का अपहरण यह सब एक श्रृंखला प्रारंभ की गई।  एक-दो उदाहरणों जैसे उत्तराखंड में स्थापित हो रहे उद्योगों में स्थानीय उत्तराखंडियों को 70 प्रतिशत आरक्षण और गैर उत्तराखंडियों के भूमि खरीद पर रोक के अलावा राज्य निर्माण के पिछले 14 साल में कोई भी ऐसा बड़ा काम नहीं हुआ जिससे यह लगे कि राज्य, राज्य निर्माण की मूल भावना की दिशा की ओर बढ़ रहा है। वस्तुतः नवोदित राज्य शनै-शनै उत्तर प्रदेश की कार्बन कॉपी बनता जा रहा था। हमारी सरकार ने आपदा पुनर्वास और पुनर्निर्माण का काम रिकॉर्ड समय में डेढ़ साल के अंदर पूरा किया और राज्य के विकास को आवश्यक गति प्रदान की। यह काम मेरे मंत्रिमंडल के सहयोगियों, विधायकों, राजनीतिक कार्यकर्ताओं के साथ-साथ अधिकारियों, कर्मचारियों, सबके सामूहिक समर्पण से संभव हो पा रहा था। श्रीमती सोनिया गांधी जी का मार्गदर्शन और प्रेरणा, हमें हमेशा और अच्छा करने के लिए उत्साहित कर रही थी। हमारी सरकार ने वर्ष 2014 से निरंतर इस बात का प्रयास किया कि आपदा पुनर्वास और पुनर्निर्माण के साथ-साथ उत्तराखंड का विकास का एजेंडा राज्य आंदोलन की मूल भावना के साथ आगे बढ़े। हमने हिमाचल, सिक्किम और केरल आदि विकास मॉडलों का अध्ययन कर अपना एक उत्तराखंडी विकास मॉडल खड़ा किया और उस मॉडल के क्रियान्वयन पर संपूर्ण शक्ति लगाई। पूरी सरकार, सभी विभाग, एक लय और लक्ष्य के साथ काम कर रहे थे। 2016-17 का बजट जहां एक ओर इन विकास की आकांक्षाओं को आगे बढ़ने का माध्यम बनने जा रहा था। वहीं पर हम अगले 5 वर्षों के लिए भी एक विकास के मॉडल को राज्य के लोगों के सम्मुख बजट के माध्यम से रख रहे थे। ऐसे समय में केंद्र सरकार और दलबदलुओं के षड्यंत्र से आगे बढ़ती उत्तराखंडी विकास की गाड़ी पटरी से उतार दी गई। जबरा मारे रोने न दे की तर्ज पर समस्त प्रचार साधनों का प्रयोग कर हमें ही खलनायक सिद्ध किया जाने लगा। 

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