उत्तराखण्ड
भवाली के बिरले लोग……एक थी जनरल व्हीलर के खानदान से ताल्लुक रखने वाली ब्लोसम आंटी
सीएन, भवाली। नैनीताल के निकट भवाली के अजब गजब लोगों में एक व्यक्तित्व था ब्लौसम आण्टी का। ब्लौसम जनरल व्हीलर के खानदान से तालुक रखती थी। जब से हमने होश सम्भाला हमने उनको बाजार में घूमते देखा और लोगों से पैसे माँगते देखा। भवाली में बाहर से आने वाले लोगों को वो मुख्य रूप से टार्गेट किया करती थी। मैं जब मिठाई की दुकान पर बैठता था तो जो भी ग्राहक मिठाई खरीदने आता वो उनसे “बाबूजी एक पैसा दे दो” अपना पैट वाक्य बोलती और हाथ आगे बढ़ाती। पैसे का मतलब चवन्नी, अठन्नी, या एक रूपया तक होता। कुछ लोग टूटे पैसे नहीं हैं कह कर टाल जाते तो कुछ लोग कुछ दे भी देते। इसी तरह वो अपना गुजर बसर करती थी। उस समय रोडवेज डिपो काफी व्यस्त रहता था। वहाँ से लगने वाली सभी गाड़ियों के पास हम उनको देखा करते थे। कभी कभार मल्ली बजार में नारायण निवास की सीढ़ियों पर बैठ कर सिक्के गिनते और हिसाब किताब लगाते भी दिख जाती थी। बीड़ी पीने की बहुत शौकीन थी। कोई पैसा ना भी दे तो एक बीड़ी ही पिला दो कह कर कुछ न कुछ काम निकाल लेती थी। इनकी दो बहने थी ब्लांची और मौली। ब्लासम बहुत साधारण कपड़े – सलवार कमीज और उपर से स्वैटर – पहना करती थी तो ब्लांची आण्टी साड़ी पहन कर टिप-टौप रहा करती। गहनता से जानने पर मुझे मालूम चला की ब्लासम अपने आप को ही नहीं वरन ब्लांची आण्टी का भी भरण पोषण करती थी। कभी कभी जब दोनो बहिने साथ मे रहती और मैं मम्मी या बुआ लोगों के साथ बाजार जाता तो ब्लोसम के पैसे मांगने पर ब्लांची आण्टी उन्हे डांठ देती कि क्यो इनसे पैसे माँग रही हो। तीसरी बहन मौली सम्पन्न थी और काठगोदाम में हौस्टिल चलाया करती थी जिसमें बच्चे पेड गैस्ट की तरह रहा करते थे। यह तो नियति का ही खेल था कि इन दो बहिनों की यह दशा हुई। मुझे मालूम चला था कि ब्लोसम व ब्लांची आण्टी कौनवेंट एजूकेटेड थी। विदेशी पर्यटकों से अंग्रेजी में बात कर पैसे मांगती थी। मैं कभी ब्लोसम आण्टी को चिढ़ाया करता था कि मुझे कुछ पैसे दे दो और उनके हाथ से छीनने की कोशिश करता तो वो नाराज होकर कहती, तेरे पापा से कह दूंगी। ब्लोसम आण्टी को गाने का शौक था और बहुत सुरीली थी। कभी कभी लोग उनसे गाने की फरमाईश कर लेते और अगर मूड अच्छा हो तो वो “पंछी बावरा…चाँद से प्रीत लगाये” गाना गाकर सुनाती थी। चूँकि ये दोनों बहने मेजर जनरल व्हीलर से संबंधित थे तो ये लोग दुगई एस्टेट में मिस्टर बीनलैंड के कॉटेज के पास बनी एक हट में रहते थे। व्यक्तिगत रूप से मैं सुश्री ब्लैंच के साथ अच्छी तरह से जुड़ा हुआ था क्योंकि वह मेरी दादी और बाद में मम्मी से मिलने हमारे घर पर आया जाया थीं। एक बार ब्लांची आण्टी को पैरेलिसिस का अटैक भी पड़ गया था जिससे उनके होठ व गाल कुछ विकृत हो गये थे और वो कमजोर पड़ गयी थी। भवाली व आसपास के क्षेत्र में उस समय शायद ही कोई होगा जो ब्लोसम को नहीं जानता होगा। ब्लोसम की वाक्पटुता और तौर-तरीकों से स्पष्ट हो जाता था कि उन्होंने बेहतर समय देखा और जीया था। दुख की बात है कि उन्हें जीवन के दूसरे पहलू से सामना करना पड़ा और एक कष्टमय जीवन देखना पड़ा। संतोष की बात है कि भवाली के लोगो का प्यार दोनो बहनों को उनके अंतिम क्षणों तक मिलता रहा। ब्लोसम भवाली के रंगमंच पर एक किरदार की तरह आयी और चली गयी। दुख सुख, अमीरी गरीबी, सर्दी गर्मी बरसात का उन पर कोई असर नहीं पड़ा। उन्होंने बहुत सादगी से भवाली वालों के साथ घुल मिलकर अपना समया काटा और स्वर्गलोक को गमन किया। वो हमारी यादों में सदैव बनी रहेंगी। “हम जानते हैं, कि जो कोई परमेश्वर से उत्पन्न हुआ है, वह पाप नहीं करता; पर जो परमेश्वर से उत्पन्न हुआ, उसे वह बचाए रखता है।“ (यूहन्ना 5:18)
राकेश बेलवाल के फेसबुक से फोटो आभार- मोहन पढालनी
