उत्तराखण्ड
क्या अब विधान सभा परिसर भराड़ीसैंण का सन्नाटा टूट पाएगा
भराड़ीसैंण का विधान सभा परिसर भी नये माननीयों की दस्तक का इंतजार
सीएन, भराड़ीसैंण। उत्तराखंड की विधान सभा के लिए माननीयों का निर्वाचन हो गया है तो गैरसैंण (भराड़ीसैंण) विधान सभा परिसर भी माननीयों की ओर टकटकी लगाए बैठा है। गैरसैंण के भराड़ीसैंण में बने विधान सभा भवन में पूरी तरह सन्नाटा पसरा हुआ है। अब जबकि राज्य की विधान सभा के लिए विधायकों का निर्वाचन हो गया है। भाजपा की नई सरकार के गठन का मार्ग भी प्रशस्त हो गया है तो भराड़ीसैंण का विधान सभा परिसर भी माननीयों की दस्तक का इंतजार कर रहा है। इस बीच मुख्यमंत्री और मंत्रिमंडल का चयन कर नई सरकार भी अस्तित्व में आनी है। इस सबके बीच भराड़ीसैंण भी नए माननीयों की ओर से टकटकी लगाए बैठा है। दरअसल पिछले साल पहली मार्च से 8 मार्च तक उत्तराखंड विधान सभा का बजट सत्र गैरसैंण अथवा भराड़ीसैंण में ही संचालित हुआ था। सत्र के दौरान ही भाजपा की त्रिवेंद्र सरकार की यकायक विदाई होने के चलते भराड़ीसैंण इस सियासी घटना का गवाह बना था। हालांकि नए मुख्यमंत्री के रूप में तीरथ सिंह रावत ने देहरादून में ही शपथ ली थी। फिर भी भराड़ीसैंण के इतिहास में मुखिया की विदाई की यह घटना सियासी गलियारों में चर्चा का विषय बनी थी। इसी सत्र के दौरान नंदप्रयाग-घाट डेढ़ लेन सड़क निर्माण के आंदोलनकारी विधान सभा का घेराव करने गए थे और तब उन पर जमकर लाठी चार्ज हुआ था। इसी तरह सत्र के दौरान ही गैरसैंण कमिश्नरी की घोषणा हुई थी। इसके चलते तूफान खड़ा हो गया और निर्धारित समय से पहले ही सत्र का पटाक्षेप कर दिया गया। इसके बाद शीतकाल में भराड़ीसैंण सत्र का संचालन ही नहीं हो पाया। हालांकि 2016 में कांग्रेस सरकार के जमाने में अंतिम शीतकालीन सत्र भराड़ीसैंण में ही हुआ था। अब जबकि भाजपा की ही नई सरकार के गठन का जनादेश आ गया है और कई नए और पुराने चेहरे माननीय बन गए हैं तो भराड़ीसैंण विधान सभा परिसर को भी अपने माननीयों का इंतजार है। हालांकि भाजपा की त्रिवेंद्र रावत सरकार ने ही गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित किया है किंतु अभी तक भी कोई सरकारी तामझाम यहां तैनात नहीं है। इस कारण साल भर में होने वाले गिने चुने दिनों के विधान सभा सत्र के बाद भराड़ीसैंण विधान सभा परिसर भी सन्नाटे की चादर ओढ़ लेता है। वैसे भी गैरसैंण स्थाई राजधानी का मसला नेपथ्य में पड़ा है। राज्य बनने के बाद गैरसैंण स्थाई राजधानी का मसला वैसे हर बार चुनावी चर्चाओं में सुमार होता रहा है। वर्ष 2002 से 2017 तक के विधान सभा चुनाव में गैरसैंण राजधानी मसला सियासी फिजाओं में तैरता रहा। हालांकि यह मसला तब वीरेंद्र नाथ दीक्षित आयोग के हवाले रहने से सिस्टम को बहाना मिलता रहा। 2007 के विधान सभा चुनाव में भी गैरसैंण मसला फिर चर्चाओं में सुमार रहा। 212 में गैरसैंण राजधानी मसले पर सियासत गर्म रही। 3 नवंबर 212 को गैरसैंण में पहली कैविनेट बैठक के आयोजन से गैरसैंण के दिन फिरने की उम्मीदें जगने लगी। 212 में ही कैविनेट ने गैरसैंण में विधान सभा भवन बनाने का निर्णय लिया। इसके बाद विधान सभा भवन निर्माण की कवायद शुरू हुई और सियासत भी जोर पकडऩे लगी। इसी के बीच अवस्थापना सुविधाओं के विकास के लिए गैरसैंण विकास परिषद का गठन भी कर दिया गया। गैरसैंण पर जोर पकड़ती सियासत के बीच 9 से 11 जून 214 तक तंबुओं में गैरसैंण मैदान में ही विधान सभा का सत्र चला। सत्र संचालित करने की कवायद अब तक जारी है। बीते 4 मार्च 220 को गैरसैंण विधान सभा सत्र में ही तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने यकायक गैरसैंण ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने की घोषणा कर डाली। ग्रीष्मकालीन राजधानी भी अस्तित्व में आ गई किंतु ग्रीष्मकालीन राजधानी के लिए तामझाम खड़ा नहीं किया गया। यहां राजधानी संचालित करने के लिए अधिकारियों तथा कर्मचारियों की तैनाती का मामला भी नेपथ्य में पड़ा है। मौजूदा चुनाव में उम्मीद थी कि गैरसैंण के सवाल पर इस बार मुद्दा जोर पकड़ेगा किंतु कोरोना महामारी के चलते जन सभाओ पर रोक के चलते यह मामला नेपथ्य में रहा। इसके चलते गैरसैंण के बिना इस बार चुनावी बहस सोशल मीडिया पर चलती रही और गैरसैंण का मुद्दा सियासी तौर पर हासिए पर पडा रहा। उत्तराखंड के मध्य में स्थित गढवाल तथा कुमाऊं की सांझी संस्कृति का संवाहक माने जाने वाले गैरसैंण पर यूं तो राज्य गठन से पूर्व ही सियासत शुरू हो गई थी। 30 वर्ष पूर्व उक्रांद ने गैरसैंण को चंद्रनगर नाम देकर राजधानी की घोषणा की। हालांकि आंदोलन के दौर में गैरसैंण स्थाई राजधानी को जन स्वीकार्यता मिली। कौशिक समिति ने भी गैरसैंण स्थाई राजधानी पर मुहर लगाई किंतु मामला आज भी स्थाई तथा ग्रीष्मकालीन राजधानी में झूल रहा है। हालांकि निवर्तमान मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी स्वतंत्रता दिवस तथा राज्य स्थापना दिवस पर झंडा फहराने भराड़ीसैंण पहुंचे किंतु पहले की तरह शीतकाल में अंतिम विधान सभा सत्र भराड़ीसैंण में आयोजित नहीं हो पाया। इस कारण पिछले साल 8 मार्च से भराड़ीसैंण विधान सभा परिसर में सन्नाटा पसरा है। एक तरह से भराड़ीसैंण विधान सभा परिसर भी नई सरकार तथा नए माननीयों को निहार रही है। माना जा रहा है कि नई सरकार के अस्तित्व में आते ही सियासी हलचल बढ़ेगी। यह हलचल सुदूर पहाड़ों में स्थित ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण तक पहुंचेगी। वैसे ग्रीष्मकालीन राजधानी बनने के बाद सरकारी तामझाम तैनात न होने के कारण भराड़ीसैंण महज विधान सभा सत्र के बहाने माननीयों का अब तक पिकनिक स्पॉट अथवा टूरिज्म रिजॉर्ट ही एक तरह से बना है। इससे पहाड़ी जन मानस पूरी तरह मायूस होकर रह गया है। इस सबके बावजूद भराड़ीसैंण विधान सभा परिसर अब नई सरकार और नए माननीयों की ओर टकटकी लगाए बैठा है। अब देखना यह है कि भराड़ीसैंण को लेकर नई सरकार किस तरह के कदमों के साथ आगे बढ़ती है। इससे ही भराड़ीसैंण का सन्नाटा टूट पाएगा।
चाणक्य मंत्र से साभार