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उत्तराखण्ड

आज किसने किताबों को खुला छोड़ दिया, हर वर्क पर तेरी तस्वीर नजर आती है

हेमंत बिष्ट। नेैनीताल। नगर अद्भुत प्रतिभाओं का कार्यस्थल रहा है। हालांकि श्रद्धेय विश्वंभर नाथ साह सखा जी, अल्मोड़ा में जन्मे थे लेकिन नैनीताल में अपने ननिहाल में रहकर वह नैनीताल के हो गए थे। बहुमुखी प्रतिभा के धनी श्री विश्वंभर नाथ साह सखा जी से कई बार मिलने का अवसर मिला । कई विषयों पर उनसे जानने का, सीखने का अवसर सभी को मिला और अब उनका इस संसार से विदा हो जाना नैनीताल नगर मैं एक निर्वात छोड़ गया है। नैनीताल एक ऐसा नगर है जहां साहित्य, संस्कृति ,कला ,खेल के लिए जब भी कोई प्रश्न मन में उठता था अपने शहर के उन विद्वान जनों को फोन मिलाइए और उनसे तत्काल उत्तर ले लीजिए इधर हाल के वर्षों में ऐसे कई विद्वत विदा हुए हैं जब भी कोई प्रश्न मन में आता है तो लगता है कि उनको फोन मिलाएं , अपनी जिज्ञासा को शांत करें लेकिन आदतन फोन हाथ में लेने पर याद आती है कि वह हमारे बीच नहीं हैं।
इघर अनायास ही हेम पंत जी (कुमाऊनी शब्द संपदा) का एक दिन फोन आता है कि सखा दाज्यू का इंटरव्यू होना है विचार विमर्श हुआ श्री राजीव लोचन साह जी प्रोफ़ेसर शेखर पाठक जी उनका इंटरव्यू कर सकते हैं।उनका इंटरव्यू हुआ उसके बाद हाल ही में एक और इंटरव्यू बारामासा में उन्होंने दिया। लेकिन अचानक आज खबर मिली कि सखा दाज्यू प्रस्थान कर गए हैं।
यादों में खो गया। मुझे याद आता है, मेरे विद्यालय के सहकर्मी चन्दर् पांडे जी की पुत्र बहू संस्कृति पर रिसर्च कर रही थी। पांडे जी ने कुछ पूछना चाहा। मुझे लगा कि मैं सखा जी से ही यह जानकारी इन्हें दिलाऊंगा तो पूर्ण न्याय होगा। उन्हें लेकर मैं उनके कैलाखान आवास पर गया । उन्होंने जानकारी दी। आज भी मैं कई मंचों पर उनका नाम लेकर अपने संचालन में उन जानकारियों को प्रयोग करता हूं तो लोग उनके विषय में जानकारी लेना चाहते हैं। और मैं उनकी पुस्तकों का विवरण देकर जिज्ञासुओं की मदद करना अपना कर्तव्य समझता हूँ।
प्रतिवर्ष युगमंच होली महोत्सव में उद्वघाटन सत्र पर इन सभी वरिष्ठ होलियारों का आना , उनकी तर्कसंगत बातें, होली का पारंपरिक इतिहास . . . . सुन सुनकर होली के प्रति हमारे मनों में अनुराग बढ़ता गया।
हाल ही के वर्षों में मां नैना देवी प्रांगण में प्रवेश कर ही रहा था कि प्रदीप साह जी ने कहा कि आपको राजीव दा भी ढूंढ रहे थे। मैंने प्रश्न किया ,क्यों ? तो उन्होंने बताया कि आजकल नवीन शर्मा जी एक आरती लिख रहे हैं आपको भी उसी दिशा में प्रयास करना है। मैंने भी बड़े उत्साह के साथ आरती लिखी। नवीन जी के शब्द भी समाहित थे और उनमें कई नए स्टेन्जा जोड़ दिए थे।डरता मरता मैं उस आरती को श्री राजीव दा के पास ले गया ।राजीव दा ने सखा दाज्यू को आरती दी। सखा दाज्यू ,डॉ विजय कृष्ण ,श्री शंकर राय चौधरी जी आदि ने संगीत पर काम किया। सखा जी ने कहा कि आरती बेशक उन्हीं मात्राओं में लिखी गई है जो पारंपरिक है लेकिन मैं चाहता हूं इस में कहीं ना कहीं पहाड़ भी आना चाहिए संभवतः राग पहाड़ी के भी कुछ सुर उसमें उन्होंने डालें और फिर कई लब्ध प्रीतिष्ठत गायकों ने जिनमें डंडरियाल जी,सोमा दी,रेखा दी,मृदुला कृष्ण जी,शर्मिष्ठा ,सीमा करगेती प्रवीण उप्रेती,गौरव बिष्ट ,आनन्द बिष्ट ने उस आरती को गाया।आरती रिलीज होने के दिन उन्होंने मुझे बुलाया दशावतार मंदिर में आरती का लोकार्पण हुआ लोकार्पण के बाद वह मुझे ऑफिस में लाए कहने लगे कि क्या आप सेटिस्फाइड हो ? इतने विराट व्यक्तित्व का ऐसा कहना ,मैं संकोच से भर गया लेकिन मन में गर्व था कि ऐसे संगीतकारों के साथ जुड़ने का मां नैना देवी की कृपा से मुझे अवसर मिला।
मुझे कुछ वर्ष पहले की बात का स्मरण हो आया। श्री अरविंदो आश्रम में एक संगीत संध्या का आयोजन था। कई दिग्गज गायकों ने इसमें प्रतिभाग किया ।मध्यांतर के बाद प्रख्यात सितार वादक श्रीदेवी राम जी की सुपुत्री पूर्णिमा ने गाया और उनके साथ एक यूरोपीय गायिका ने भी गाया । श्रद्धेय नलिन धोलकिया जी ने मुझसे कहा कि मध्यांतर के बाद सखा जी का भी गायन होना था ।उनका गायन हुआ ?
मैंने सखा जी से अनुरोध किया तो उन्होंने कहा, नहीं हममें समय की पाबंदी भी होनी चाहिए ।अब मेरा गायन कैंसिल कर दो जब विदेशी महिला हमारे शास्त्र पर इतना सुंदर गा रही हैं तो यह एक उपलब्धि की बात है ।थोड़ी देर के बाद फिर सर श्री नलिन जी ने पूछा क्या सखा जी का गायन होगा तो मैंने आदतन उनकी जिज्ञासा को शांत किया। गुरुजी आज सखा जी के स्थान पर सखी का गायन हो चुका है इसलिए उन्होंने अपना गाना स्थगित कर दिया है। मैंने परिहास तो कर दिया लेकिन मन ही मन ,मैं डरा हुआ था कि गुरुजी लोग पता नहीं कितने नाराज होंगे ?
कार्यक्रम के बाद श्रदेय नलिन जी ,सखा जी आदि मेरी ओर आ रहे थे। मैं डरा हुआ था लेकिन सखा जी ने कहा था,” आप में जो प्रेजेंस ऑफ माइंड है (प्रतिव्युत्पन्न मति) इसे संभाल के रखें, यह भी अपने आप में महत्वपूर्ण है।” मेरी सारी घबराहट दूर हो गयी। मैं प्रसन्न था कि ऐसे ऐसे लोगों ने मुझे अपना आशीर्वाद दिया है ।आज सखा जी के जाने के बाद किसी चलचित्र की भांति एक एक दृश्य मेरे सामने से गुजर रहा है मस्तिष्क में एक ही बात रह रह कर आ रही है कि आने वाले समय में हमारे मनों में उभरे अनुत्तरित प्रश्नों के उत्तर कौन देगा ? यह निर्वात मन में बिषाद भर रहा था । श्रदेय सखा जी को कोटि-कोटि नमन।

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