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यारसा गुम्बा उत्तराखंड के बुग्यालों में मिलने वाली सोने से ज्यादा कीमती जड़ी

यारसा गुम्बा उत्तराखंड के बुग्यालों में मिलने वाली सोने से ज्यादा कीमती जड़ी
सीएनए पिथौरागढ़।
यारसा गुम्बा यारसा गम्बू या कीड़ा जड़ी के नाम से जानी जाने वाली इस हिमालयी जड़ी.बूटी की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में 25.30 लाख रुपए किलो तक है। इसके बावजूद साल भर में यारसा गुम्बा का कारोबार अरबों का है। इसके चाहने वाले इसे प्राकृतिक यौनशक्तिवर्धक दवा मानते हैं। हिमालयन वियाग्रा मानी जाने वाली यारसा गम्बू कैंसर जैसे असाध्य रोगों के इलाज के लिए भी इस्तेमाल की जाती है। वैज्ञानिक तौर पर कीड़ा जड़ी को लेकर मौजूद सभी दावों की पुष्टि नहीं हुई है इसके बावजूद इसका बाजार गर्म है और बढ़ता ही जा रहा है। यारसा गुम्बा नाम दरअसल इसका तिब्बती नाम है। उत्तराखंड के सभी पहाड़ी जिलों के माथे पर सजे बुग्यालों में यह बहुतायत से पायी जाती है। बसंत के मौसम में स्थानीय ग्रामीण बुग्यालों में कैम्प लगाकर कीड़ा जड़ी इकठ्ठा करते हैं। सरकारी रेट बहुत कम होने के कारण यह तस्करों के माध्यम से पहले नेपाल और वहां से चीन पहुंचाई जाती है। यारसा गुम्बा का वैज्ञानिक नाम कॉर्डिसेप्स साइनेसिस है। समुद्र तल से 3500 से 5000 मीटर की ऊंचाई वाले इलाके में जमीन के 6 इंच भीतर धंसी पायी जाने वाली इस जड़ी को चीनी और तिब्बती चिकित्सा पद्धति में सभी रोगों की रामबाण दवा माना गया है। कैटरपिलर और कवक के दुर्लभ संयोजन से तैयार होने वाली यह जड़ी भारत के उत्तर पूर्वी राज्यों में भी दवा के रूप में इस्तेमाल की जाती है। यारसा गुम्बा को कीड़े और पौधे के बीच की स्थिति भी कहा जा सकता है। एक ख़ास तरह की इल्लियों के ऊपर कवक चढ़ना शुरू होता है और आखिर में उसकी ममी बना देता है। इस कैटरपिलर का वैज्ञानिक नाम है हैपिलस फैब्रिक्स। उच्च हिमालयी बुग्यालों में बर्फ पिघलना शुरू होने पर यह जड़ी पनपती है। यारसा गुम्बा के बारे में पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों में दावा किया गया है कि इसके इस्तेमाल से कामेच्छा सहनशीलता धैर्य भूख और ऊर्जा में गजब की बढ़ोत्तरी होती है और नींद भी अच्छी आती है। यह भी माना जाता है कि इसका इस्तेमाल मनुष्य की उम्र को बढ़ाता है और उसे जवान भी बनाये रखता है। कहा जाता है कि यारसा गुम्बा की खोज हिमालयी बुग्यालों के चरवाहों द्वारा तब की गयी जब उन्होंने एक बकरी और भेड़ों में इस जड़ी को खाने के बाद आये बदलावों को देखा। उन्होंने पाया कि कीड़ा जड़ी के सेवन से ये जानवर काफी मजबूत हो जाते हैं। तब इन चरवाहों ने मवेशियों की प्रजनन क्षमता जीवन शक्ति और दूध का उत्पादन बढ़ाने के लिए यारसा गुम्बा के पाउडर को दूध में मिलाकर उन्हें खिलाना शुरू किया। फिर इन्हीं चरवाहों ने इसे खुद खाना और अपने दोस्तों रिश्तेदारों को तोहफे में देना भी शुरू किया। तब इन्होंने पाया कि यारसा गुम्बा ने जोश और जीवटता के साथ उनकी कामोत्तेजना में भी अभूतपूर्व बढ़ोतरी की। धीरेधीरे इसके औषधीय गुणों के बारे में जानकारी मिलने पर इसे 2 दर्जन से ज्यादा बीमारियों के उपचार के लिए भी इस्तेमाल किया जाने लगा। मौसम में बदलाव और अत्यधिक दोहन से यारसा गुम्बा का अस्तित्व अब खतरे में आ गया है। हाल के सालों में इसकी उपलब्धता में 30 फीसदी तक की कमी देखी गयी है। कीड़ा जड़ी के परिपक्व होने से पहले ही मुनाफे की होड़ में उसका दोहन कर लिया जाता है। इस समय तक इसमें बीज का निर्माण नहीं हुआ होता और हवा में बीज नहीं बिखर पाता। इस वजह से लार्वा पर फफूंद के पनपने का नया चक्र शुरू ही नहीं होता।
काफल ट्री के फेसबुक पेज से साभार

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