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अल नीनो के प्रभाव कम होने से जनवरी 2025 सबसे गर्म रहा, आने वाले मार्च में प्रभाव खत्म हो जायेगा
अल नीनो के प्रभाव कम होने से जनवरी 2025 सबसे गर्म रहा, आने वाले मार्च में प्रभाव खत्म हो जायेगा
सीएन, नईदिल्ली। मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार, दिसंबर 2024 में जब उत्तरी गोलार्ध में सर्दी बढ़ रही थी, तब प्रशांत महासागर में ला नीना की स्थिति विकसित हुई। हालांकि यह अपेक्षा से थोड़ी देर से आया और कमजोर भी रहा। सामान्यत ला नीना तब बनता है जब पूर्वी प्रशांत महासागर का सतही पानी ठंडा हो जाता है। इसके विपरीत, अल नीनो तब विकसित होता है जब यह पानी असामान्य रूप से गर्म हो जाता है। अल नीनाे के प्रभाव कम होने से जनवरी 2025 सबसे गर्म रहा। आने वाले मार्च में इसका प्रभाव खत्म हो जायेगा। इतिहास के आंकड़ों को देखें तो यह पहली बार है जब अल नीनो का प्रभाव के खत्म होने के बाद भी जनवरी के तापमान में रिकॉर्ड बढोतरी दर्ज की गई है। नए आंकड़ों के बाद वैज्ञानिकों में इस बात को लेकर मंथन शुरू हो गया है कि अन्य कौन से कारक गर्मी को शीर्ष स्तर तक पहुंचा सकते हैं। ला नीना की उपस्थिति का वैश्विक मौसम पर असर पड़ता है। यह कई जगहों पर ठंड बढ़ा सकता है और कहीं तेज बारिश और तूफान ला सकता है। पिछले वर्ष अल नीनो ने वैश्विक तापमान को रिकॉर्ड ऊँचाई तक पहुँचाया था लेकिन अब ला नीना की स्थिति बनने के कारण इसका प्रभाव कुछ हद तक कम हो सकता है। हालांकि, अमेरिकी एजेंसी नेशनल ओशेन एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन एनओएए का कहना है कि यह ला नीना बहुत मजबूत नहीं है और इसका प्रभाव सीमित हो सकता है। ला नीना के प्रभाव से आमतौर पर पूर्व से पश्चिम की ओर बहने वाली हवाएँ तेज हो जाती हैं। इसके कारण इंडोनेशिया और आसपास के क्षेत्रों में अधिक बादल बनने लगते हैं, जिससे भारी वर्षा होती है। इसके विपरीत, अल नीनो के दौरान ये हवाएँ कमजोर हो जाती हैं। इस बार ला नीना की स्थिति देर से बनी और कमजोर है, इसलिए इसके लंबे समय तक टिके रहने की संभावना कम है। एनओएए के जलवायु पूर्वानुमान केंद्र के अनुसार, लगभग 59 प्रतिशत संभावना है कि यह फरवरी से अप्रैल तक सक्रिय रह सकता है। वहीं मार्च से मई के बीच इसके समाप्त होने की संभावना लगभग 60 प्रतिशत है। यदि ला नीना उत्तरी गोलार्ध में गर्मियों तक बना रहता है, तो अटलांटिक महासागर में अधिक शक्तिशाली और विनाशकारी तूफान आ सकते हैं। इसका कारण यह है कि अल नीनो और ला नीना एक ही प्रणाली का हिस्सा होते हैं जिसे ष्अल.नीनो सदर्न ऑसिलेशन ईएनएसओ कहा जाता है। यह प्रशांत महासागर में बनने वाला जलवायु पैटर्न है, जिसमें समुद्री तापमान और हवाओं में बदलाव आता है। इसका असर दुनिया भर के मौसम पर पड़ता है। अल नीनो को स्पेनिश भाषा में छोटा लड़का कहा जाता है और यह 2023 में रिकॉर्ड वैश्विक तापमान से जुड़ा हुआ था। उस वर्ष धरती का तापमान अब तक का सबसे अधिक दर्ज किया गया था। जलवायु परिवर्तन के साथ मिलकर अल नीनो ने दक्षिण-पूर्व एशिया और अफ्रीका के कई हिस्सों में तीव्र गर्मी और सूखे की स्थिति पैदा की। इसके विपरीत ला नीना को अल नीनो की छोटी बहन कहा जाता है जो मौसम को ठंडा और अधिक वर्षा वाला बनाती है। यह अक्सर तूफानों और आंधियों की संभावना को भी बढ़ा देता है। हालाँकि, इन दोनों स्थितियों का प्रभाव स्थान के अनुसार अलग-अलग होता है और अन्य जलवायु परिस्थितियों के साथ मिलकर यह और भी जटिल हो सकता है। अल नीनो और ला नीना का प्रभाव कृषि पर बहुत अधिक पड़ता है। इनकी वजह से अरबों लोगों की जिंदगी प्रभावित हो सकती है, खासकर उन इलाकों में जो पहले से ही जलवायु परिवर्तन के कारण चुनौतियों का सामना कर रहे हैं।
अल नीनो की स्थिति हर दो से सात साल में बनती है। इस दौरान, प्रशांत महासागर में पूर्व से पश्चिम की ओर बहने वाली हवाएं कमजोर हो जाती हैं और कई बार यह उल्टी दिशा में भी बहने लगती हैं। ये हवाएं आमतौर पर भूमध्य रेखा के आसपास बहती हैं और दक्षिण अमेरिका से गर्म पानी को दक्षिण.पूर्व एशिया और ऑस्ट्रेलिया की ओर ले जाती हैं। लेकिन जब हवाएं कमजोर पड़ती हैं तो गर्म पानी दक्षिण अमेरिका के पास ही रह जाता है और पश्चिम की ओर नहीं बढ़ पाता। इस वजह से पूर्वी प्रशांत महासागर में ठंडा पानी कम हो जाता है और वायुमंडल में अधिक गर्मी बनी रहती है। इससे इस क्षेत्र में अधिक बारिश होती है और उत्तरी दक्षिण अमेरिका जैसे इलाकों में बाढ़ की स्थिति बन सकती है। इसके विपरीत पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में गर्म पानी की कमी से सूखे की स्थिति उत्पन्न हो सकती है और तापमान बढ़ सकता है।