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क्यों रूस में कैद होकर रह गए हैं रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन

क्यों रूस में कैद होकर रह गए हैं रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन
सीएन, नईदिल्ली।
साल 2009 में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने पहली ब्रिक्स बैठक की मेज़बानी की थी। तब उन्हें अंदाज़ा नहीं रहा होगा कि एक दिन वह ख़ुद बतौर सदस्य इस समिट में शामिल नहीं हो पाएंगे। लेकिन, ऐसा हो रहा है। इस साल अगस्त में हो रही ब्रिक्स बैठक में वह वर्चुअली शामिल होंगे। उनकी जगह रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव जोहान्सबर्ग जाकर समिट में हिस्सा लेंगे। यह लंबे समय से स्पष्ट नहीं था कि ब्रिक्स समिट में पुतिन मौजूद रहेंगे या नहीं। पुतिन के ख़िलाफ़ यूक्रेन में वॉर क्राइम के लिए इंटरनैशनल क्रिमिनल कोर्ट का वारंट इश्यू है। ऐसे में गिरफ्तारी को लेकर दक्षिण अफ्रीका पर घर और बाहर, दोनों तरफ से खासा दबाव था। विपक्षी पार्टियों ने राष्ट्रपति सिरिल रामाफोसा की सरकार को कोर्ट तक घसीट लिया था। दक्षिण अफ्रीका ने ख़ुद को डिप्लोमेसी के एक ऐसे मोड़ पर पाया, जहां एक ओर इंटरनैशनल क्रिमिनल कोर्ट के आदेश की नाफरमानी थी तो दूसरी ओर रूस के साथ तनाव। इस संकट को टालने के लिए साउथ अफ्रीका के डिप्लोमैट्स ने कई महीने रूस से ‘बैकचैनल’ बातचीत की। राष्ट्रपति ने इंटरनैशनल क्रिमिनल कोर्ट से भी पूछा कि क्या समिट के लिए पुतिन की गिरफ्तारी रोकी जा सकती है? हालांकि रास्ता नहीं निकला। 14 जुलाई को दक्षिण अफ्रीकी उप राष्ट्रपति पॉल मशाटिल ने एक इंटरव्यू में यह बात मानी कि सबके लिए बेहतर होगा कि पुतिन ना ही आएं। इस बयान के चार दिन बाद ही रामाफोसा ने कहा कि ‘आपसी समझौते’ के तहत अब पुतिन जोहान्सबर्ग नहीं आएंगे। दरअसल, दक्षिण अफ्रीका के लिए पुतिन का आना बड़ा सिरदर्द बन चुका था। उसे यह तक कहना पड़ा कि पुतिन की गिरफ्तारी का मतलब होगा जंग का ऐलान। गौर फरमाने वाली बात यह भी है कि यह किसी देश के लिए अपनी तरह का अलग ही कूटनीतिक संकट था। पहली बार है कि इंटरनैशनल क्रिमिनल कोर्ट ने संयुक्त राष्ट्र के पांच स्थाई सदस्यों में से किसी एक के राष्ट्राध्यक्ष के ख़िलाफ़ वारंट जारी किया है। इससे पहले वो सूडान के पूर्व राष्ट्रपति उमर अल बशीर और लीबिया के मुहम्मद गद्दाफी के खिलाफ ही ऐसा कर चुका है। खैर, कई स्तरों पर मोर्चों से घिरे पुतिन को समिट से हाथ पीछे खींचने पड़े। हालांकि पुतिन के लिए यह फैसला करना इतना आसान नहीं रहा होगा। यह साल उनके लिए एक के बाद एक चुनौतियां लेकर आया है। मार्च में उन्हें इंटरनैशनल क्रिमिनल कोर्ट ने वॉर क्रिमिनल घोषित किया। यह वारंट पुतिन और चिल्ड्रेन्स राइट्स के लिए रूस की कमिश्नर मारिया लवोवा-बेलोवा के ख़िलाफ़ जारी किया गया। आरोप लगाया गया कि यूक्रेन के अनाथालयों में रह रहे सैकड़ों बच्चों को रूस लाया गया, जिससे कि रूस में रह रहे परिवार उन्हें गोद ले सकें। मामला बच्चों के आपराधिक डिपोर्टेशन से जुड़ा था। जून महीने में पुतिन, वैगनर की बगावत से जूझते रहे। पूरी दुनिया ने प्राइवेट आर्मी के बागियों को मास्को से महज 200 किमी दूर क़दमताल करते सुना। इस चुनौती से निपटने के बाद ही पुतिन शंघाई सहयोग संगठन में दिखे। वह दुनिया को बताना चाहते थे कि सब कंट्रोल में है। इसीलिए ब्रिक्स में आना भी उनके लिए ज़रूरी था। इसका इस्तेमाल वह घर में इमेज बेहतर करने के लिए करते। ख़ासकर अब जबकि वारंट मसले के बाद आम रूसी भी जान चुका है कि वह एक वॉर क्रिमिनल हैं।
पुतिन ऐसे समय पर समिट में नहीं आ रहे हैं, जब ब्रिक्स के विस्तार को लेकर गहमागहमी है। चीन, ग्रुप में इंडोनेशिया और सऊदी अरब की एंट्री चाहता है। हालांकि ब्राजील और भारत इसका विरोध कर रहे हैं। भारत कह रहा है कि इस बात को लेकर सख्त नियम हो कि बगैर औपचारिक विस्तार दूसरे देश कैसे और कब समूह के करीब आ सकते हैं। एक्सपर्ट्स भी कह रहे हैं कि चीन से करीबी के बावजूद रूस भी नहीं चाहेगा कि चीन इस तरह से अपना प्रभुत्व बढ़ाए। अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार कमर आगा कहते हैं, ‘भारत को किसी बात से कोई आपत्ति नहीं, लेकिन चीन के बढ़ते दबदबे से दिक्कत तो होगी। रूस भी नहीं चाहेगा कि ग्रुप में पूरी तरह से चीनी प्रभुत्व हो जाए। ब्रिक्स अब एक बहुत अहम फोरम बन गया है। बहुत से देश इसमें शामिल होना चाहते हैं। लेकिन, पश्चिम देशों के ख़िलाफ़ मंच बनाने की किसी भी कोशिश को भारत सपोर्ट नहीं कर सकता। आपस में सहयोग करना अच्छा है, लेकिन भिड़ंत वाली अप्रोच नहीं होनी चाहिए।’ हालांकि, इस बीच पुतिन को लेकर एक और सवाल भी सिर उठा रहा है। क्या ऐसे हालात में पुतिन जी-20 सम्मेलन में हिस्सा लेने दिल्ली आएंगे? यह अलग बात है कि भारत के सामने दक्षिण अफ्रीका वाली कोई बाध्यता नहीं। लेकिन, ना तो रूस और ना ही भारत, दोनों ही ने इसे लेकर फिलहाल कुछ भी साफ़-साफ़ नहीं कहा है। बीते दिनों जब भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची से पुतिन के आने को लेकर सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि सभी देशों को यहां आकर ही भागीदारी करनी होगी। वहीं, हाल ही में रूसी मीडिया में फॉरेन पॉलिसी एडवाइज़र यूरी उशाकोव ने भी इसे लेकर बस इतना ही कहा कि भारत की ओर से पुतिन को जी-20 का न्योता मिला है। यानी उन्होंने यह साफ़ नहीं किया कि पुतिन ख़ुद दिल्ली आएंगे या इस समिट को भी वर्चुअली ही अटेंड करेंगे। दरअसल, इस बात की आशंका तभी से लगनी शुरू हो गई थी, जब भारत ने समिट वर्चुअली करने का फैसला किया था। अगर पुतिन दिल्ली आते हैं, तो यूक्रेन वॉर के बाद पहली बार होगा कि वह अमेरिका और पश्चिमी देशों के साथ मंच शेयर करेंगे। जाहिर है, वह ऐसा करने से बचना चाहेंगे। कमर आगा कहते हैं, ‘यह सही है कि पुतिन-पीएम मोदी के अच्छे दोस्त हैं, लेकिन अगर वह जी-20 में आते हैं, तो पश्चिमी देश उन्हें यूक्रेन के मसले पर कॉर्नर करने की कोशिश करेंगे। ऐसे में उनकी कोशिश होगी कि ऐसे हालात पैदा ही ना हों।’ हालांकि, फिलहाल मसला ब्रिक्स को लेकर है, जो बहुत तेज़ी के साथ एक मजबूत इकोनॉमिक ब्लॉक बनकर उभरा है। दुनिया की 42 फ़ीसदी आबादी यहां रहती है और जीडीपी में इसकी 23 फ़ीसदी हिस्सेदारी है। पुतिन यहां आना चाहते थे। यह इसी बात से जाहिर होता है कि रूसी डिप्लोमैट्स ने इसे लेकर दक्षिण अफ्रीका पर खासा दबाव भी डाला था। लेकिन, यह हो नहीं पाया, यानी पुतिन की मुश्किलें ख़त्म नहीं हुई हैं। कम से कम हाल के वक़्त में वह दुनिया की चौपालों में आज़ाद होकर शिरकत करते नहीं दिख रहे।

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