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राज्य पक्षी मोनाल : बच गया तो इंसान की दावत, न बचे तो होना ही है बाज का शिकार

राज्य पक्षी मोनाल : बच गया तो इंसान की दावत, न बचे तो होना ही है बाज का शिकार
उत्तरकाशी से लोकेंद्र सिंह बिष्ट।
अपने देश के मिनी स्विट्जरलैंड कहे जाने वाले हर्षिल की वादियों में राज्य पक्षी मोनाल की भरमार रहती है। हर्षिल में एक मोनाल अपनी पीछे पड़े शिकारी बाज से अपनी जान बचाने के लिए गढ़वाल मंडल विकास निगम के हर्षिल स्थित बंगले के परिसर में जा पहुंचा। जहां गढ़वाल मंडल विकास निगम के प्रबंधक सुशील डिमरी वा उनकी पत्नी और बेटे ऋषि और अंकित ने मोनाल को देखा वा साथ ही शिकारी बाज को मंडराते हुए देखा। प्रबंधक सुशील डिमरी बताते हैं कि जब वे हर्षिल बंगले में थे तो परिसर में एक मोनाल शिकारी बाज से अपनी जान बचाते बचाते बंगले के परिसर में आ गया, जहां उनके साथ साथ उनकी पत्नी और बच्चों ने मोनाल को पकड़ लिया। इतने खूबसूरत पक्षी को पाकर बच्चे वा वे स्वयं काफी खुशनसीब है कि उन्हें इस खूबसूरत राज्य पक्षी का दीदार हुआ। उन्होंने इस राज्य पक्षी के साथ फोटो भी ली व बाद में पुलिस व वन विभाग के अधिकारियों को बुलाया वा बाद में बदहवास मोनाल को वन विभागबके सुपुर्द कर दिया। दरअसल बाज पक्षियों का शिकार करता है। मोनाल पक्षी काफी शांत प्रवृति का होता है व आक्रमक भी नहीं होता है। यदा कदा मोनाल के पीछे जब शिकारी बाज पड़ता है तो वह अपनी जान बचाने के लिए घाटियों की ओर बस्तियों की तरफ उड़ के आ जाता है। ये कभी कभार ही होता है जब शिकार अपनी जान शिकारी से बचा लेता है और खबर बन जाती है। ऐसे प्रकरण पहले भी घटित होते आए हैं लेकिन तब शिकारी बाज से अपनी जान बचाने बस्ती में मोनाल आ तो जाता थी लेकिन इंसान भी घर आए इस असहाय मोनाल को चट कर जाते थे। यहां आपको बताते चलें कि आज भी इस राज्य पक्षी मोनाल का अवैध शिकार बदस्तूर जारी है। इसका मांस लोगों के बीच काफी प्रिय है। साथी मोनाल की तस्करी भी बड़ी मात्रा में की जाती है। इसकी खूबसूरती ही इसके जान की दुश्मन है। अमूमन शिकारी बाज से जान बचाना कोई बच्चों का खेल भी नहीं है। बच गया तो इंसान की दावत बन जाता है न बचे तो शिकारी बाज का शिकार तो होना ही है।
बेचारे मोनाल के लिए इधर कुंवा उधर खाई
हालांकि जंगलों में कितने मोनाल प्रतिवर्ष शिकारी बाजों के शिकार होते हैं या फिर तस्करी में मारे जाते हैं इसके आधिकारिक रिकॉर्ड भी नहीं है। अधाधुंध शिकार के कारण मोनाल का अस्तित्व खतरे में है इसकी घटती संख्या को देखते हुए हालांकि इसके शिकार पर 1982 से प्रतिबंध लगा हुआ है किन्तु इसका शिकार पूरी तरह से बंद हो चुका है यह कहना मुश्किल है। मोनाल की घटती संख्या का अंदाजा सन् 2005 में हिमाचल में हुई इसकी गणना से लगाया जा सकता है 2000 की गणना में जहां इसकी संख्या जहां 65 हजार थी 2005 में वह घटकर मात्र 15 हजार ही रह गई। अवश्य ही सिर्फ प्रतिबंध लगाने से किसी गलत कार्य का रोका जाना तब तक पूरी तरह संभव नहीं है जब तक व्यक्ति विशेष इसके प्रति सजग न हों। यदि इस सुंदर धरोहर को बचाना है तो सभी को मिलकर प्रयास करना होगा।हालांकि वन्य जीव संरक्षण बोर्ड द्वारा पहली बार 2008 में इसकी गणना कराई गई थी तब उत्तराखण्ड में मात्र 919 मोनाल ही पाए गए।मोनाल को नेपाल और उत्तराखंड में डाँफे के नाम से भी जानते हैं। यह पक्षी हिमालय पर पाये जाते हैं। मोनल नेपाल का राष्ट्रीय पक्षी व उत्तराखण्ड का राज्य पक्षी है प्राकृतिक तौर पर खूबसूरती से लबरेज पहाड़ों की खूबसूरती को मोनाल पक्षी चार चांद लगा देते हैं। इसी खूबसूरती वा दुर्लभता के चलते वर्ष 2000 में मोनाल को उत्तराखंड प्रदेश का राज्य पक्षी घोषित किया गया। चारधाम यात्रा के दौरान यात्रा मार्गों से गुजरते हुए जंगलों में घाटियों में पहाड़ों में आपको तरह तरह के दुर्लभ वन्य जीव जंतु पशु पक्षियों का दीदार हो जाता है। बशर्ते आपकी पारखी नजर हो। पहाड़ों में मोनाल पक्षी 6000 से 14000 फीट तक की ऊंचाइयों में अपना बसेरा बनाता है। इस खूबसूरत मोनाल पक्षी आकार में मुर्गी के बराबर हो होता है। सामान्यतः मोनाल इंसानी बस्ती में कभी रुख ही नहीं करता है और न ही जंगलों में वह आसानी से नजर आता है। इसके दीदार के लिए दबे पांव काफी धैर्य के साथ ऊंचाई वाले इलाकों में देखा जा सकता है वा अपने कैमरे में कैद किया जा सकता है। मोनाल के आहार में आहार कीड़े मकोड़े घास की कोंपलें, पत्तियां, जडें, बीज, जंगली फल ही होते हैं।
उत्तराखण्ड और हिमाचल प्रदेश का राज्य पक्षी मोनाल
यह रंग-बिरंगा पक्षी उत्तराखण्ड और हिमाचल प्रदेश का राज्य पक्षी है और इसका नाम है मोनाल। मोनाल के अलावा इसे नीलमोर एवं कुक्कुर के नाम से भी जाना जाता है, जबकि इसका जीव वैज्ञानिक नाम लोफोफोरस इम्पेजेनस है। नर मोनाल की लम्बाई लगभग 38 इंच होती है तथा मादा इससे लगभग 10 इंच छोटी होती है। नर के सिर पर चटक हरे रंग की एक चोटी होती है। चोटी में कालापन लिये हुए बैंगनी रंग की झलक होती है। नर का रंग काला और नीलिमा लिए होता है, जबकि मादा के ऊपरी हिस्से के पंख गाढ़े भूरे कत्थई धारियों से युक्त होते हैं। मादा के सीने और दुम सफेदी लिए होता है, जबकि नर पक्षी की दुम और गले के पास का हिस्सा नारंगी रंग का होता है।

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