राष्ट्रीय
22 फरवरी से राजस्थान के सीकर में शुरू होगा खाटूश्यामजी का लक्खी मेला
22 फरवरी से राजस्थान के सीकर में शुरू होगा खाटूश्यामजी का लक्खी मेला
सीएन, सीकर। राजस्थान के सीकर जिले में स्थित खाटू श्याम मंदिर में हर साल होली से पहले वार्षिक मेले का आयोजन किया जाता है। यह मेला फाल्गुन माह की प्रतिपदा से द्वादशी तिथि के बीच लगता है। बाबा खाटू श्याम जी के इस मेले को लक्खी मेला भी कहते हैं। साल 2023 में लक्खी मेला 22 फरवरी से लगेगा और 4 मार्च तक चलेगा। मेले के आयोजन को लेकर सीकर प्रशासन खास तैयारियां कर रहा है। एक बार पहले मंदिर में भगदड़ के कारण तीन महिला श्रद्धालुओं की मौत हो गई थी। इस घटना को ध्यान में रखकर पुलिस प्रशासन भी मेले में सुरक्षा के पुख्ता बंदोबस्त करेगा। धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान खाटूश्याम घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक हैं, जिन्होंने भगवान श्रीकृष्ण के कहने पर स्वयं ही अपना सिर काट लिया था। भगवान श्रीकृष्ण के वरदान स्वरूप ही कलयुग में उनकी पूजा श्याम नाम से की जाती है। लक्खी मेले के दौरान किन बातों को विशेष ध्यान रखना होगा। हर साल भक्त बाबा के निशान यानी झंडे को मंदिर तक ले जाते थे लेकिन इस बार मंदिर समिति की तरफ से नए निर्देश जारी किए गए है। जारी निर्देश के अनुसार, कोई भी भक्त निशान को मंदिर तक नहीं ले जा सकेगा। सभी निशान रो लखदातार मैदान के पास ही एकत्रित कर लिए जाएंगे। मेले के सभी क्षेत्रों की जानकारी के लिए भक्तों को माइक पर जानकारी दी जाएगी। दर्शन के लिए कतार में खड़े भक्तों को वहीं पर पीने के पानी की व्यवस्था की जाएगी। भक्तों को कतार से निकलने की जरूरत नहीं होगी। यदि कोई मेले में भंडारा कराना चाहता है तो उसे प्रशासन की अनुमति लेनी पड़ेगी। इस साल मेले में कोई भी कार्यक्रम करने से पहले प्रशासन की अनुमति अनिवार्य है। भजन, जागरण, आदि कराने के लिए भी मजिस्ट्रेट की ओर से जारी दिशा निर्देश का पालन करना आवश्यक होगा।
भगवान श्रीकृष्ण ने क्यों मांगा बर्बरीक से उनका शीश
धर्म ग्रंथों के अनुसार, भीम के बेटे घटोत्कच और दैत्य मूर की बेटी मोरवी के पुत्र बर्बरीक ने घोर तपस्या की और कई दिव्य अस्त्र-शस्त्र प्राप्त किए। उन्होंने अपनी माता से वादा किया था कि वो महाभारत के युद्ध में कमजोर पक्ष का साथ देंगे। उन्होंने कौरवों के लिए लड़ने का फैसला किया। भगवान श्रीकृष्ण जानते थे कि अगर बर्बरीक कौरवों का साथ देंगे तो पांडवों की हार तय है। ऐसे में श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से दान में उसका सिर मांग लिया। बर्बरीक ने खुशी-खुशी अपना शीश दान कर दिया। बर्बरीक के इस बलिदान से प्रभावित होकर श्रीकृष्ण ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि वे कलयुग में उनके नाम ‘श्याम’ से पूजे जाएंगे।