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धर्मक्षेत्र

मौनी अमावस्या विशेष : ॐ पितृ देवतायै नम: ॐ पितृगणाय विद्महे जगत धारिणी धीमहि तन्नो पितृो प्रचोदयात्

ॐ पितृ देवतायै नम: ॐ पितृगणाय विद्महे जगत धारिणी धीमहि तन्नो पितृो प्रचोदयात्।। ॐ नारायणाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नो विष्णु प्रचोदयात् । 

प्रो. ललित तिवारी, नैनीताल। माघ मास की अमावस्या को ही मौनी अमावस्या कहते जो योग पर आधारित महाव्रत है। मान्यता  है  कि इस दिन पवित्र संगम में देवताओं का निवास होता है इसलिए इस दिन गंगा स्नान हेतु  पवित्र माना गया है । माना जाता है कि इस दिन ब्रह्माजी ने स्वयंभुव मनु को उत्पन्न कर सृष्टि  निर्माण का कार्य शुरू किया था । इस वर्ष 29 जनवरी 2025 को मनाई जाने वाली मौनी अमावस्या हिंदू धर्म में पूर्वजों के सम्मान का महत्वपूर्ण दिन है। माघ महीने  की अमावस्या को पवित्र स्नान करना, आत्मनिरीक्षण के लिए मौन रहना, पितृ पूजा करना और दान-पुण्य  का कार्य  शुभ होते है।ऐसी मान्यता है कि मौनी अमावस्या को पितृ धरती पर आते हैं इसीलिए महाकुंभ में संगम में स्नान के साथ पितरों का तर्पण और दान करने से पितृदोष से मुक्ति मिलती है ।मौनी अमावस्या के  दिन व्रत और मौन धारण करने से मन, वाणी, और आत्मा की शुद्धि होती है. इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी  ,शिव की पूजा करने से जीवन में सुख-शांति आती है. मौनी अमावस्या को माघी अमावस्या भी कहा जाता है तथा गंगा, यमुना, और सरस्वती नदी के जल से स्नान करने से पाप मुक्त  होते है  दान तथा पीपल के पेड़ को जल अर्पित  अर्घ्य ,परिक्रमा करना   तथा दीप जलाना तथा पीपल के पौधे का पौधारोपण  मंगलकारी होता है  जिससे  पितृ दोष और ग्रह दोष से मुक्ति पा सकते हैं। इस दिन मौन व्रत धारण कर प्रभु का स्मरण करने से मुनि पद की प्राप्ति होती है । इसीलिए कहा गया हैं। ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् । उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॥ इस मंत्र का हिंदी अर्थ है कि हम भगवान शिव की पूजा करते हैं, जिनके तीन नेत्र हैं, जो सुगंधित हैं और हमारा पोषण करते हैं। जैसे फल शाखा के बंधन से मुक्त हो जाता है वैसे ही हम भी मृत्यु और नश्वरता से मुक्त हो जाएं। संगम में स्नान के संबंध में कहावत है कि  सागर मंथन  से भगवान धन्वन्तरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए उस समय देवताओं एवं असुरों में अमृत कलश के लिए खींचा-तानी शुरू हो गयी इससे अमृत की कुछ बूंदें छलक कर इलाहाबाद हरिद्वार नासिक और उज्जैन में जा गिरी। अमृत प्राप्ति के लिए देव-दानवों में परस्पर बारह दिन तक निरन्तर युद्ध हुआ तथा देवताओं के बारह दिन मनुष्यों के बारह वर्ष के तुल्य होते हैं। अतःकुम्भ भी बारह होते हैं। उनमें से चार कुम्भ पृथ्वी पर होते हैं और शेष आठ कुम्भ देवलोक में होते हैं। जिस समय में चन्द्रादिकों ने कलश की रक्षा की थी, उस समय की वर्तमान राशियों पर रक्षा करने वाले चन्द्र-सूर्यादिक ग्रह जब आते हैं, उस समय कुम्भ का योग होता है अर्थात जिस वर्ष, जिस राशि पर सूर्य, चन्द्रमा और बृहस्पति का संयोग होता है, उसी वर्ष, उसी राशि के योग में, जहाँ-जहाँ अमृत बूँद गिरी थी, वहाँ-वहाँ कुम्भ पर्व होता है। मकर संक्रान्ति  में सूर्य और चन्द्रमा, वृश्चिक राशि में और वृहस्पति, मेष राशि में प्रवेश करते हैं। मकर संक्रान्ति के होने वाले इस योग को “कुम्भ स्नान-योग” कहते हैं और इस दिन को विशेष मंगलकारी माना जाता है । मान्यता है कि इस दिन पृथ्वी से उच्च लोकों के द्वार इस दिन खुलते हैं और इस प्रकार इस दिन स्नान करने से आत्मा को उच्च लोकों की प्राप्ति सहजता से हो जाती तथा  साक्षात् स्वर्ग दर्शन माना जाता है। ‘कुम्भ’ का शाब्दिक अर्थ “घड़ा, सुराही, बर्तन” जिसे पौराणिक कथाओं में अमरता (अमृत) के बारे में बताया जाता है। मेला शब्द शब्द ऋग्वेद और अन्य प्राचीन हिन्दू ग्रन्थों में भी पाया जाता है। इस प्रकार, कुम्भ मेले का अर्थ है “अमरत्व का मेला” है। ज्योतिषियों के अनुसार कुम्भ का असाधारण महत्व बृहस्पति के कुम्भ राशि में प्रवेश तथा सूर्य के मेष राशि में प्रवेश के साथ जुड़ा है। ग्रहों की स्थिति हरिद्वार से बहती गंगा का जल औषधीय है ।यही कारण है ‍कि अपनी अन्तरात्मा की शुद्धि पवित्र स्नान  होता है ।आध्यात्मिक दृष्टि से कुम्भ के काल में ग्रहों की स्थिति एकाग्रता तथा ध्यान साधना के लिए उत्कृष्ट होती है। यही कारण है कि यहाँ  कुंभ 12वर्षों में  आयोजित होता   है तथा 2025 का महाकुंभ का मुहूर्त 144 वर्षों का योग है ।.मौनी अमावस्या पर इस बार ग्रहों की बहुत ही शुभ योग बन रहा है।  यह तिथि पितरों को  समर्पित हैं तथा मौनी अमावस्या का पूजन  एवं स्नान ग्रह दोष तथा पितृ दोष को शांत करता है।

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