धर्मक्षेत्र
प्रयागराज के संगम का पानी नहाने योग्य नहीं, सीपीसीबी की रिपोर्ट ने चौंकाया तो एनजीटी ने जताई चिंता
प्रयागराज के संगम का पानी नहाने योग्य नहीं, सीपीसीबी की रिपोर्ट ने चौंकाया तो एनजीटी ने जताई चिंता
सीएन, प्रयागराज। संगम के पानी पर आई केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड यानी सीपीसीबी की रिपोर्ट से एक नई बहस छिड़ गई है। इस रिपोर्ट में संगम के पानी को प्रदूषित बताते हुए नहाने और आचमन के योग्य नहीं बताया गया है। देश.दुनिया से आए 59 करोड़ 31 लाख लोग अब तक संगम में आस्था की डुबकी लगा चुके हैं। आज शाम या कल तक यह आंकड़ा 60 करोड़ के पार हो जाएगा। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की एक रिपोर्ट राष्ट्रीय हरित अधिकरण यानी एनजीटी को सौंपी गई है। उस रिपोर्ट में सूचित किया गया है कि प्रयागराज में महाकुंभ के समय कई सारे स्थानों पर अपशिष्ट जल का स्तर स्नान के लिए अच्छा नहीं है। सीपीसीबी की रिपोर्ट के मुताबिक अपशिष्ट जल संदूषण के सूचक फेकल कोलीफॉर्म की सीमा ज्यादा बताई गई है। इसकी स्वीकार्य सीमा 2500 यूनिट प्रति 100 एमएल है। इस पर एनजीटी अध्यक्ष न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव, न्यायिक सदस्य न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल और विशेषज्ञ सदस्य ए सेंथिल वेल की पीठ प्रयागराज में गंगा और यमुना नदियों में अपशिष्ट जल के बहाव को रोकने के मुद्दे पर सुनवाई कर रही थी। पीठ का कहना है कि सीपीसीबी ने 3 फरवरी को एक रिपोर्ट दाखिल की थी, जिसमें कुछ गैर-अनुपालन या उल्लंघनों की तरफ इशारा किया गया था। रिपोर्ट में कहा गया है कि नदी के पानी की गुणवत्ता अलग अवसरों पर सभी निगरानी स्थानों पर भी अपशिष्ट जल फेकल कोलीफॉर्म के संबंधित स्नान करने के लिए बिल्कुल भी ठीक नहीं है। प्रयागराज में महाकुंभ के समय बड़ी संख्या में लोग नदी में स्नान करते हैं, जिससे अपशिष्ट जल की सांद्रता में बढ़ोतरी होती है। पीठ ने आगे कहा है कि उत्तर प्रदेश प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड ने समग्र कार्रवाई रिपोर्ट को दाखिल करने के लिए एनजीटी के पूर्व निर्देशों का पालन नहीं किया गया है। एनजीटी ने आगे कहा कि यूपीपीसीबी ने सिर्फ कुछ जल परीक्षण रिपोर्ट के साथ एक पत्र दाखिल किया था। पीठ ने कहा है कि यूपीपीसीबी के केंद्रीय प्रयोगशाला के प्रभारी की तरफ से भेजे गए 28 जनवरी के पत्र के साथ ही संलग्न दस्तावेजों की समीक्षा करने पर भी ये पता चलता है। अलग-अलग स्थानों पर अपशिष्ट जल का उच्च स्तर भी पाया गया है। इधर पानी की गुणवत्ता का मूल्यांकन करने वाली प्रभावी संगठन यूएस बेस्ड वाटर रिसर्च प्रोग्राम का कहना है कि अनट्रीटेड फेकल मैटर पानी में अतिरिक्त कार्बनिक पदार्थ जोड़ता है, जो सड़ता है, जिससे पानी में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है। साथ ही यह भी कहा गया है कि यह जलीय पारिस्थितिकी तंत्र के लिए खतरा है। फेकल कोलीफॉर्म का हाई लेवल स्वास्थ्य के लिए जोखिम भरा है, जिनमें टाइफाइड, गैस्ट्रोएंटेराइटिस और डिसेंट्री शामिल हैं। विज्ञान एवं पर्यावरण केंद्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक कोलीफॉर्म काउंट द्वारा सीवेज में मल पदार्थ की मात्रा की निगरानी की जाती है। कोलीफॉर्म जल गुणवत्ता का एक मापदंड है, जो रोगाणुओं के सूचक के रूप में कार्य करता है जिससे दस्त, टाइफाइड और आंतों से संबंधित बीमारियां होती हैं। एनजीटी ने यहां तक कह दिया कि यूपीपीसीबी उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड वास्तविक स्थिति को छुपाने का प्रयास कर रहा है वहींए सीबीसीबी केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड कि सराहना करते हुए एनजीटी ने कहा कि सीबीसीबी के चलते सही तथ्य सामने आयी। एनजीटी ने सुनवाई के दौरान मौखिक टिप्पणी करते हुए यहां तक कह दिया की गंगा जल में फीकल कोलीफार्म एवं बीओडी निर्धारित मानक से बहुत ज्यादा है। ऐसे में जल आचमन योग्य तो दूर की बात नहाने योग्य भी नहीं है।
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