नैनीताल
उत्तराखंड के जंगलों में लग रही आग पर सरकार का कोई विजन नहीं : यशपाल
उत्तराखंड के जंगलों में लग रही आग पर सरकार का कोई विजन नहीं : यशपाल
सीएन, नैनीताल। नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य ने कहा कि उत्तराखंड में निरंतर जंगलों में लग रही आग पर्यावरण की दृष्टि से गर्मियों में बहुत हानिकारक है। आज प्रदेश में लगातार धधक रहे जंगल व उससे हो रही हानि चिंता का विषय है। अप्रैल के पहले सप्ताह में स्थितियां इतनी भयावह हो गईं कि राज्य में सैकड़ों हेक्टेयर जंगल जलकर राख हो गए और हजारों हेक्टेयर पर खतरा मंडरा रहा है। आर्य ने कहा कि ऐसे संवेदनशील विषय पर सरकार का कोई दृष्टिकोण नहीं होना दुर्भाग्यपूर्ण है। सरकार के पास तमाम संसाधन हैं, लेकिन उसके पास न कोई तैयारी है न कोई विजन। श्री आर्य ने कहा कि प्रदेश का वन विभाग एवं आपदा प्रबंधन विभाग इस मामले में कहीं नहीं दिखता है। आग से धधकती प्रदेश की अमूल्य वन सम्पदा के साथ ही हमारे वन्य जीव, वृक्ष-वनस्पतियां, जल स्रोत और यहां तक कि ग्लेशियर भी इस भीषण दावानल से संकट में है। कभी यह आग ग्रामीण रिहायशी इलाकों तक पहुँच जाने से जनहानि और ग्रामीणों के मवेशियों को भी नुकसान उठाना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि हर वर्ष जंगलो में आग लगने की घटनाएँ बढ़ने लगी है लेकिन सरकार की निष्क्रियता के कारण इसकी रोकथाम के लिए कोइ ठोस कदम नहीं उठाये जा रहे हैं। जब प्रदेश में वनाग्नि के मामले बढ़ते हैं तो सरकार द्वारा रोकथाम के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति कर दी जाती है जिस कारण इस निष्क्रियता का खामियाजा प्रकृति व जनता भुगत रही है। श्री आर्य ने पूछा कि आखिर कौन है इसके लिए जिम्मेदार, क्या सरकार के संज्ञान में यह नहीं है, क्या कर रही है उत्तराखंड सरकार, अभी अप्रैल का महीना ही है यही हाल रहे मई और जून में स्थिति और भयावह होगी। नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि जल स्रोत सूख रहे हैं, वातावरण में धुंध ही धुंध है, दमा श्वास के मरीजों के लिए दिन प्रतिदिन स्थिति बद से बदतर हुए जा रही है। इस धूल और धुएं के वातावरण में बुजुर्गों से लेकर युवा व स्वस्थ व्यक्ति भी संक्रमण के शिकार है। कुछ समय पूर्व सरकार द्वारा 15000 फायर वॉच की भर्ती की बात की थी, उनकी भर्ती का क्या हुआ, क्या फायर सीजन बीत जाने के बाद उनकी भर्ती की जाएगी। श्री यशपाल आर्य ने कहा कि वन विभाग, उसकी अग्निशमन शाखा उसके कर्तव्यों और उसकी तैयारी इस बार भी शून्य है। उत्तराखंड में 67 प्रतिशत जंगल हैं जो वैश्विक पर्यावरण के संतुलन के साथ-साथ उत्तराखंड के पर्यटन में भी अहम भूमिका निभाते हैं जिससे यहाँ के लोगों को रोजगार का भी लाभ होता है।