पर्यावरण
पूरे उत्तर भारत में मंडरा रहा जहरीली हवा का खतरा डरा रही यूएस की यह रिपोर्ट
पूरे उत्तर भारत में मंडरा रहा जहरीली हवा का खतरा डरा रही यूएस की यह रिपोर्ट
सीएन, नई दिल्ली। दिल्ली.एनसीआर में जहरीली हवा से लोगों का सांस लेना दूभर हो रखा है। हालांकि पिछले कुछ समय से हर साल सर्दियों में कमोबेश यही स्थिति रहती है। मौसमी मौसमी परिस्थितियां जैसे शांत हवाएं और कम तापमान साल के इस समय उत्तर भारत में वायु प्रदूषण को बढ़ाने के लिए जाने जाते हैं। हालांकि रिसर्च से पता चलता है कि पिछले कुछ दशकों में बढ़ते प्रदूषण ने इनमें से कुछ मौसम संबंधी कारकों को बढ़ा दिया है। इसका प्रभाव धुंध को अधिक बढ़ा सकता है। धुंध के लिए बदला मौसम पैटर्न जिम्मेदार एक्सपर्ट्स का कहना है कि प्रदूषण.मौसम का यह चक्र दिल्ली और गंगा के मैदान के अन्य भागों में मौजूदा अत्यधिक धुंध के लिए जिम्मेदार है। पिछले साल प्रकाशित एक स्टडी से पता चला है कि कालिख, ब्लैक कार्बन और अन्य प्रकार के एयरोसोल प्रदूषण टेंपरेचर इनवर्जन प्रभाव को बढ़ा रहे हैं। यह अक्सर सर्दियों में देखा जाता है जिसमें गर्म हवा नीचे की सतह पर ठंडी हवा को फंसा लेती है जिससे प्रदूषण फैलने से रुक जाता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि ये एरोसोल निचले क्षोभमंडल वायुमंडल के सबसे निचले हिस्से पर गर्म प्रभाव डालते हैं जबकि नीचे की सतह पर हवा को ठंडा करते हैं। मौसम में बदलाव वाले कारक दिल्ली और उत्तर भारत के अन्य हिस्सों के लिए कई तरह की आपदाएं पैदा करने के लिए एक साथ आ रहे हैं। आप मौसम को नियंत्रित नहीं कर सकते हैं लेकिन आप उस प्रदूषण की मात्रा को नियंत्रित कर सकते हैं जो मौसम के साथ मिलकर इस गंभीर धुंध का निर्माण कर रहा है। स्टडी अध्ययन में पाया गया कि 1980 के बाद से नवंबर के दौरान 500 मीटर से कम दृश्यता वाले दिनों की संख्या में नौ गुना वृद्धि हुई है। दिसंबर.जनवरी में ऐसे दिनों में पांच गुना वृद्धि हुई जिसमें दिल्ली भी शामिल है। नासा के रिसर्चर्स के साथ इस स्टडी को लीड करने वाले अमेरिका में एन्वायरमेंटल डिफेंस फंड के सीनियर रिसर्चर रितेश गौतम ने कहा कि एरोसोल प्रदूषण निचले क्षोभमंडल की स्थिरता को बढ़ाता है। यह प्राकृतिक रूप से हो रहे टेंपरेचर इनवर्जन को बढ़ाता है। गौतम ने कहा कि यह प्रवर्धन प्रभाव दशक दर दशक मजबूत होता दिख रहा है। रिसर्चर्स ने गंगा के मैदानी इलाकों में प्रदूषण और वायुमंडल के बीच परस्पर क्रिया को समझने के लिए चार दशकों के डेटा की स्टडी किया। उन्होंने पाया कि 2002 से 2019 के बीच नवंबर में एरोसोल प्रदूषण में लगभग 90 प्रतिशत की वृद्धि हुई। ऐसा संभवतः पराली जलाने की बढ़ती घटनाओं के कारण हुआ। दिसंबर.जनवरी में भी एरोसोल प्रदूषण में असाधारण रूप से लगभग 40 प्रतिशत की वृद्धि हुई। देश-दुनिया में दिल्ली की जहरीली हवा चिंता के साथ ही चर्चा का विषय बनी हुई है। लोग प्रदूषण से निजात के उपाय की मांग कर रहे हैं। दिल्ली-एनसीआर में हवा में जहर घुला हुआ है। यहां स्मॉग के कारण लोगों का सांस लेना मुश्किल है। दिल्ली के कई इलाकों में एक्यूआई 400 पार पहुंच चुका है। दिल्ली में प्रदूषण कम करने के लिए ग्रैप 4 की बंदिशें लागू हैं। नागालैंड देश का सबसे साफ हवा वाला राज्य है। यहां हवा में प्रदूषण बिल्कुल नहीं है। अरुणाचल प्रदेश में भी सुबह एक्यूआई 48 रिकॉर्ड किया गया है। केरल में बारिश का मौसम बना हुआ है। यहां भी हवा बिल्कुल साफ है। मणिपुर में भी हवा में प्रदूषण नहीं है। यहां एयर क्वालिटी गुड कैटेगरी में है। उन दो दशकों में निचले क्षोभमंडल में भी इसी तरह से बड़ी मात्रा में गर्मी देखी गई। इस परत में स्थिरता में भी वृद्धि देखी गई 1980 के बाद से ग्रहीय सीमा परत की ऊंचाई में गिरावट आई है। यह परत प्रदूषण को जमीन तक सीमित रखने वाले गुंबद की तरह काम करती है, इसलिए इसकी स्थिरता में कोई भी वृद्धि या इसकी ऊंचाई में कमी जमीन पर धुंध की स्थिति को बढ़ाएगी या तीव्र करेगी।