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पंत जी की कही-अनकही यादें : अपने जेब से खर्च कर नाश्ता करवाते थे गोविन्द बल्लभ पंत

पंत जी की कही-अनकही यादें : अपने जेब से खर्च कर नाश्ता करवाते थे भारत रत्न पं. गोविन्द बल्लभ पंत
 सीएन, नैनीताल।
आगामी 10 सितंबर को भारत रत्न पं. गोविन्द बल्लभ पंत का नैनीताल सहित पूरे देश में जन्मदिन मनाया जा रहा है। भारत रत्न पं. गोविन्द बल्लभ पंत बहुआयामी व्यक्ति थे। बहुत कम लोग जानते हैं कि बैठकों में जब भी चाय-नाश्ता होता तो उसका बिल स्वयं भारत रत्न पं. गोविन्द बल्लभ पंत चुकता करते थे। एक बार पंत ने सरकारी बैठक की। उसमें चाय-नाश्ते का इंतजाम किया गया था। जब उसका बिल पास होने के लिए आया तो उसमें हिसाब में छह रुपये और बारह आने लिखे हुए थे। पंत जी ने बिल पास करने से मना कर दिया। जब उनसे इस बिल पास न करने का कारण पूछा गया तो वह बोले, सरकारी बैठकों में सरकारी खर्चे से केवल चाय मंगवाने का नियम है। ऐसे में नाश्ते का बिल नाश्ता मंगाने वाले व्यक्ति को खुद चुकता करना चाहिए। हां, चाय का बिल जरूर पास हो सकता है। अधिकारियों ने उनसे कहा कि कभी-कभी चाय के साथ नाश्ता मंगवाने में कोई हर्ज नहीं है। ऐसे में इसे पास करने से कोई गुनाह नहीं होगा। उस दिन चाय के साथ नाश्ता पंत की बैठक में आया था। कुछ सोचकर पंत ने अपनी जेब से रुपये निकाले और बोले, चाय का बिल पास हो सकता है लेकिन नाश्ते का नहीं। नाश्ते का बिल मैं अदा करूंगा। नाश्ते पर हुए खर्च को मैं सरकारी खजाने से चुकाने की इजाजत कतई नहीं दे सकता। उस खजाने पर जनता और देश का हक है, मंत्रियों का नहीं। आजाद भारत में उत्तर प्रदेश का पहला मुख्यमंत्री होना हमेशा ही खुफियापंथी की ओर इशारा करेगा। क्योंकि यहां की राजनीति हमेशा से ही घाघ रही है। आजादी के वक्त भी यूपी में कई धड़े थे। बनारस के नेता यूपी की राजनीति में छाए हुए थे। ऐसे में पहाड़ों में जन्मे गोविंद बल्लभ पंत गोविंद बल्लभ पंत 10 सितंबर 1887. 7 मार्च 1961 का पहला मुख्यमंत्री बनना अपने आप में सरप्राइज है था। गोविंद बल्लभ पंत अल्मोड़ा में जन्मे थे पर महाराष्ट्रियन मूल के थे। मां का नाम गोविंदी बाई था। उनके नाम से ही नाम मिला था। पापा सरकारी नौकरी में थे। उनके ट्रांसफर होते रहते थे। तो नाना के पास पले। बचपन में बहुत मोटे थेण् कोई खेल नहीं खेलते थे। एक ही जगह बैठे रहते। घर वाले इसी वजह से इनको थपुआ कहते थे। पर पढ़ाई में होशियार थे। एक बार की बात है। छोटे थे उस वक्त। मास्टर ने क्लास में पूछा कि 30 गज के कपड़े को रोज एक मीटर कर के काटा जाए तो यह कितने दिन में कट जाएगा। सबने कहा 30 दिन। पंत ने कहा 29 स्मार्टनेस की बात है। बता दिये। बाद में पढ़ाई कर के वकील बने। इनके बारे में फेमस था कि सिर्फ सच्चे केस लेते थे। झूठ बोलने पर केस छोड़ देते। वो दौर ही था मोरलिस्टिक लोगों का। बाद में कुली बेगार के खिलाफ लड़े। कुली बेगार कानून में था कि लोकल लोगों को अंग्रेज अफसरों का सामान फ्री में ढोना होता था। पंत इसके विरोधी थे। बढ़िया वकील माने जाते थे। काकोरी कांड में बिस्मिल और खान का केस लड़ा था। वकालत शुरू करने से पहले ही पंत के पहले बेटे और पत्नी गीता देवी की मौत हो गई थी। वो उदास रहने लगे थे। पूरा वक्त कानून और राजनीति में देने लगे। 1912 में परिवार के दबाव डालने पर उन्होंने दूसरा विवाह किया। लेकिन उनकी यह खुशी भी ज्यादा वक्त तक न रह सकी। दूसरी पत्नी से एक बेटा हुआ। लेकिन कुछ समय बाद ही बीमारी के चलते बेटे की मौत हो गई। 1914 में उनकी दूसरी पत्नी भी स्वर्ग सिधार गईं। फिर 1916 में 30 की उम्र में उनका तीसरा विवाह कलादेवी से हुआ। अल्मोड़ा में एक बार मुकदमे में बहस के दौरान उनकी मजिस्ट्रेट से बहस हो गई। अंग्रेज मजिस्ट्रेट को इंडियन वकील का कानून की व्याख्या करना बर्दाश्त नहीं हुआ। मजिस्ट्रेट ने गुस्से में कहा, मैं तुम्हें अदालत के अन्दर नहीं घुसने दूंगा। गोविन्द बल्लभ पंत ने कहा मैं आज से तुम्हारी अदालत में कदम नहीं रखूंगा। 1921 में पंत चुनाव में आये। लेजिस्लेटिव असेंबली में चुने गये। तब यूनाइटेड प्रोविंस ऑफ आगरा और अवध होता था। फिर बाद में नमक आंदोलन में गिरफ्तार हुए। 1933 में चौकोट के गांधी कहे जाने वाले हर्ष देव बहुगुणा के साथ गिरफ्तार हुए। बाद में कांग्रेस और सुभाष बोस के बीच डिफरेंस आने पर मध्यस्थता भी की। 1942 के भारत छोड़ो में गिरफ्तार हुए। तीन साल अहमदनगर फोर्ट में नेहरू के साथ जेल में रहे। नेहरू ने उनकी हेल्थ का हवाला देकर उन्हें जेल से छुड़वाया। इससे पहले 1932 में पंत एक्सिडेंटली नेहरू के साथ बरेली और देहरादून जेलों में रहे उस दौरान ही नेहरू से इनकी यारी हो गई नेहरू इनसे बहुत प्रभावित थे। जब कांग्रेस ने 1937 में सरकार बनाने का फैसला किया तो बहुत सारे लोगों के बीच से पंत का ही नाम नेहरू के दिमाग में आया था। नेहरू का पंत पर भरोसा आखिर तक बना रहा। इस बीच 1914 में काशीपुर में प्रेमसभा की स्थापना पंत ने करवाई और इन्हीं की कोशिशों से ही उदयराज हिन्दू हाईस्कूल की स्थापना हुई। 1916 में पंत काशीपुर की नोटिफाइड एरिया कमेटी में लिए गए। 1921, 1930, 1932 और 1934 के स्वतंत्रता संग्रामों में पंत लगभग 7 वर्ष जेलों में रहे। साइमन कमीशन के आगमन के खिलाफ 29 नवंबर 1927 में लखनऊ में जुलूस और प्रदर्शन करने के दौरान अंग्रेजों के लाठीचार्ज में पंत को चोटें आईं, जिससे उनकी गर्दन झुक गई थी। मदन मोहन मालवीय के पक्के चेले थे और यहां नेहरू के प्रयोग को सफल किया उस वक्त कांग्रेस पर अंग्रेजों के कानून में बनी सरकार में शामिल होने का आरोप लगा था। पर पंत की अगुवाई में उत्तर प्रदेश में दंगे नहीं हुए। प्रशासन बहुत अच्छा  रहा। भविष्य के लिए बेस तैयार हुआ। फिर पंत 1946 से दिसंबर 1954 तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। 1951 में हुए यूपी विधानसभा चुनाव में वो बरेली म्युनिसिपैलिटी से जीते थे। 1955 से 1961 के बीच गोविंद बल्लभ पंत केंद्र सरकार में होम मिनिस्टर रहे। इस दौरान इनकी उपलब्धि रही भाषाई आधार पर राज्यों का पुनर्गठन। उस वक्त कहा जा रहा था कि ये चीज देश को तोड़ देगी। पर इतिहास देखें तो पाएंगे कि इस चीज ने भारत को सबसे ज्यादा जोड़ा। अगर पंत को सबसे अधिक किसी चीज़ के लिए जाना जाता है, तो हिंदी को राजकीय भाषा का दर्जा दिलाने के लिए ही। 1957 में इनको भारत रत्न मिला।

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