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आज है गोविंद बल्लभ पंत जयंती : जिन्होंने आजादी की लड़ाई व हिंदी को भी सम्मान दिलाने की जंग लड़ी
आज है गोविंद बल्लभ पंत जयंती : जिन्होंने आजादी की लड़ाई व हिंदी को भी सम्मान दिलाने की जंग लड़ी
सीएन, नैनीताल। आज 10 सितंबर को भारत के स्वतंत्रता सेनानी पंडित गोविंद बल्लभ पंत की 137वीं जयंती है। पंडित गोविंद बल्लभ पंत आजादी के एक ऐसे नायक थे, जिन्होंने बिना किसी शोर-शराबे के अपना काम पूरा किया। गोविंद बल्लभ पंत ने ना सिर्फ आजादी की लड़ाई लड़ी बल्कि हिंदी को भी सम्मान दिलाने का काम किया। सिद्ध देशभक्त, राजनितज्ञ और आधुनिक उत्तर प्रदेश के निर्माण की नींव रखने वाले पंडित गोविन्द वल्लभ पंत का जन्म 30 अगस्त 1887 ईस्वी को अल्मोड़ा उत्तराखंड के निकट खूंट नामक गांव में हुआ था, उनकी आरम्भिक शिक्षा अपने नानाजी की देख.रेख में अल्मोड़ा में हुई। बाद में छात्रवृति लेकर उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री प्राप्त की। इलाहाबाद में आचार्य नरेंद्र देव, डा. कैलाश नाथ काटजू आदि उनके सहपाठी थे। वही से पंत जी सार्वजनिक कार्यो में रुचि लेने लगे। 1905 में गोविंद बल्लभ पंत अल्मोड़ा छोड़ इलाहाबाद चले गए जहां उन्होंने वकालत की पढ़ाई की और कांग्रेस के स्वयंसेवक के तौर पर काम करते रहे। शिक्षा में उनकी रुचि और लगन के परिणाम स्वरूप वर्ष 1909 में उनको कानून की शिक्षा में सर्वोच्च अंकों से उपलब्धि हासिल की। उनके लगन को देखते हुए कॉलेज से लम्सडेन अवार्ड से सम्मानित किया गया। जिसके बाद गोविंद बल्लभ पंत वापस अल्मोड़ा आ गए और अल्मोड़ा से उन्होंने वकालत की शुरुआत की। वर्ष 1909 में उनके पुत्र की बीमारी से मौत हो गई जिसके बाद कुछ दिन बाद पत्नी गंगा देवी की भी मृत्यु हो गई। भारत रत्न से सम्मानित गोविंद बल्लभ पंत उत्तर प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री थे और भारत के चौथे गृह मंत्री थे। गोविंद बल्लभ पंत को 1957 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। गृहमंत्री के तौर पर गोविंद बल्लभ पंत ने हिंदी को भारत की राजभाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने का काम किया था। उन्होंने भारत के राज्यों को भाषा में विभक्त करने का भी काम किया था। 1904 में गोविंद बल्लभ पंत अल्मोड़ा छोड़ कर इलाहाबाद चले गए थे। . गोविंद बल्लभ पंत ने 1905 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय में एडमिशन लिया और 1909 में लॉ की डिग्री ली। .एक वकील के तौर पर काकोरी मुकदमे में गोविंद बल्लभ पंत को पहचान दिलाई। कहा जाता है कि गोविंद बल्लभ पंत का मुकदमा लड़ने का तरीका निराला था। गोविंद बल्लभ पंत महात्मा गांधी को अपना आदर्श मानते थे। वकालत के सिलसिले में गोविंद बल्लभ पंत ने रानीखेत और काशीपुर में एक प्रेम सभा नाम के संस्था का गठन किया था। जिसका मकसद शिक्षा और साहित्य के प्रति जनता को जागरूक करना था। दिसंबर 1921 में गोविंद बल्लभ पंत ने महात्मा गांधी जी के आह्वान पर असहयोग आंदोलन के जरिए खुली राजनीति में उतर आए थे। 1 अगस्त को जब 1924 में काकोरी कांड में जब उत्तर प्रदेश के कुछ नवयुवकों ने सरकारी खजाना लूट लिया था तो उनके मुकदमे की पैरवी के गोविंद बल्लभ पंत ने पूरी कोशिश की। 1928 में साइमन कमीशन के बहिष्कार और 1930 में नमक सत्याग्रह में भी गोविंद बल्लभ पंत ने हिस्सा लिया था। .मई 1930 में गोविंद बल्लभ पंत देहरादून जेल में भी गए थे। 1937 में गोविंद बल्लभ पंत संयुक्त प्रांत के प्रथम प्रधानमंत्री बने थे। 1946 में उत्तर प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री भी गोविंद बल्लभ पंत थे। 10 जनवरी 1955 को गोविंद बल्लभ पंत भारत के चौथे गृह मंत्री बने। 7 मार्च 1961 को गोविंद बल्लभ पंत का निधन हो गया था। पंत जी एक विद्वान क़ानून ज्ञाता होने के साथ ही महान नेता व महान अर्थशास्त्री भी थे। कृष्ण चंद्र पंत उनके पुत्र थे।