राजनीति
चुनाव में होता है सामाजिक समरसता और भाषायी शुचिता पर सबसे बड़ा हमला
राजीव लोचन साह, नैनीताल। जब भी चुनाव की रुत आती है तो सबसे बड़ा हमला सामाजिक समरसता और भाषायी शुचिता पर होता है। चुनाव क्षेत्र से यह छूत की बीमारी दूर.दूर तक चली जाती है। इस दौर में यह मान लिया गया है कि चुनावी सफलता का सबसे अच्छा तरीका धार्मिक अथवा जातीय ध्रुवीकरण का है। अतः नेताओं की सारी बयानबाजी इसी को लेकर होती है। सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी में तो यह चुनाव जीतने के साथ.साथ पार्टी के भीतर पदोन्नत होने का भी तरीका बन गया है। अब देश का प्रधानमंत्री कपड़ों के आधार पर पहचानने की बात करेए उसके मंत्री श्मशान. कब्रिस्तान या देश के गद्दारों को गोली मारने का नारा बुलन्द करें तो पार्टी का निचले स्तर का नेता भी आश्वस्त हो जाता है कि वह भी ऐसा ही करेगा तो पार्टी के अन्दर उसका महत्व बढ़ जायेगा। इसीलिये उसके द्वारा सामाजिक विद्वेष पैदा करने की कोशिशें की जाती हैं। अभी उत्तर प्रदेश के डुमरियागंज के पूर्व भाजपा विधायक राघवेन्द्र प्रताप सिंह ने एक सार्वजनिक सभा में हिन्दू युवकों को ललकारा कि तुम दस मुसलमान लड़कियाँ लेकर आओ, शादी हम करायेंगे और सुरक्षा की गारंटी भी देंगे। ऐसे गर्हित विचार व्यक्त करने वाले व्यक्ति के विरुद्ध न उसकी पार्टी ने कोई कार्रवाही करना उचित समझा और न ही कानून लागू करने वाली एजेंसियों ने। इधर उत्तराखंड के रामनगर में एक स्थानीय भाजपा नेता और उसके साथ आये उपद्रवियों ने गोमांस लाये जाने के शक में तीन पिकप वाहनों को रोक कर उनके चालकों को बुरी तरह पीटा और गाड़ियों में तोड़फोड़ की। ये वाहन नियमानुसार ही अपनी गाड़ियों में मांस लेकर आ रहे थे। इस घटना की अच्छी बात यह रही कि पुलिस ने तत्काल हस्तक्षेप किया और 35 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया। इससे भी ज्यादा राहत देने वाली बात यह रही कि हाईकोर्ट ने इस प्रकरण में आरोपित भाजपा नेता की भूमिका की जाँच करने के आदेश दिये हैं। मगर ऐसी गतिविधियों पर अंकुश तो अपराधियों के दंडित होने पर ही लग सकेगा। नोट-लेखक वरिष्ठ पत्रकार व नैनीताल समाचार पत्र के संपादक हैं।



























































