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राजनीति

कांग्रेस की जीत ने उत्तराखंड में एक अलग राजनीतिक हलचल पैदा की

सीएन, देहरादून। उत्तराखंड के दो विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव के परिणाम बड़े संकेत दे रहे हैं। मंगलौर और बद्रीनाथ विधानसभा सीट पर उपचुनाव हुए थे। इसमें से मंगलौर विधानसभा सीट बहुजन समाज पार्टी विधायक हाजी सरवत करीम अंसारी के निधन के बाद खाली हुई थी। वहीं, बद्रीनाथ विधानसभा सीट के पूर्व कांग्रेस विधायक राजेंद्र सिंह भंडारी ने लोकसभा चुनाव के दौरान पाला बदला। भाजपा के साथ हो लिए। इस कारण यह सीट खाली हुई थी। इस कारण दोनों सीटों पर 10 जुलाई को उपचुनाव हुआ था। शनिवार को जारी विधानसभा उपचुनाव के परिणाम में दोनों सीटों पर कांग्रेस ने जीत दर्ज कर ली है। उपचुनाव के रिजल्ट ने उत्तराखंड में एक अलग राजनीतिक हलचल पैदा कर दी है। 2017 और 2022 के विधानसभा चुनाव में लगभग दो-तिहाई से अधिक सीट जीतने वाली भाजपा को बड़ा झटका लगा है। 2014 के बाद बाद से प्रदेश में यह पहला मौका है, जब कांग्रेस पार्टी को किसी भी चुनाव में भाजपा से अधिक सीटें आई हैं। या यूं कहें कि उन्होंने भाजपा को कोई भी सीट जीतने नहीं दी है। बद्रीनाथ सीट पर भाजपा ने कांग्रेस उम्मीदवार को तोड़कर कमल खिलाने की योजना तैयार की थी। उसमें पार्टी सफल नहीं रही। ऐसे में दूसरे दलों के विधायक तोड़कर कमल खिलाने की मुहिम वाली रणनीति पर अब सवाल खड़े होने लगे हैं। वहीं, बहुजन समाज पार्टी का गढ़ माने जाने वाले मंगलौर विधानसभा सीट पर भी कांग्रेस ने अपना कब्जा जमा लिया है। दरअसल, बद्रीनाथ और मंगलौर विधानसभा सीट पर अल्पसंख्यक और दलित आबादी बड़ी संख्या में है। इस कारण यहां पर भाजपा को जीत दर्ज करने में मशक्कत होती रही है। 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने बद्रीनाथ सीट पर कब्जा किया था। मंगलौर और बद्रीनाथ सीट 2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा था। मंगलौर विधानसभा सीट पर बसपा उम्मीदवार सरवत करीम अंसारी ने कब्जा जमाया था। वहीं, बद्रीनाथ सीट कांग्रेस के पाले में गई थी। विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस की जीत ने यह साफ किया है कि दलित और मुस्लिम वर्ग का वोट अब बहुजन समाज पार्टी की तरफ जाने की जगह कांग्रेस की तरफ शिफ्ट हो रही है। यह एक बड़ा बदलाव होता इस उप चुनाव में दिखा है। अब तक दलित-आदिवासी समाज में भाजपा अपनी पकड़ बनती दिख रही थी, लेकिन कांग्रेस एक बार फिर उनके बीच पैर जमा रही है। उत्तराखंड में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू किए जाने के बाद से पुष्कर सिंह धामी एक बड़े नेता के तौर पर उभर रहे हैं। पिछले दिनों आई नीति आयोग की एसडीजी सूचकांक में उत्तराखंड को बड़ी सफलता मिली है। प्रदेश पहले पायदान पर दिख रही है। इस सब के बाद भी भाजपा प्रदेश की एक भी सीट जीतने में कामयाब नहीं रही। इसके पीछे का सबसे बड़ा कारण विपक्ष की तगड़ी रणनीति को माना जा रहा है। विपक्ष ने चुनाव के दौरान राहुल गांधी की ओर से उठाए जाने वाले मसलों को जोरदार तरीकों से जनता के बीच रखा। राहुल गांधी ने जिस प्रकार से युवाओं के बेरोजगारी के मुद्दे को उठाया है, उससे प्रदेश का युवा वर्ग को जोड़ने की कोशिश की गई। वहीं, उत्तर प्रदेश में जिस प्रकार से अखिलेश यादव और राहुल गांधी ने मिलकर पिछड़ा दलित अल्पसंख्यक यानी पीडीए पॉलिटिक्स को अपनाया। वह उत्तराखंड की जमीन पर भी काम करता दिख रहा है। इसकी काट सीएम पुष्कर सिंह धामी नहीं तलाश पाए। उपचुनाव के परिणाम कुछ यही संकेत देते दिखाई दे रहे हैं।

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