जन मुद्दे
पहाड़ों में मौसम के तेवर देख काश्तकारों की चिन्ता बढ़ी
पश्चिमी विशोभ के कारण जनवरी से अच्छी वर्षा व बर्फवारी की संभावना
सिंचाई सुविधा अधिक नहीं होने से पहाड़ों में 80 प्रतिशत कृषि वर्षा पर निर्भर
सीएन, नैनीताल। उत्तरांखड में इस बार भी मौसम के तेवर की पुनरावृत्ति होने से खासतौर पर पर्वतीय क्षेत्र के काश्तकारों व बागवानों की चिन्ता बढ़ने लगी है। वर्षा ऋतु खत्म होने के बाद अब तक वर्षा नहीं होने से कृषि व बागवानी प्रभावित हो सकती है। उपराऊ कृषि क्षेत्रों में अब तक रबी की फसल की बुआई की तैयारी तक नहीं हो सकी है। बागवानी के लिए वर्षा व ऊंचाई वाले इलाकों में बर्फवारी आवश्यक होती है। लेकिन वह दूर-दूर तक नहीं है। जलवायु परिवर्तन पर शोध कर रहे वैज्ञानिकों का कहना है कि इस बार देर से सही बल्कि शीतकाल में भरपूर वर्षा होगी। साथ ही अच्छी बर्फबारी भी होगी। इस बार पश्चिमी विशोभ का प्रभाव भी बढ़ रहा है। मौसम चक्र के अनुसार दिसम्बर अन्त से पश्चिमी विशोभ के सक्रिय होने के आसार है। बहरहाल मौसम वैज्ञानिक ने कई बार जो पूर्वानुमान दिये हैं उसके उलट ही हुए है। लिहाजा काश्तकार वर्तमान स्थितियों से काफी चिन्तित हैं। पर्वतीय क्षेत्र में नवम्बर व दिसम्बर माह से रबी की फसल बुआई का कार्य शुरू होता है। वहीं बागवानी के तैयारी भी इन्हीं दिनों की जाती है। अच्छे उत्पादन के लिए बागानों में इन दिनों नमी के लिए वर्षा व बर्फबारी की भी जरूरत होती है। लेकिन अभी तक वर्षा ऋतु के बाद वर्षा अब तक नहीं हो पाई है। इस बार पिछले मौसम की तरह पुनरावृत्ति होने की आशंका काश्तकारों में बनी हुई है। बीते वर्ष भी बरसात के मौसम के बाद न तो वर्षा हुई और न ही पर्याप्त बर्फबारी हुई। पर्वतीय क्षेत्रों में सिंचाई सुविधा अधिक नहीं होने से यहां 80 प्रतिशत कृषि व बागवानी वर्षा पर निर्भर है। लेकिन पिछले तीन वर्षों से रूखे मौसम ने काश्तकारों की कमर ही तोड़ दी है। सरकार को पर्वतीय क्षेत्र के कई जिलों को सूखाग्रस्त घोषित करना पड़ा। इस वर्ष भी मौसम ने पुनरावृत्ति की हैं वर्षा ऋतु के बाद नैनीताल सहित अन्य जिलों में वर्षा तक नहीं हुई है। वर्तमान में जब रबी की फसल बोने का समय आ चुका है तो उपराऊ क्षेत्र के काश्तकार आसमान की ओर टकटकी लगाये हुए है। किसानों ने अब तक खेतों की जुताई तक नहीं की है। इस वर्ष भी मौसम के तेवर यही रहे तो किसानों को भारी नुकसान हो सकता है। पहाड़ों में कई दूरस्थ इलाकों में खेतों से ही ग्रामीण दो जून की रोटी जुटाते हैं। गढ़वाल व कुमाऊं के ऊंचाई वाले इलाकों में बर्फवारी हो चुकी है। लेकिन मध्य हिमालय क्षेत्र अभी सूखा पड़ा है।