जन मुद्दे
अंग्रेजों के घमंड को चूर करने वाले राजा की फैमिली की हालत बेहद खराब, रोटी को तरस रही पौत्रवधु सुषमा
सीएन। पश्चिम सिंहभूम/रांची। साल 1857 में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में झारखंड पोड़ाहाट के राजा अर्जुन सिंह ने देश की आजादी के लिए अपना सर्वत्र न्योछावर कर दिया, लेकिन आजादी के बाद इस परिवार के साथ पूरा न्याय नहीं हो सका। जिस राज परिवार ने अपनी प्रजा के हितों की रक्षा और अपने स्वाभिमान के लिए अंग्रेजी शासन से लोहा लेने का काम किया, उस परिवार के सदस्य आर्थिक संकट से गुजर रहे हैं।
कभी राजा अर्जुन सिंह के अधीन हजारों लोग करते थे काम
अमर शहीद अर्जुन सिंह की उत्तराधिकारी पौत्रवधु सुषमा सिंह आज गरीबी के जंजाल में फंस कर अंधेरे कमरे में बीमारी से लड़ रही हैं। पोड़ाहाट (चक्रधरपुर) के राजा अर्जुन सिंह के अधीन कभी हजारों लोग काम करते थे, उनके भरोसे हजारों लोगों का परिवार चलता था, परंतु आज उनकी पौत्रवधु 89 वर्षीय सुषमा सिंह देवी एक अंधेरे कमरे में रहते हुए कई बीमारियों से जूझ रही हैं। 20 अगस्त को फिसल कर गिर जाने से उनके पैर में सूजन है और अब उन्हें चलने-फिरने में भी काफी कठिनाई हो रही है।
गृह सचिव ने कोष से सहायता राशि उपलब्ध कराने का दिया है आदेश
इस संबंध में झारखंड सरकार से मान्यता प्राप्त स्वतंत्रता सेनानी कोष के सदस्य लाल प्रवीर नाथ शाहदेव ने पश्चिमी सिंहभूम के उपायुक्त को पत्र लिखकर आवश्यक सहायता उपलब्ध कराने का आग्रह किया है। प्रवीरनाथ शाहदेव बताते हैं कि साल 2021 में ही राज्य के गृह विभाग के प्रधान सचिव राजीव अरुण एक्का की ओर से सभी जिलों के उपायुक्तों को पत्र लिखकर यह स्पष्ट दिशा निर्देश दिया है कि शहीद सेनानियों के आश्रित परिवार की दयनीय स्थिति से संबंधित समाचार प्रकाशित होने से सरकार की छवि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
वहीं वर्तमान में निर्धनता और आर्थिक विपन्नता का सामना कर रहे इन शहीद स्वतंत्रता सेनानी के आश्रितों को चिकित्सा, शिक्षा, शादी-विवाह और आवास के लिए अनुदान राशि उपलब्ध कराने के लिए झारखंड सेनानी कोष का गठन किया गया है। इस राशि से सभी जरूरतमंद परिवार को सदयता पहुंचाना है, परंतु जिलों में पदस्थापित अधिकारियों द्वारा इस दिशा में समुचित ध्यान नहीं देने से आज कई शहीद परिवार के आश्रितों को विभिन्न परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।
10 माह पहले घर की बिजली काट दी गई
बिजली विभाग की ओर से सुषमा सिंह देवी के घर की बिजली 10 महीने पहले ही काट दी गयी थी। पैसा बकाया होने के कारण बिजली काटी गयी थी। सरकारी अधिकारियों और बिजली विभाग से परिवार ने बिजली देने का अनुरोध किया, लेकिन अधिकारियों ने उनकी एक नहीं सुनी, आज पूरा परिवार अंधेरे में रहने के लिए मजबूर है।
मकान की स्थिति भी जर्जर
कभी महलो में रहने वाले शहीद परिवार की सदस्य सुषमा देवी के मकान की स्थिति भी अब पूरी तरह से जर्जर हो चुकी है। काफी पुराना खपरैल के मकान की दशा-काफी खराब है। कभी भी मकान धंस सकता है। घर में रहने के लिए पर्याप्त जगह नहीं है, दीवार टूट-फूट गयी है।
अर्जुन सिंह के छोटे पुत्र की पौत्रवधु है सुषमा सिंह
राजा अर्जुन सिंह के दो बेटे थे, उनके दो बेटे नरपत सिंह और महेंद्र सिंह थे। नरपत सिंह की दो बेटियां थीं, जबकि महेंद्र सिंह के 5 बेटे थे, उन्हीं में से एक बड़े बेटे की पत्नी सुषमा सिंह हैं। 89 वर्षीय सुषमा सिंह के बड़े बेटे का इसी साल जनवरी में देहांत हो गया, जबकि दो बेटों की मौत पहले ही हो चुकी थी। अब भी तीन बेटे हैं, लेकिन उनकी आर्थिक दशा अच्छी नहीं हैं, वहीं एक विकलांग भी हैं।
राजा अर्जुन सिंह की आजीवन कारावास में बनारस जेल में हुई थी मौत
प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायकों में से एक राजा अर्जुन सिंह पोड़ाहाट राज्य के राजा थे। स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने की वजह से अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर आजीवन कारावास की सजा देकर बनारस की जेल में भेज दिया। जहां 1890 में जेल में ही उनकी मौत हो गयी। वहीं 1857 की इस लड़ाई में भाग लेने वाले उनके 75 सैनिकों को रांची के शहीद चौक में एक-एक कर फांसी दी गयी थी। इसके अलावा उनके सूबेदार जग्गू दीवार को भी चक्रधरपुर के निकट ही सोनवा नामक स्थान में फांसी दी गयी थी।
अर्जुन सिंह ने किया था अंग्रेजों के घमंड को चकनाचूर
अर्जुन सिंह के बारे में इलाके के लोग बताते हैं कि वह बेहद स्वाभीमानी राजा थे। 17 जनवरी 1858 को कर्नल फॉस्टर के अधीन शेखवत्ती बटालियन चाईबासा भेजी गयी। अत्याधुनिक हथियारों के साथ आई अंग्रेजी फौज सेन तीन-चार दिन में ही अर्जुन सिंह के चक्रधरपुर स्थित गढ़ और चक्रधरपुर गांव को नष्ट कर ढेरों कोल-कुड़मियों और स्थानीय लोगों की हत्या कर दी। इतना कल्तेआम के बाद भी अर्जुन सिंह ने अंग्रेजों के सामने हथियार नहीं डाले। कुछ समर्थकों लेकर अंग्रेजों का सामना करते रहे। अर्जुन सिंह मार्च 1858 से लेकर जून तक अंग्रेजों को मुंहतोड़ जवाब देते रहे। ज्यादातर साथियों के मारे जाने के बाद अर्जुन सिंह जंगल में छुप गए। गिरफ्तार किए गए लोगों को फांसी दे दी गई। इसके बाद भी अर्जुन सिंह अपने स्तर से अंग्रेजों को जवाब देते रहे। आखिरकार अंग्रेजों ने ससुर मयूरभंज के साथ मिलकर छल से अर्जुन सिंह को अरेस्ट कर लिया और उन्हें बनारस की जेल में कैद कर दिया। इस तरह सिंहभूम का सिपाही विद्रोह थम गया।