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उत्तराखण्ड

विधानसभा चुनाव 2022 : क्या खो जायेंगे रोजगार व स्थानीय मुद्दे

उत्तराखंड में रोजगार, पलायन, कृषि की समस्याओं का आज तक नही हुआ निदान
जंगली जानवरों से कृषि उत्पादन प्रभावित, बेरोजगारी ने बढ़ाई पलायन की दर
चन्द्रेक बिष्ट, नैनीताल।
आज राज्य बने 21 साल हो गये। इन सालों में 2002 से लेकर अब तक राज्य में कई विधान सभा चुनाव सम्पन्न हो गये। 12 वीं विधान सभा चुनाव आसन्न है। राज्य बनने के बाद विधान सभा चुनावों में युवाओं को रोजगार देने का मुद्दा तो राष्ट्रीय दलों के घोषणापत्र में रहा लेकिन वह राष्ट्रीय मुद्दों में कहीं छिप से गये। इस बार फिर चुनाव होने जा रहे है। राष्ट्रवाद व राष्ट्रीय मुद्दों पर तो बात हो रही है लेकिन रोजगार, पलायन, कृषि के मुद्दों पर अब तक दलों की क्या एंजेडा है वह साफ नही है। हांलाकि अभी दलों के घोषणा पत्र जारी नही हुए है। देखना है कि रोजगार, पलायन, कृषि के मुद्दों पर उनके घोषणा पत्र क्या कहते है। उत्तराखंड राज्य बनने के संघर्ष और अब तक के विकास को देखें तो देवभूमि के लोगों ने कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही पार्टियों पर भरोसा दिखाया है। इंडस्ट्री बस नहीं सकती, पर्यटन कोरोना के चलते तबाह हो गया है। भाजपा कांग्रेस इस बार भी आमने सामने होंगे। देखना यह है कि इस बार दानों दल किन मुद्दों पर जनता के सामने आते है। लेकिन इतना तय है कि दलों के अब तक के रूख से रोजगार, पलायन, कृषि के मुद्दे फिर स्थानीय स्तर पर गौंण हो जायेंगे। उत्तराखंड के परिप्रेक्ष्य में बात की जाय तो यहां हरिद्वार, उधमसिंह नगर व देहरादून को छोड़ नैनीताल के पहाड़ी इलाके सहित 10 जिले पूरी तरह पर्वतीय है। यहां रोजगार, पलायन, कृषि बड़ी समस्या के रूप में उभरी है। राज्य बनने के बाद आज 21 साल में भी इन समस्याओं का समाधान नही हो पाया। हालत तो यह रही कि इन समस्याओं का समाधान तो नही हुआ यह समस्या और अधिक बढ़ गई। पर्वतीय क्षेत्रों में मौसम की बेरूखी व जंगली जानवरों के कारण कृषि उत्पादन पूरी तरह प्रभावित हो चुका है। बेरोजगारी ने पलायन की दर बढ़ा दी। आज हालत यह है कि पड़ोसी राज्य हिमाचल में कृषि सुरक्षा की गारंटी सरकार ने ली है। अनाज, फल व सब्जी उगाने में वह अव्वल है। उत्तराखंड में कृषि सुरक्षा के लिए केवल कागजों में नीतियां बनाई गई है। जमीनी हकीकत यह है कि पहाड़ों में लोगों ने कृषि कार्य करना ही छोड़ दिया है। इसका सीधा परिणाम हुआ कि राज्य के कई गांवों में तेजी से पलायन हुआ। राज्य बनने के बाद उत्तराखंड इस मामले में पड़ोसी राज्य हिमाचल से बेहद फिसड्डिी साबित हुआ है। यह हमारे राजनैतिक दलों व उनके कर्ताधर्ताओं की नाकामी ही दर्शाते है। अब चुनाव की बेला आ गई है तो यह दल फिर जनता को रोजगार, पलायन, कृषि के मुद्दों पर फिर भटकायेंगे। यहां यह बताना जरूरी है कि नौकरी उत्तराखंड के लोगों की पहली प्राथमिकता रही है। क्यों कि कृषि व नीजि क्षेत्र में रोजगार के अवसर कम होने के कारण यहां सरकारी व अर्द्ध सरकारी नौकरी पाना युवाओं का सपना है। लेकिन राज्य बनने के बाद नौकरी के अवसर नही के बराबर हो चुके है। विंडबना है कि जब-जब चुनाव आये राजनैतिक दलों ने इस मुद्दे को भावनात्मक हथियार की तरह इस्तेमाल किया। इसके विपरित 21 सालों में भाजपा व कांग्रेस की राज्य व केन्द्र में सरकारें आई लेकिन रोजगार के अवसर नहीं खुले। हालत यह है कि आज राज्य के 13 जिलों में 9.लाखों बेरोजगार पंजीकृत है। हालत तो यह है कि ग्रामीण क्षेत्रों में अपंजीकृत बेरोजगार मजदूरी के लिए शहरों में भटक रहे है या फिर प्रदेश से बाहर पलायन कर चुके हैं। यह भी कडुवा सच है कि राज्य बनने के बाद रोजगार तो नही बढ़ा लेकिन पलायन की गति बढ़ गई। एक अनुमान के अनुसार ऐसे बेरोजगारों की संख्या करोड़ से अधिक है। पंजीकृतों की संख्या प्रदेश में 9.26 लाख पहुंच गई है। जो निरंतर बढ़ रही है।
रोजगार के मुद्दे पर भाजपा व कांग्रेस फिर अपने तर्क रखेंगे
नैनीताल।
वर्ष 2017 में हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा का रोजगार देने का नारा हिट रहा लेकिन इन पांच सालों में बेरोजगार खुद को ठगा सा महसूस कर रहे है। इसी तरह रोजगार के नाम पर कांग्रेस ने भी कोरे नारे लगाये। उत्तराखंड में रोजगार के मुद्दे पर भाजपा व कांग्रेस अपने-अपने तर्क रखेंगे। सवाल बेरोजगारों की ओर से सवाल पूछे जायेंगे कि इन 21 सालों में कांग्रेस व भाजपा सत्ता में रहे लेकिन रोजगार के अवसर क्यों नही खुले। इन सालों मंे आज भी राज्य की एक हजार की जनसंख्या में 70 से अधिक युवा बेरोजगार क्यों है। इन सवालों का जवाब इन चुनावों में राजनैतिक दलों को देना होगा। आंकड़ों में नजर डाली जाय तो राज्य में इस समय 21.20 लाख युवा वोटर है। इनमें अधिकांश युवा बेगरोजगार है। आज अकेले नैनीताल जिले में 1,94337 युवा वोटर व उधम सिंह नगर में 3,78519 युवा वोटर है। इनमें बेरोजगार युवा, अध्ययनरत युवा व नीजि क्षेत्र में दिहाड़ी में कार्य कर रहे युवा शामिल है। राज्य में चुनावों को प्रभावित करने में इन युवाओं की महत्वपूर्ण भूमिका से इंकार रनही किया जा सकता है। अब देखना यह है कि आने वाले दिनों में युवाओं को राष्ट्रीय दल कितना भ्रमित करने में सफल होते है।
कांग्रेस द्वारा स्थापित सिडकुल में शिक्षित बेरोजगार बने मजदूर
नैनीताल।
वर्ष 2000 में उत्तराखंड राज्य की स्थापना होने के बाद सत्तासीन दलों ने रोजगार का मुद्दा प्रमुख रूप से उठाया था। 2002 में उत्तराखंड व 2004 में लोक सभा चुनावों में केन्द्र में कांग्रेसनीत चुनी हुई सरकारें आई। उत्तरा,ांड राज्य बनने के बाद राज्य में बारी-बारी से कांग्रेस व भाजपा सत्ता में आई। रोजगार की दिशा में हरिद्वार व उधम सिंह नगर में सिडकुल के माध्यम से उद्योगों की स्थापना कर प्रदेश के युवाओं व बेरोजगारों को 70 प्रतिशत रोजगार दिये जाने की बात भी कहीं लेकिन ऐसा नहीं हो सका। सिडकुल उद्योगों में जो भी शिक्षित युवा रोजगार प्राप्त कर सके उनकी हालत आज एक दयनीय मजदूर की तरह है। इस रोजगार की दीर्घकालीन गांरटी भी नहीं है। इसके बाद 2017 में भाजपानीत सरकार आई। लेकिन रोजगार के नाम पर वह कांग्रेस से दो कदम आगे नही बढ़ सकी। हां इतना जरूर हुआ कि छोटे पैमाने पर स्कील इंडिया के तहत युवाओं ने अपने उद्यम लगाये। लेकिन राज्य के पर्वतीय जिलों में इसका असर कम ही रहा। आज प्रदेश का युवा रोजगार के लिए तरस रहा है। उसके सामने पलायन करने के अलावा कोई विकल्प भी नही है। कुल मिला कर आसन्न लोक सभा चुनावों में सभी सियासी दलों को शिक्षित बेरोजगारों के सवालों का जवाब देना ही होगा। रोजगार नही होने की दशा में आज पहाड़ की जवानी पलायन करने को मजबूर है।

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