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उत्तराखण्ड

अगस्त क्रांति : 1929 में गांधी के कुमाऊं दौरे के बाद ही आन्दोलनों में आई धार

नैनीताल में हैली से मुलाकात कर जनता की समस्याओं का निराकरण कराया
चन्द्रेक बिष्ट, नैनीताल।
इतिहासकारों के अनुसार ब्रिटिश सम्राज्य के खिलाफ कुमाऊं में स्वतन्त्रता आदोलन के की पे्ररणा महात्मा गांधी ने दी थी। सन् 1929 में नैनीताल सहित कुमाऊं का दौरा किया। इस दौरान उनके आह्वान पर नैनीताल ही नही बल्कि कुमाऊं भर में आजादी के लिए अपने जेवर तक दान कर दिये। गांधी जी ने इसके बाद 1931 में नैनीताल में पांच दिन के प्रवास पर रहे। इस दौरान उन्होंने तत्कालीन गर्वनर सर मालकम हैली से मुलाकात कर जनता की समस्याओं का निराकरण भी करवाया। लोग अपनी समस्याओं के लिए कुमाऊं भर से नैनीताल पहुंचते थे। ताकुला आश्रम नैनीताल में इस दौरान पूरा वातावरण गांधीमय हो जाता था। गांधी जी के इन दो दौरों के बाद पूरे कुमाऊं में आजादी के लिए आंदोलन का वातावरण बन चुका था। इस कुमाऊं के दौरे के बाद ही सालम व सल्ट में बड़े आन्दोलन हुए। यहां कई लोग शहीद हो गये। गांधी ने देश में जो भी आंदोलन चलाये उसका कुमाऊं में व्यापक असर रहा। संयुक्त प्रान्त का कुमाऊं का दौरा गांधी जी ने 11 जून 1929 को अहमदाबाद से चल कर शुरू किया था। 13 जून को वह बरेली पहुंचे यहां एक बड़ी सभा में उन्होंने हिन्दू मुस्लिम एकता व खादी का संदेश दिया। 14 को वह हल्द्वानी पहुंचे तथा एक सभा की 14 जून को वह नैनीताल के ताकुला ग्राम पहुंचे। यहां वह स्वंय गोविन्द लाल साह के मोती भवन में ठहरे। 15 जून को नैनीताल में सभा की। 15 जून को अल्मोड़ा रवाना हाने के दौरान भवाली में उनका लोगों ने जोरदार स्वागत किया। इस दौरान उन्होंने लोगों को खादी अपनाने का संदेश दिया। 22 जून को कुली उतार आन्दोलन में अग्रणी रहे बागेश्वर का भ्रमण किया। यहां स्वतंत्रता सेनानी शान्ति लाल त्रिवेद्धी, बद्रीदत्त पाण्डे, देवदास गांधी, देवकीनंदन पांडे व मोहन जोशी से मंत्रणा की। 15 दिन प्रयास के दौरान उन्होंने कौसानी में गीता का अनुवाद भी किया। गांधी जी दूसरे बार 18 जून 1931 को नैनीताल पहुंचे और पांच दिन के प्रवास के दौरान उन्होंने कई सभाएं की। इस दौरान उन्होंने संयुक्त प्रांत के गवर्नर सर मालकम हैली से राजभवन में मुलाकात कर जनता की समस्याओं का निराकरण कराया। उनसे प्रांत के जमीदार व ताल्लुकेदारों ने भी मुलाकात की और गांधी के समक्ष अपना पक्ष रखा। इस यात्रा के बाद उत्तर प्रदेश व कुमाऊं में आन्दोलन तेज हो गया। अल्मोड़ा शहर फाटक में 23 जून 1942 को मंडल कांग्रेस की एक बड़ी सभा आयोजित की गईए जिसमे कुमाऊं क्षेत्र के प्रसिद्ध नेता हर गोविंद पंत जी ने झंडा फहराया। बाद में राजस्व पुलिस ; पटवारी द्ध ने झंडा उतार कर भीड़ को तीतर बितर कर दिया। फिर 1 अगस्त 1942 को सालम के 11 स्थानों पर झंडा फहराने का निर्णय हुवा। 6 अगस्त को भारत छोड़ो और करो या मरो आंदोलन का प्रस्ताव पास होने के बाद 9 अगस्त को महात्मा गांधी जी को गिरफ्तार कर लिया गया। और उत्तराखंड के प्रतिनिधि गोविंद बल्लभ पंत जी को भी हिरासत में ले लिया गया। पूरे देश मे नेताओ और कार्यकर्ताओं की धरपकड़ शुरू हो गई। इसी धर पकड़ के लिए पटवारियों का दल एराम सिंह आजाद के घर सांगड गावँ में पहुच गया। मगर राम सिंह आजाद पटवारी दल को चकमा देकर गायब हो गए। उस समय सालम क्षेत्र के गावों में लगभग 200 कौमी एकता दल के सदस्य सक्रिय थे। वे पूरी ताकत से कैम्प लगा कर एक्षेत्रीय जनता को जागरूक कर रहे थे और ब्रिटिश सरकार भी इनको रात को गुपचुप पकड़ने की योजना बना रही थी।
गांधी ने कुमाऊं के लोगों से कहा था कष्टों उपाय है आत्मशुद्धि
नैनीताल। गांधी ने अपने पहले कुमाऊं दौरे के दौरान नैनीताल में आयोजित सभा को संबोधित कर कहा था कि मैंने आप लोगों के कष्टों की गाथा यहां आने से पहले से सुन रखी थी। किन्तु उसका उपाय तो आप लोगों के हाथ में है। यह उपाय है आत्मशुद्धि। यह भाषण उन्होंने ताड़ीखेत में भी दिया था। उन्होंने अपनी सभाओं में पर्वतीय अचलों के गरीबी व खादी के बावत भाषण दिये। नैनीताल प्रवास के दौरान उन्होंने ताकुला में गांधी मंदिर की स्थापना की। 15 जून को उन्होंने भवाली में सभा कर खादी अपनाने पर जोर दिया। 16 जून को वह ताड़ीखेत में प्रेम विद्यालय पहुंचे वहां एक बड़ी सभा में आत्मशुद्धि व खादी का संदेश दिया। 18 जून को वह अल्मोड़ा पहुचे जहां नगर पालिका की ओर से उन्हें सम्मान पत्र दिया गया। इसके बाद उन्होंने 15 दिन कौसानी में बिताये कौसानी की खूबसूरती से मुग्ध होकर उसे भारत का स्वीट्जरलैड नाम दिया।

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