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उत्तराखण्ड

बागेश्वर उपचुनाव में गिरफ्तारी पर हाईकोर्ट की रोक, बॉबी पंवार ने कहा सरकार ने किया था संवैधानिक अधिकारों का हनन

सीएन, नैनीताल। बागेश्वर उपचुनाव के दौरान उत्तराखंड बेरोजगार संघ के अध्यक्ष बॉबी पंवार और उनके चार साथियों की गिरफ्तारी का मामला अब हाईकोर्ट में गरमा गया है। बॉबी पंवार और उनके साथी कार्तिक उपाध्याय, राम कंडवाल, भूपेंद्र कोरंगा, और नितिन दत्त ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर इसे अपने लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन बताया है। नैनीताल हाईकोर्ट ने इस गिरफ्तारी पर रोक लगाते हुए पुलिस को ठोस आधार प्रसतुत करने का निर्देश दिया है।
गत 25 अगस्त को बागेश्वर उपचुनाव प्रचार के दौरान बॉबी पंवार और उनके साथी नारेबाजी और पर्चे बांट रहे थे। पुलिस ने उन्हें बिना अनुमति के पर्चे बांटने और धारा 144 के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए गिरफ्तार कर लिया था। देर शाम को स्थानीय अदालत ने उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया। इसके बाद बॉबी पंवार और उनके साथियों ने इसे लेकर हाईकोर्ट में याचिका दायर की। बॉबी पंवार के वकील ने हाईकोर्ट में दलील दी कि यह गिरफ्तारी न केवल कानून का गलत प्रयोग है, बल्कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का हनन भी है। उनके अनुसार उपचुनाव के दौरान लागू धारा 144 के बावजूद, पर्चे बांटने के लिए किसी विशेष अनुमति की आवश्यकता नहीं होती। पुलिस का यह दावा कि पर्चे में गलत तथ्य थे, बिना ठोस सबूतों के है। पुलिस को पहले तथ्य की जांच करनी चाहिए थी। गिरफ्तारी के समय बॉबी और उनके साथी धार्मिक कार्य के लिए बागनाथ मंदिर जा रहे थे, ऐसे में गिरफ्तारी का कारण समझ से परे है। वही बागेश्वर पुलिस का कहना है कि उपचुनाव के दौरान नारेबाजी और पर्चे वितरण से कानून-व्यवस्था बिगड़ने का खतरा था। पुलिस का आरोप है कि बॉबी पंवार ने पुलिस को धमकी दी कि वे बेरोजगार संघ के अध्यक्ष हैं और उन्हें कोई नहीं रोक सकता। इसके बाद पुलिस ने आईपीसी की धाराओं 147, 188, 186 और 171(जी) के तहत मुकदमा दर्ज किया। हाईकोर्ट ने इस मामले में सुनवाई के दौरान कड़ा रुख अपनाया है व पुलिस की कार्रवाई पर सवाल उठाते हुए कहा कि गिरफ्तारी के पीछे पुलिस को ठोस आधार प्रस्तुत करना होगा। कोर्ट ने राज्य के वकील से पूछा कि किस नियम के अंतर्गत धारा 144 का हवाला देते हुए पर्चे बांटने और नारेबाजी करने पर रोक लगाई गई थी। कोर्ट ने यह निर्देश भी दिया कि राज्य के वकील को अगली सुनवाई में यह सिद्ध करना होगा कि किस आधार पर धारा 144 का उल्लंघन हुआ है और क्यों सामान्य, शांतिपूर्ण चुनाव प्रचार की अनुमति नहीं दी गई। अदालत ने कहा कि संविधान के तहत व्यक्तियों को अपने विचार व्यक्त करने का अधिकार है, और बिना पर्याप्त प्रमाण के गिरफ्तारी के आरोप लगाना उचित नहीं है। हाईकोर्ट ने अगली सुनवाई तक गिरफ्तारी के मामलों पर अस्थाई रोक लगाई है और राज्य के वकील को इन आरोपों के समर्थन में ठोस प्रमाण प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है। हाईकोर्ट ने इस मामले की अगली सुनवाई 12 मार्च 2025 को निर्धारित की है। तब तक के लिए कोर्ट ने केस की सभी कार्यवाही पर रोक लगा दी है। इस घटना को लेकर उत्तराखंड में संवैधानिक अधिकारों और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सवाल खड़े हो गए हैं। भारतीय जनता नेशनल दल,उत्तराखंड क्रांति दल,राष्ट्रवादी रीजनल पार्टी व अन्य संगठनों ऐसे प्रकरणों पर कड़ा विरोध जताया है और उनका मानना है कि इस गिरफ्तारी के जरिए बेरोजगार युवाओं की आवाज को दबाने का प्रयास किया गया है। इधर टिहरी से सांसद प्रत्याशी बॉबी पंवार ने कहा, “यह गिरफ्तारी हमारे लोकतांत्रिक अधिकारों पर सीधा हमला है। बेरोजगार युवाओं की आवाज उठाने पर हमारे साथ इस तरह का बर्ताव किया गया है, जो न केवल अनुचित बल्कि कानून के विरुद्ध है।”

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