उत्तराखण्ड
उत्तरकाशी में महिषमुखी चतुर्भुज मानव प्रतिमा खोज निकाली
सीएन, उत्तरकाशी। उत्तरकाशी जिले में एक बार फिर से सिंधु घाटी सभ्यता से मिलते जुलते प्रमाण मिले हैं। खोजकर्ताओं ने जिले के बर्नी गाड़ के निकट के एक मंदिर से महिष मुखी चतुर्भुज मानव प्रतिमा खोज निकाली है। दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र के तत्वावधान में पुरातत्व व इतिहास के शोधार्थियों को यह सफलता मिली है। केंद्र के पदाधिकारियों व विशेषज्ञों ने शुक्रवार को हुई प्रेस वार्ता में इसको लेकर विस्तृत जानकारी दी।
बताया गया कि उत्तरकाशी जिले के बर्नी गाड़ से 10 किमी उत्तर पूर्व में स्थित देवल गांव से पत्थर की इस महिष (भैंसा) मुखी चतुर्भुज मानव प्रतिमा का संबंध सिंधू घाटी की सभ्यता से जोड़ा जा रहा है। विशेषज्ञों के अनुसार इसके लाक्षणिक गुण शिव प्रतिमा के अनुरूप हैं। इस प्रतिमा को सिंधु घाटी सभ्यता से प्राप्त “आद्य शिव ” के निकट माना जा रहा है। पुरातत्वविद् इससे पहले पुरातात्विक साक्ष्यों के आधार पर सिंधु घाटी सभ्यता एवं उत्तराखंड के पारस्परिक संबंधों को रेखांकित कर चुके हैं। बताया गया कि इस दुर्लभ प्रतिमा का प्रकाशन रोम से प्रकाशित प्रतिष्ठित शोध पत्रिका “ईस्ट एंड वैस्ट” के नवीनतम अंक में हुआ है। जो इसके पुरातात्विक महत्व को दर्शाता है।
उन्होंने यह भी बताया कि उत्तराखंड की यमुना घाटी पुरासंपदा की दृष्टि से अत्यंत समृद्ध है। इस क्षेत्र में पूर्व से ही कालसी स्थित अशोक महान का शिलालेख जगतग्राम एवं पुरोला की अश्वमेघ यज्ञ की ईंटों की वेदियां तथा लाखामंडल के देवालय समूह विश्वविख्यात हैं। दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र के तत्वावधान में पुरातत्व से जुड़े शोधार्थियों द्वारा हाल में ही इस क्षेत्र से कई अन्य महत्वपूर्ण पुरातत्त्वीय अवशेष खोजे गये हैं जो कि शोध पत्रिकाओं में प्रकाशनाधीन भी है।
प्रेस वार्ता में सुपरिचित पुरातत्वविद् और दून पुस्तकालय एवम् शोध केंद्र के मानद फैलो प्रो. महेश्वर प्रसाद जोशी ने सिंधु घाटी सभ्यता और उत्तराखंड के परस्पर संबंधों के अनेक महत्वपूर्ण बिंदुओं पर विस्तार से प्रकाश डाला। इसके साथ ही उत्तराखंड पुरातत्व से जुड़े अनेक बिंदुओं की महत्वपूर्ण जानकारी साझा की।
दून पुस्तकालय एवम् शोध केंद्र के निदेशक प्रो. बीके जोशी ने प्रेस वार्ता के शुरूआत में संस्थान के पुस्तकालय तथा शोधप्रभाग के स्तर से आयोजित महत्वपूर्ण सेमिनार तथा अन्य गतिविधियों साथ ही प्रकाशन के संदर्भ में जानकारी दी। उन्होंने यह भी बताया कि संस्थान के स्तर से उत्तराखंड हिमालय के इतिहास, पुरातत्व, समाज व संस्कृति से जुड़े विविध अनछुए पहलुओं को प्रतिष्ठित शोधार्थियों/अध्येताओं व संस्थानों के साथ मिलकर उजागर करने का प्रयास किया जा रहा है। किसी भी क्षेत्र विशेष की समृद्ध ऐतिहासिक विरासत को गहराई से समझने के लिए पुरातात्विक साक्ष्य, भाषा तथा जेनेटिक विज्ञान का गहन अध्ययन करने की आवश्यकता होती हैं। इस मौके पर शोधार्थी, डॉ. प्रहलाद सिंह रावत आदि उपस्थित थे।