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उत्तराखण्ड

नेता प्रतिपक्ष ने राष्ट्रपति के विधानसभा सत्र में संबोधन से पूर्व स्वागत करते हुए जमीनी समस्याओं से अवगत कराया

सीएन, देहरादून। नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य ने आज सोमवार को राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू के विधानसभा सत्र में संबोधन से पूर्व उनका स्वागत करते हुए जमीनी समस्याओं से अवगत कराते हुए कहा कि उत्तराखंड सभी मानकों में एक विशिष्ठ प्रदेश है। भौगोलिक स्थितियों के कारण दक्षिण एशियाई क्षेत्र में उत्तराखण्ड की सीमाऐं नेपाल और तिब्बत से मिलती हैं। उत्तर में गिरीराज हिमालय उत्तराखण्ड और देश की रक्षा में अडिग खड़े हैं।. आज देवताओं की आत्मा वाले हिमालयी प्रदेश उत्तराखण्ड की विधानसभा में आपके स्वागत में संबोधन का अवसर मिलना मैं अपना अहोभाग्य समझता हूं। प्रकृति ने इस राज्य को हिमालय के अलावा हिमालय की गोद से निकलने वाले ‘‘सदा नीरा’’ नदियां दी हैं । ये जीवन दायिनी नदियां सदियों से आधे भारत की धरती की प्यास बुझा रही हैं। परोपकारी हिमालय से निकलने वाली इन नदियों ने अपने साथ लाई हिमालय की मिट्टी में एक सहिष्णु ‘‘गंगा- जमुनी संस्कृति ’’ को भी विकसित किया है। इसी हिमालय के उतुंग शिखरों के बीच हजारों मीटर की ऊंचाई पर असंक्ष्य हिमालयी ताल हैं जिन्हें अधिकांशतया ‘‘पार्वती कुण्डों ’’ के नाम से जाना जाता है , मध्य हिमालय में नैनीताल में आधा दर्जन ताल हैं तो तराई में नानक सागर जैसी मनुष्य निर्मित झीलें हैं। उत्तराखण्ड में स्थित 6 राष्ट्रीय पार्क और 7 वन्य जीव अभ्यारण्य यहां की वन और वन्य जीव सम्पदा की निशानी हैं। इसीलिए उत्तराखण्ड और हिमालय को भारत भूमि ‘‘आक्सीजन टावर’’ भी कहा जाता है। राष्ट्रपति जी , आप भी प्रकृति की बेटी हैं। आपके ग्रह राज्य उड़ीसा ,आपके जिले मयूरभंज पर भी प्रकृति ने बड़ी कृपा की है। आप भी ‘‘ सिमलीपाल राष्ट्रीय पार्क ’’की गोद में खेली-पली-बड़ी हैं । इसीलिए मैंने आपको प्रकृति की बेटी की संज्ञा दी है। आपसे अधिक जल-जंगल और जमीन की महत्ता कौन समझ सकता है। मुझे उत्तराखण्ड की विधानसभा में यह कहते हुए अत्यन्त गर्व हो रहा है कि, उत्तराखण्ड की महिलाऐं भी जंगलों को अपना मायका समझती है। जब-जब इस प्रदेश के जल-जंगल और जमीन पर संकट आया यहां की महिलाओं ने घरों से निकल कर सत्ता से संघर्ष कर अपने मायके याने जंगलों को बचाया है। इतिहास गवाह है कि, विश्व विख्यात पर्यावरण आंदोलन ‘‘चिपकों आंदोलन’’ 26 मार्च 1974 को सीमांत चमोली के एक छोटे जनजाति गांव रैणी से एक माता गौरा देवी के नेतृत्व में आरम्भ हुआ था। गौरा देवी भी आपकी ही तरह प्रकृति और जंगलों की बेटी थी जो जंगलों को बचाने के लिए पेड़ों से चिपक गई थी। उत्तराखण्ड सांस्कृतिक और धार्मिक गुलदस्ता है यहाँ चार धामों में एक श्री बदरीनाथ धाम, 12 ज्योर्तिलिगों में एक श्री केदारनाथ जी , मां गंगा का उद्ग्म स्थल श्री गंगोत्री जी और मां यमनोत्री की पुण्य भूमि श्री यमनोत्री के अलावा यहां सनातन के वैष्णव, शैव व शाक्त मतों के सैकड़ों पवित्र तीर्थ हैं। उत्तराखण्ड में ही 15200 फीट की ऊंचाई में सिक्ख धर्म का पवित्र स्थान हेमुकुण्ड साहिब है ,इसी राज्य के तराई में नानक मत्ता साहिब हैं। उत्तराखण्ड के रुड़की शहर के पास 13 वीं शताब्दी से चिश्ती सिलसिले की पीरान कलिहर दारगाह शरीफ सूफी संत मत की सुगंध बिखेर रही है। उत्तराखण्ड का समाज सदियों से समावेशी समाज रहा है। इस धरती पर जो भी जिस रुप में आया उसे देवभूमि ने सहर्ष स्वीकार किया और सम्मान दिया। विशिष्ठताओं के साथ उत्तराखण्ड राज्य विडम्बनाओं का प्रदेश भी है। हमें प्रकृति की मार भी झेलनी पड़ती है। इस साल की बरसात में गंगोत्री क्षेत्र के धराली, चमोली के थराली, रुद्रप्रयाग की बसुकेदार तहसील के विभिन्न गांवों के साथ-साथ राजधानी देहरादून जैसे सुरक्षित शहर में भी दर्जनों लोगों ने आपदाओं में जान गंवाई है। हमारे जंगल देश-दुनिया के पर्यावरण की रक्षा कर रहे हैं लेकिन जंगली जानवरों के कारण उत्तराखण्ड के अधिकांश भू-भाग में खेती बरबाद हो रही है। हम 25 सालों में उत्तराखण्ड की विधानसभा में दर्जनों पर यह प्रश्न उठा है लेकिन प्रकृति की मार से हम अपने खेत-खलिहानों को नहीं बचा पा रहे हैं। राज्य में वन्य जीव और मानव संघर्ष ही नहीं वन कानून भी आम जन के लिए परेशानी का कारण बन रहे हैं। देश की संसद में 2006 से वन अधिकार कानून पास हो गया है। अन्य राज्यों में वनाधिकार कानून के तहत लाखों वन वासियों और वन आश्रितों को भूमिधरी और सामुदायिक अधिकार मिले हैं। लेकिन उत्तराखण्ड का दुर्भाग्य है कि, आज की तिथि तक 65 प्रतिशत वन भूमि वाले इस राज्य में वनाधिकार कानून के तहत दर्जन भर मामलों में भी अधिकार नहीं मिल पाए हैं। यह सर्वसम्मत है कि ग्रामीण जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा आज भी अपनी न्यूनतम आवश्यकताएँ भी पूरी नहीं कर पा रहा है और गरीबी की रेखा के नीचे जीवन-यापन कर रहा है। उत्तराखण्ड की सबसे बड़ी समस्या पहाड़ी जनमानस का तीव्रगति से शहरों की ओर पलायन है। कृषि योग्य भूमि की अपर्याप्तता, कष्टप्रद जीवन, रोजगार की तलाश, शिक्षा, स्वास्थ्य एवं चिकित्सा सम्बन्धी सुविधाओं के अभाव के कारण पर्वतीय क्षेत्र से पुरुष कार्यकारी शक्ति का पलायन होता जा रहा है। पलायन के कारण गृहस्थी तथा कृषि अर्थव्यवस्था का सम्पूर्ण बोझ महिलाएँ सम्भाले हुए हैं। पर्वतीय भू-भाग में कृषि का मूल आधार महिला है। खेत में बीज खाद निराई, गुड़ाई, फसल, कटाई, मण्डाई, सफाई एवं घर का रख-रखाव सभी कार्य महिलाओं द्वारा किए जाते हैं। खेती, पशुपालन, ईंधन, चारे व पानी आदि की दैनिक व्यवस्था में सुबह से शाम तक जुटे रहना नारी की स्थिति बन गई है। जनसंख्या की वृद्धि, बेरोजगारी की समस्या, कच्चे माल के बहिर्गमन की समस्या, तकनीकी कौशल की कमी, औद्योगीकरण का अभाव, वैज्ञानिक कृषि पद्धति का अभाव, बागवानी एवं उद्यानिकी को समुचित प्रश्रय न मिलने तथा लघु एवं कुटीर उद्योगों की उपेक्षा के परिणामस्वरूप पर्वतीय अर्थव्यवस्था में वांछित सुधार और पर्वतीय जनमानस को आत्मनिर्भरता प्राप्त नहीं हो पाई है। इससे न केवल पलायन की समस्या बढ़ी है वरन सामाजिक-आर्थिक विकास के लिये भी गम्भीर चुनौती पैदा हुई है। क्षेत्रीय विकास के लिये शिक्षा का विशेष महत्त्व होता है। अभी भी शिक्षण संस्थाओं की स्थापना के बावजूद पर्वतीय इलाकों में तकनीकी शिक्षा का पूर्णतः अभाव बना हुआ है। स्थानीय, भौगोलिक एवं भौतिक परिस्थितियों एवं आवश्यकताओं के अनुरूप तकनीकी एवं व्यावसायिक शिक्षा के पाठ्यक्रमों को प्रोत्साहन दिए जाने की आवश्यकता है ताकि युवा वर्ग आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर हो सके। विगत पंचवर्षीय योजनाओं में राज्य के विकास के लिये अरबों रुपयों का प्रावधान किया गया, लेकिन अभी भी प्रदेश की मूलभूत समस्याओं का निराकरण और न ही आर्थिक आत्मनिर्भरता का मार्ग प्रशस्त हो पाया है । जिसके परिणामस्वरूप आज तक स्थानीय जनजीवन के वास्तविक कष्टों का अन्त नहीं हो पाया है। उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्य में स्वास्थ्य और शिक्षा की समस्याएँ आज भी चिंतनीय हैं। शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्रों में अभी भी कई चुनौतियाँ हैं, हमें चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार शिक्षा, रोजगार, सड़क, कृषि, उद्यमिता , पर्यटन, पेयजल आपूर्ति,, सड़क एवं परिवहन व्यवस्था, ऊर्जा विकास के क्षेत्र में निरंतर कार्य करने की आवश्यकता है।राष्ट्रपति जी इन सभी खूबियों और कमियों के साथ हम सभी विधानसभा के सदस्य आपको अपने बीच पाकर अभीभूत हैं हमारा अहोभाग्य है कि हम सभी को आज विधानसभा में आपका सानिध्य और मार्ग निर्देशन मिला। आपके मार्ग निर्देशन का लाभ उत्तराखण्ड सरकार राज्य के हित में उठायेगी ऐसा मेरा विश्वास है। मैं आपके सुखद राजकीय और सार्वजनिक जीवन की कामना करता हूं।

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