उत्तराखण्ड
राज्य सरकारें राज्य निर्माण आंदोलन के दौरान उभरे प्रमुख मुद्दों का समाधान करने में विफल रही : प्रो. शेखर पाठक
मशहूर पर्यावरणविद और इतिहासकार प्रोफ़ेसर शेखर पाठक की यह टिप्पणी डाउन टू अर्थ पत्रिका के अंग्रेजी संस्करण के अप्रैल अंक में छपे लेख राजू सजवान के एक लेख का हिस्सा है. उत्तराखंड में हो रहे पर्यावरणीय बदलाव में पिछला दशक बेहद महत्त्वपूर्ण रहा है. उत्तराखंड को बेहद करीब से देखने वाले प्रोफ़ेसर शेखर पाठक की यह टिप्पणी बेहद महत्त्वपूर्ण है. उनकी टिप्पणी का हिन्दी अनुवाद डाउन टू अर्थ पत्रिका से साभार लगाया गया है ।
सीएन, नैनीताल। जब हमने 2024 में छठे अस्कोट-अराकोट अभियान की शुरुआत की, तो हमें एहसास हुआ कि उत्तराखंड में 2014 के बाद के दशक में आये बदलाव, पिछले पाँच दशकों को मिलाकर आये बदलावों की तुलना में अधिक हैं. सड़क अवसंरचना के संदर्भ में यह विकास का दशक रहा है, लेकिन विनाश के एक उदाहरण का भी. सड़कें, सुरंगें, जलविद्युत परियोजनाएं और अन्य निर्माण गतिविधियों की जुगत के लिए पूरे पहाड़ों की खुदाई की गई है. लेकिन विकास के अन्य महत्वपूर्ण पहलू लोगों तक नहीं पहुँचे हैं. स्कूलों या अस्पतालों तक पहुँचने के लिए, दूरदराज के गाँवों के लोग सड़कों का उपयोग कर तहसील-ब्लॉक मुख्यालयों, कस्बों या शहरों तक जाते हैं. वे पीलीभीत, मुरादाबाद, नजीबाबाद और तराई-भाबर जिलों में उगाई गई सब्जियां, फल और खाद्यान्न खाते हैं, जो बासी हो सकते हैं या कीटनाशकों या रासायनिक उर्वरकों से उगाए गए हो सकते हैं. इससे उनके बच्चों की खान-पान की आदतें बदल जाएंगी, भले ही उनके गांवों में प्रचुर मात्रा में खाद्यान्न उगाया जाता हो. यह एक विनाशकारी प्रकार का विकास है. हमारा समाज और नेता अभी इसे समझने के लिए तैयार नहीं हैं. कृषि एवं पशुचारण भूमि का नुकसान तथा बढ़ता पलायन एक और चेतावनी है. यदि पहाड़ों को खोदा जाता है, तो मलबा नदियों में फेंक दिया जाता है. यह ग्लेशियरों से नदियों द्वारा लाए गए मलबे के अतिरिक्त है. सुदूर-पश्चिमी नेपाल में सड़कें खोदी जा रही हैं और मलबा काली नदी में डाला जा रहा है. उत्तराखंड के गठन से पहले और बाद के 25 सालों में विभाजित असकोट-आराकोट अभियान के पांच दशकों की जांच करने पर हम पाते हैं कि आपदाएं ऐतिहासिक रूप से पहाड़ों को प्रभावित करती रही हैं. लेकिन पिछले एक दशक में, वे प्राकृतिक कम और मानव निर्मित अधिक हो गई हैं. बाढ़, अत्यधिक वर्षा, भूस्खलन और सूखे की आवृत्ति बढ़ गई है. अभियान के दौरान हमने 45 दिनों में से 28 दिनों तक जंगल में आग देखी.. चीड़ के जंगलों में आग लगना सामान्य बात है, लेकिन हमने चौड़ी पत्ती वाले ओक और रोडोडेंड्रोन के जंगलों में भी आग लगी देखी. पिछले वर्ष ऊंचे क्षेत्रों में बहुत कम बर्फबारी हुई थी और भयंकर सूखा पड़ा था, इसलिए थोड़ी सी लापरवाही से जंगलों में आग लग गई. अस्थमा से पीड़ित दो-तीन लोगों को सांस लेने में कठिनाई महसूस हुई, जबकि ये क्षेत्र स्वच्छ हवा के लिए सर्वोत्तम माने जाते हैं हमने कई भूस्खलन की घटनाएँ भी देखीं, ख़ास तौर से चार धाम मार्ग के पर, क्योंकि इलाके के भूविज्ञान को समझे बिना ही चट्टानों को काटा गया था. भूस्खलन में वृद्धि के लिए अक्सर जलवायु परिवर्तन को दोषी ठहराया जाता है, लेकिन जल्दबाजी में किया गया विकास असली अपराधी है. जहां तक जलवायु परिवर्तन का प्रश्न है, इस क्षेत्र में इसके प्रभाव के बारे में वैज्ञानिकों के बीच भी स्पष्टता नहीं है. लेकिन 20-30 साल पहले, कम बर्फबारी या बर्फबारी न होने की घटनाएं सामने नहीं आती थीं. हाल के वर्षों में लोगों ने महसूस किया है कि पहाड़ों में सूखा और बादल फटने की घटनाएं असामान्य रूप से बढ़ रही हैं. पिछले एक दशक में दलित समुदायों और अल्पसंख्यकों के खिलाफ बढ़ती असहिष्णुता और हिंसा के साथ सामाजिक परिदृश्य भी अधिक जटिल हो गया है. धर्म और धार्मिक स्थल अब पहले से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण हो गए हैं. समाज में गलत सूचनाएँ व्यापक रूप से फैलाई जाती हैं. 2024 में एक सकारात्मक अवलोकन यह था कि लड़कियों के लिए अपनी पढ़ाई जारी रखना आसान हो गया है. बिना किसी सरकारी सहायता के महिला मंगल दलों (महिला कल्याण संघों), ग्राम सभाओं और गैर-लाभकारी संस्थाओं की स्थापना, एक और उल्लेखनीय बदलाव है. धारचूला, जोशीमठ, डुंडा और मुनस्यारी जैसे क्षेत्रों में कुटीर उद्योग भी स्थापित किए गए हैं और हस्तशिल्प या पारंपरिक शिल्प का व्यवसायीकरण किया गया है. इससे हमें यह विश्वास हो गया है कि लोग गांवों से पलायन करने के बजाय वहीं रहना पसंद कर रहे हैं. हालाँकि, राज्य सरकार राज्य निर्माण आंदोलन के दौरान उभरे प्रमुख मुद्दों का समाधान करने में विफल रही है. आंदोलन संसाधनों जैसे, भूमि, नदियाँ, झीलें, जंगल और जैव विविधता के साथ-साथ विकेंद्रीकरण, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, शराबबंदी, कुटीर उद्योगों को अधिक महत्व और महिलाओं और बच्चों पर केन्द्रित भ्रष्टाचार मुक्त विकास मॉडल पर केंद्रित था.
