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उत्तराखण्ड

आज गिर्दा की पुण्यतिथि : आज हिमाल तुमन के धत्यूंछौ, जागौ-जागौ हो म्यरा लाल

आज गिर्दा की पुण्यतिथि : आज हिमाल तुमन के धत्यूंछौ, जागौ-जागौ हो म्यरा लाल
सीएन, नैनीताल।
गिरीश तिवारी गिर्दा उत्तराखंड राज्य आंदोलन के दौर के ऐसे जनकवि रहे कि जिनके जनगीतों ने आंदोलन में जान फूंक दी थी। नौ सितंबर 1945 को अल्मोड़ा में हवालबाग में जन्मे गिर्दा की कर्मभूमि नैनीताल रही है। गीत एवं नाटक प्रभाग के कलाकार के साथ ही उत्तराखंड राज्य आंदोलन, नशा नहीं रोजगार दो, समेत माफिया विरोधी आंदोलनों में गिर्दा के गीतों ने नया जोश भर दिया। 22 अगस्त 2011 को गिर्दा का निधन हो गया था।गिर्दा सिर्फ जनकवि नहीं थे बल्कि एक शानदार वक्ता भी थे। लयबद्ध तरीके से गाए गए उनके जनगीत बरबस ही सबको अपनी ओर खींच ले जाते थे। चिपको आंदोलन, नशा मुक्ति आंदोलन, उत्तराखंड राज्य आंदोलन, नदी बचाओ आंदोलन आदि में गिर्दा सक्रिय रूप से भागीदार रहे। चिपको आंदोलन के दौरान जब पहाड़ों में जंगलों को काटने और लकड़ियों की नीलामी की बात आई तो गिर्दा ने आह्वान किया-आज हिमाल तुमन के धत्यूंछौ
जागौ-जागौ हो म्यरा लाल
नी करण दियौ हमरी निलामी
नी करण दियौ हमरो हलाल

उत्तराखंड राज्य आंदोलन तेज हुआ तो गिर्दा के गीत भी उसी तेजी से आंदोलन की आवाज बने। जहाँ भी प्रदर्शन या आंदोलन होते वहाँ गिर्दा के गीतों की गूंज सुनाई पड़ती। राज्य की परिकल्पना को लेकर गिर्दा ने गीत लिखा और गाया-ततुक नी लगा उदेख, घुनन मुनई नि टेक
गिर्दा की कविताओं में सिर्फ तात्कालिक मुद्दे नहीं थे बल्कि भविष्य के गर्त में छिपी तमाम दुश्वारियों भी शुमार थीण् गिर्दा शायद भाँप गए थे कि अलग राज्य बन जाने के बाद राज्य में लूट.खसोट मचेगी और राजधानी के नाम पर गैरसैंण को लटकाया जाता रहेगा। उत्तराखंड राज्य की कल्पना को हकीकत में तब्दील करने के लिए चले वर्षों के संघर्ष व आंदोलन को अपने गीतों के माध्यम से ऊर्जा देने वाले जनकवि गिर्दा 22 अगस्त 2010 को इस लोक से विदा हो गए। राज्य 20 साल से अधिक का हो गया लेकिन गिर्दा का एक.एक गीत आज भी उतना ही ज्वलंत है जितना उस समय था। गिर्दा के गीतों को एक बार फिर से घर.घर तक पहुँचाने की जरूरत आन पड़ी है। जिस राज्य में हम जी रहे हैं वह कहीं से भी किसी आंदोलनकारी के सपनों का राज्य नहीं लगता। राज्य निर्माण के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने वाले अमर बलिदानियों व उनकी मांगों को हम भूलते जा रहे हैं और राज्य में मची लूट-खसोट.बर्बादी के मूकदर्शक बने हुए हैं।
गिर्दा की बहुचर्चित  रचनाएं जो आज भी है समसामयिक
गिर्दा का जन्म 10 सितम्बर 1945 को अल्मोड़ा जिले के हवालबाग के ज्योली तल्ला स्यूनारा में हुआ था। उनके द्वारा रचित बहुचर्चित  रचनाए हैं. जंग किससे लिये हिंदी कविता संकलन, जैंता एक दिन तो आलो कुमाउनी कविता संग्रह, रंग डारि दियो हो अलबेलिन में होली संग्रह, उत्तराखंड काव्य, सल्लाम वालेकुम इत्यादि। इनके अतिरिक्त दुर्गेश पंत के साथ उनका शिखरों के स्वर नाम से कुमाऊनीं काव्य संग्रह, व डा. शेखर पाठक के साथ हमारी कविता के आखर आदि पुस्तकें भी प्रकाशित हुईं हैं। गिर्दा नैनीताल समाचार, पहाड़, जंगल के दावेदार, जागर, उत्तराखंड नवनीत आदि पत्र.पत्रिकाओं से भी सक्रिय होकर जुड़े रहे। एक नाट्यकर्मी के रूप में गिर्दा ने नाट्य संस्था युगमंच के तत्वावधान में नगाड़े खामोश है तथा थैक्यू मिस्टर ग्लाड का निदेशन भी किया। गिर्दा एक प्रतिबद्ध रचनाधर्मी सांस्कृतिक व्यक्तित्व थे। गीत, कविता, नाटक, लेख, पत्रकारिता, गायन, संगीत, निर्देशन, अभिनय आदि यानी संस्कृति का कोई आयाम उनसे से छूटा नहीं था। मंच से लेकर फिल्मों तक में लोगों ने गिर्दा की क्षमता का लोहा माना। उन्होंने धनुष यज्ञ और नगाड़े खामोश हैं जैसे कई नाटक लिखे जिससे उनकी राजनीतिक दृष्टि का भी पता चलता है। गिर्दा ने नाटकों में लोक और आधुनिकता के अद्भुत सामंजस्य के साथ अभिनव प्रयोग किये और नाटकों का अपना एक पहाड़ी मुहावरा गढ़ने की कोशिश की। 

नैनीताल में आज जनकवि गिरीश तिवारी गिर्दा की याद में 14 वां स्मृति समारोह
नैनीताल में गिरीश तिवारी गिर्दा की 14 वीं पुण्यतिथि पर गिर्दा स्मृति मंच द्वारा एक भव्य स्मृति समारोह का आयोजन किया जा रहा है। इस वर्ष भी जनकवि की याद में श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए शहरवासी उत्साहित हैं। समारोह का शुभारंभ गुरुवार शाम चार बजे क्रांति चौक तल्लीताल से एक जुलूस के साथ होगा। जुलूस में लोग जनगीत गाते हुए मल्लीताल सीआरएसटी विद्यालय पहुंचेंगे। विद्यालय परिसर में गिर्दा स्मृति मंच, युगमंच नैनीताल, ताल साधना अकादमी नैनीताल और भारतीय शहीद सैनिक स्कूल की ओर से विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। गिरीश तिवारी गिर्दा एक प्रसिद्ध लोक गायक और जनकवि थे। उन्होंने अपने गीतों के माध्यम से समाज के विभिन्न मुद्दों पर अपनी आवाज उठाई थी। उनके गीतों में गरीबी, बेरोजगारी भ्रष्टाचार और सामाजिक अन्याय जैसे मुद्दे प्रमुख थे। उनके गीतों ने लोगों को जागरूक किया और उन्हें एकजुट होने के लिए प्रेरित किया। गिर्दा स्मृति मंच का मुख्य उद्देश्य गिरीश तिवारी गिर्दा की विरासत को जीवित रखना है। यह मंच विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों, संगोष्ठियों और प्रदर्शनियों का आयोजन करता है ताकि लोग गिर्दा के जीवन और उनके कार्यों के बारे में जान सकें।

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