Connect with us

उत्तराखण्ड

उत्तराखंड टूरिज्म : दावे लाख मगर, सुविधाएं खाक

अनियंत्रित और अनियोजित जन पर्यटन की गंभीर समस्या से जूझ रहा उत्तराखंड

उत्तराखंड को राज्य बने बीस साल से ऊपर हुए। मुख्यमंत्रियों के नाम की तरह राज्य के नाम भी बदलते रहे लेकिन सीरत न बदली। कभी देवभूमि कभी उत्तरांचल कभी उत्तराखंड और पर्यटन प्रदेश। लेकिन हकीकत कुछ और है। अखबारों में सुर्खियां बटोर लेना और विज्ञापन के जरिये अपने प्रदेश को बेहतर दिखाना आसान है लेकिन धरातल पर काम दिखना कुछ और है। राज्य के प्रमुख पर्यटन स्थलों में एक नैनीताल पहुचना कितना आसान है कभी आकर देखिये। वहां पहुचने वाले पुल महीनों से ठीक नही हो पा रहे हैं। काठगोदाम अल्मोड़ा एनएच से अल्मोड़ा पहुचने में आधा दिन लग सकता है। राज्य भर में जगह जगह जाम ऐसा कि लोगों के पसीने छूट रहे हैं। बीस साल में उत्तराखंड इन नारों पर बहता आया है लेकिन पर्यटन प्रदेश में यूपी का ही कॉपी पेस्ट जारी है। नीतियों में रत्ती भर बदलाव न हुआ। पर्यटन नगरी नैनीताल के वरिष्ठ पत्रकार, लेखक, प्रयाग पांडे ने राज्य में पर्यटन को लेकर एक विस्तृत रिपोर्ट जारी की है आइये जानते हैं अपने राज्य के हाल उनकी नजर से——–

प्रयाग पांडे, नैनीताल। कहते हैं ‘बारात के आंगन में आ जाने के बाद पानी के लिए कुआ खोदने’ से अफरातफरी होती है और समस्या का समाधान भी नहीं हो पाता। प्रदेश के पर्यटन स्थलों में अधिसंरचनात्मक सुविधाओं के विकास के संदर्भ में यह मुहावरा पिछले करीब साढ़े तीन दशकों से साल-दर-साल और बारंबार दोहराया जा रहा है। राज्य की अर्थ व्यवस्था का मूलाधार समझे जाने वाले पर्यटन उद्योग को लेकर इस फौरी रवैये से नैनीताल जैसा विख्यात पर्वतीय पर्यटन स्थल आज अनियंत्रित और अनियोजित जन पर्यटन की गंभीर समस्या से जूझ रहा है। उत्तराखंड में पर्यटन उद्योग को बढ़ावा देने के लिए तमाम दावे किए जाते रहे हैं और किए जा रहे हैं। लेकिन ब्रिटिश शासन काल में वजूद में आए नैनीताल और मसूरी आदि ख्याति प्राप्त हिल स्टेशन न्यूनतम अधिसंरचनात्मक सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं। उत्तराखंड को अलग राज्य बने बाइस साल पूरे होने को हैं।परंतु यहाँ के भंगुर पर्यावरण और विशिष्ट भौगोलिक परिस्थितियों के अनुरूप व्यवहारिक पर्यटन नीति नहीं बन पाई है।पर्यटकों की रूपरेखा और पर्यटक सांख्यिकी माप की दिशा में ध्यान ही नहीं दिया गया है। पर्यटक स्थलों की भार वहन क्षमता का आंकलन करने की आवश्यकता ही नहीं समझी गई है।इस वजह से पर्यटक स्थलों में अत्यावश्यक अधिसंरचनात्मक सुविधाओं का विकास नहीं हो सका है। परिणामस्वरूप नैनीताल जैसे स्थापित पर्यटक स्थलों में जन पर्यटन ने आपाधापी का माहौल बना दिया है। नैनीताल समेत उत्तराखंड के अन्य सभी पर्यटक स्थलों का अनियंत्रित, अदूरदर्शी और असंयोजित रूप से व्यवसायिक दोहन हो रहा है। जिससे पर्यावरण संकट बढ़ा है और सामाजिक एवं सांस्कृतिक समस्याएं उत्पन्न हुई हैं।अनियंत्रित जन पर्यटन गतिविधियों से आक्रोश का वातावरण बन रहा है।मेजबान और मेहमान के बीच तनाव की घटनाएं बढ़ने लगी हैं। ’वहन क्षमता’ से कहीं अधिक पर्यटकों के आगमन से नैनीताल अत्यधिक भीड़ -भाड़ वाले नगर में तब्दील हो गया है। औपनिवेशिक शासक भारत के पहाड़ों की तुलना यूरोपीय पहाड़ों से करते थे। अंग्रेजों ने भारत में कई हिल स्टेशन बसाए, जिनमें नैनीताल भी सम्मिलित था। नैनीताल को अंग्रेजों ने अभिजात वर्ग के सैरगाह के रूप में बसाया और विकसित किया था। उन्होंने एक निश्चित आबादी के हिसाब से यहाँ अधिसंरचनात्मक सुविधाएं जुटाई थीं।ब्रिटिश शासन काल में नैनीताल उच्च पदस्थ अंग्रेज अधिकारियों, भारतीय राजे-रजवाड़े और नवाबों का प्रिय ग्रीष्मकालीन सैरगाह था।प्रारंभिक काल में नैनीताल आने का साधन घोड़ा, डांडी या पैदल यात्रा थी।यांत्रिक यातायात प्रारंभ होने के बाद यहाँ साल भर में एकाध बार लॉर्ड साहब, शीर्ष के अधिकारी और नेताओं की सरकारी गाड़ियां ही आती -जाती थीं। आजादी के बाद गाड़ियों का आवागमन बढ़ा। लेकिन निश्चित स्थान और संख्या में ही। आजादी के करीब तीन दशक तक कमोबेश यही स्थिति बनी रही। जाहिर है कि उस दौर में पर्यटकों के यहाँ आने-जाने का एकमात्र साधन सार्वजनिक यातायात था। तब पर्यटक सपरिवार यहाँ लंबे अरसे तक प्रवास करते थे। अधिकांश पर्यटक पूरी गर्मी नैनीताल की ठंडी हवा का लुत्फ़ उठाया करते थे।1980 के दशक में मारुति संस्कृति आने के बाद निजी वाहनों की संख्या बढ़ने लगी थी। परिवहन के साधन बेहतर हुए। पर्यटकों की रुचियों में भी बदलाव आने लगा। पर्यटन ने फैशन का रूप अख्तियार कर लिया। पर्यटकों को सार्वजनिक यातायात के बजाय निजी वाहनों में आना-जाना सुविधाजनक लगने लगा। अब नैनीताल में पार्किंग की आवश्यकता अनुभव की जाने लगी। 1983-84 में नैनीताल के एकमात्र खुले स्थान फ्लैट्स के एक हिस्से को कार पार्किंग में तब्दील कर दिया गया। इसके बाद साल-दर-साल पर्यटकों और गाड़ियों की तादाद बढ़ती चली गई ।नैनीताल के सभी पैदल मार्गों में गाड़ियां दौड़ने लगीं। नैनीताल के पैदल मार्गों में भी पैदल चल पाना दूभर होता चला गया। नैनीताल में पार्किंग एवं अन्य अधिसंरचनात्मक सुविधाओं को लेकर दशकों से हर साल अलग-अलग स्तर पर विमर्श होता चला आ रहा है। ज्यों-ज्यों मर्ज की दवा खोजी जा रही है, त्यों -त्यों मर्ज लाइलाज होता जा रहा है। नैनीताल की विशिष्ट भौगोलिक बनावट के चलते यहां पर्यटकों की सुविधाओं में बढ़ोत्तरी की गुंजाइश नहीं के बराबर है। यहाँ आवश्यकता के अनुरूप अधिसंरचनात्मक सामर्थ्य का अभाव है। मांग और आपूर्ति में असंतुलन से व्यवस्थाएं चरमरा गई हैं। संसाधनों पर अत्यधिक दबाव बढ़ गया है। सप्ताहांत पर्यटन की बढ़ती प्रवृत्ति से पर्यटकों के ठहरने की अवधि अत्यंत कम हुई है। गर्मियों के सीजन में भी शनिवार और रविवार की छुट्टियों के अलावा शेष दिनों में पर्यटकों की आवक कम हो रही है।पर्यटकों में संतुष्टि का भाव कमतर होता जा चला जा रहा है। सप्ताहांत के अनियंत्रित जन पर्यटन ने अनेक समस्याओं को जन्म दिया है। अल्पकालीन और अनियंत्रित जन पर्यटन से लाभ के मुकाबले क्षति अधिक हो रही है। अनियोजित और अनियंत्रित पर्यटन विकास उन्हीं आकर्षणों का नाश का कारण बन रहा है, जो पर्यटकों को यहाँ आने के लिए प्रेरित करते हैं। पर्यटन उद्योग को लाभकारी बनाने के लिए यहाँ उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों को सामंजस्यपूर्ण और व्यवस्थित ढंग से उपयोग में लाना आवश्यक है। सुनियोजित पर्यटन के लिए व्यवहारिक पर्यटन नीति, पर्यटन मास्टर प्लान, पर्यटक सांख्यिकी माप,पर्यटन रूप-रेखा एवं पर्यटन स्थल की भार वहन क्षमता का आंकलन और अधिसंरचनात्मक सुविधाओं का विकास बुनियादी शर्त है पर दुर्भाग्य यह है कि इस दिशा में गंभीरतापूर्वक सोचा नहीं जा रहा है।पर्यटन को टिकाऊ और लाभप्रद बनाने के लिए दीर्घकालिक उपाय खोजने के बजाय समस्याओं का तदर्थ और तात्कालिक समाधान खोजने की प्रवृत्ति हावी होती जा रही है।जबकि सच्चाई यह है कि पर्यटक स्थल की वहन क्षमता को ध्यान में रख कर सुविचारित दीर्घकालीन योजना बनाए बिना अनियंत्रित पर्यटन विकास को रोका नहीं जा सकता है। याद रहे कि पर्यटन स्थल एक बहुमूल्य संपत्ति होती है, नियंत्रित पर्यटन से ही इस संपत्ति को संरक्षित किया जा सकता है। अन्यथा नहीं।

Continue Reading
You may also like...

More in उत्तराखण्ड

Trending News

Follow Facebook Page

About

आज के दौर में प्रौद्योगिकी का समाज और राष्ट्र के हित सदुपयोग सुनिश्चित करना भी चुनौती बन रहा है। ‘फेक न्यूज’ को हथियार बनाकर विरोधियों की इज्ज़त, सामाजिक प्रतिष्ठा को धूमिल करने के प्रयास भी हो रहे हैं। कंटेंट और फोटो-वीडियो को दुराग्रह से एडिट कर बल्क में प्रसारित कर दिए जाते हैं। हैकर्स बैंक एकाउंट और सोशल एकाउंट में सेंध लगा रहे हैं। चंद्रेक न्यूज़ इस संकल्प के साथ सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर दो वर्ष पूर्व उतरा है कि बिना किसी दुराग्रह के लोगों तक सटीक जानकारी और समाचार आदि संप्रेषित किए जाएं।समाज और राष्ट्र के प्रति जिम्मेदारी को समझते हुए हम उद्देश्य की ओर आगे बढ़ सकें, इसके लिए आपका प्रोत्साहन हमें और शक्ति प्रदान करेगा।

संपादक

Chandrek Bisht (Editor - Chandrek News)

संपादक: चन्द्रेक बिष्ट
बिष्ट कालोनी भूमियाधार, नैनीताल
फोन: +91 98378 06750
फोन: +91 97600 84374
ईमेल: [email protected]

BREAKING