उत्तर प्रदेश
जब बैलगाड़ी पर सवार होकर दुल्हन लेने पहुंचे दूल्हा व बाराती
शादी ने उस सुनहरे दौर की याद दिला दी, जब बैलगाड़ियों से ही जाती थीं बारातें
सीएन, बांदा। यह 21वीं सदी का दौर है, यहां तो बारात दुल्हन के दरवाजे बड़े ही शान-ओ-सौकत के साथ बड़ी गाड़ियों व हाथी, घोड़ों के साथ पहुंचती है। लेकिन आज के इस दौर में शादी को यादगार बनाने के लिए एक परिवार ने गुजरे वक्त की याद दिला दी, जब बैलगाड़ियों पर सवार होकर बाराती दुल्हन के दरवाजे पहुंचे। इतना ही नहीं बाराती, घराती और ग्रामीण सभी ने जमीन पर बैठकर ही भोजन किया और परिवार के लोगों ने परोसकर खिलाया। दरसल मामला उत्तर प्रदेश के बांदा जिले के मुटहा गांव का है, जहां ये पुराना पारंपरिक तरीका अपनाया गया। दूल्हें अंकित मिश्रा से जब इस बारे में बात की गई तो उनका कहना है कि बारात ले जाने में बैलगाड़ियों का इस्तेमाल इसलिए किया गया क्योंकि प्रदूषण से बचना है। इसलिए ये लिए गाड़ियों का इस्तेमाल नहीं किया गया। यही संदेश सभी को देना था। सभी बाराती और घरातियों ने प्लास्टिक की प्लेटों आदि से भी दूरी बनाई और पत्तलों पर ही लोगों ने भोजन किया। इस शादी को लेकर ग्रामीणों में इस कदर उत्साह था कि लोग देखने पहुंचे थे कि आखिर कैसे बैलगाड़ी से बारात आई है। ग्रामीणों ने कहा कि इस शादी के लिए कई दिनों से तैयारियां चल रही थीं और कई लोगों से संपर्क किया गया, जिनके पास बैलगाड़ी थी ताकि उन्हें बारात में ले जाया जा सके। दरअसल लंबे समय से बैलगाड़ियां ही प्रचलन में नहीं हैं। ऐसे में बड़ी संख्या में इन्हें जुटाना भी एक बड़ा काम था। ग्रामीणों ने कहा कि यूं तो आज के दौर में बहुत सी व्यवस्थाएं हो गई हैं, लेकिन इस शादी ने उस सुनहरे दौर की याद दिला दी, जब बारातें बैलगाड़ियों से ही जाती थीं। शादी में ग्रामीणों की ओर से ही तमाम व्यवस्थाएं की गईं और पूरा गांव मिलकर काम करता दिखा। दूल्हे ने खजूर का बना हुआ सेहरा पहना था, जो बुंदेलखंड की परंपरा का हिस्सा रहा है। हालांकि अब कम ही लोग इसे पहने हुए दिखाई देते हैं। इस तरह दूल्हे की पोशाक, बारात के साधन, भोजन की व्यवस्था से लेकर डोली से दुल्हन की विदाई तक में पुरानी परंपरा को एक बार फिर से जीवित करने का प्रयास दिखाई दिया।