संस्कृति
दीपोत्सव, दीपावली, दिवाली करती है अंधकार से प्रकाश एवं नई ऊर्जा का संचार
दीपोत्सव, दीपावली, दिवाली करती है अंधकार से प्रकाश एवं नई ऊर्जा का संचार
प्रो. ललित तिवारी, नैनीताल। दीपावली महापर्व के पहले दिन धनतेरस, दूसरे दिन नरक चतुर्दशी एवं छोटी दिवाली, तीसरे दिन दीपावली पर्व चौथे दिन गोवर्धन पूजा और पांचवें दिन भैया दूज का पर्व मनाया जाता है। धनतेरस पर धन की देवी माता लक्ष्मी, स्वास्थ्य देने वाले धन्वंतरि जी के साथ श्री कुबेर पूजन किया जाता है। इस वर्ष धनतेरस तथा श्री कुबेर पूजन आज मंगलवार 29 अक्टूबर को मनाया जा रहा है। यह दिवस धन्वंतरि.जयंती भी है। धन्वंतरि को सृष्टि के पालनकर्ता भगवान विष्णु का स्वरूप माना गया है जो देवताओं और असुरों के मध्य हुए संग्राम में समुद्र से इसी दिन अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। धन्वंतरि को आयुर्वेद का जनक और तन-मन के स्वास्थ्य व चिकित्सा का देवता माना गया है। धन्वंतरि, संस्कृत में धन्वंतरि, रोमन कृत धन्वंतरि, धन्वंतरि, शाब्दिक अर्थ वक्र में गतिमान जो देवों के चिकित्सक हैं। पुराणों में उनका उल्लेख आयुर्वेद के देवता के रूप में किया गया है। महाकवि व्यास द्वारा रचित श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार धन्वंतरि भगवान विष्णु के अंश है। महाभारत, विष्णु पुराण, अग्नि पुराण, श्रीमद्भागवत, महापुराण आदि में इनका उल्लेख मिलता है। भगवान धन्वंतरि की पूजा के दौरान ॐ नमो भगवते धन्वंतराय विष्णुरूपाय नमो नमः का जाप किया जाता है। धन्वंतरि जी की पूजा से शरीर में रोग नहीं आती और स्वास्थ्य संबंधी परेशानी नहीं होती। धन्वंतरि को देवताओं के चिकित्सक एवं आयुर्वेद की उत्पत्ति का अभिन्न अंग माना जाता है क्योंकि उन्हें इन स्तोत्रों को मानव जगत में लाने का निर्देश दिया था। पौराणिक कथाओं के अनुसार समुद्र मंथन के समय चौदहवें रत्न के रूप में धन्वंतरि प्रकट हुए जिनके हाथ में अमृत कलश था। चार भुजाओं वाले धन्वंतरि के एक हाथ में आयुर्वेद ग्रंथ, दूसरे में औषधि कलश, तीसरे में जड़ी बूटी, और चौथे में शंख था। धन्वंतरि की प्रसिद्ध पुस्तकें रोग निदान और वैद्य चिंतामणि हैं। मान्यता है धन्वंतरि की पूजा करने से रोगों से मुक्ति मिलती है और आरोग्यता की प्राप्ति होती है। धन्वंतरि, उज्जयिनी के राजा विक्रमादित्य चंद्रगुप्त द्वितीय के नवरत्नों में से एक थे। जिनका प्रिय धातु पीतल तथा वैद्य आरोग्य का देवता हैं क्योंकि इन्होंने ही अमृतमय औषधियों की खोज की थी। इनके वंशज दिवोदास जिन्होंने शल्य चिकित्सा का विश्व का पहला विद्यालय काशी में स्थापित किया जिसके प्रधानाचार्य सुश्रुत बनाये गए थे। सुश्रुत दिवोदास के ही शिष्य और ऋषि विश्वामित्र के पुत्र थे। उन्होंने ही सुश्रुत संहिता लिखी थी। सुश्रुत विश्व के पहले सर्जन शल्य चिकित्सक थे। दीपावली के अवसर पर कार्तिक त्रयोदशी-धनतेरस को भगवान धन्वन्तरि की पूजा करते हैं। जिस तरह मां लक्ष्मी को धन की देवी माना गया है, ठीक उसी प्रकार कुबेर देव को धन के देवता की उपाधि प्राप्त है। माना जाता है कि कुबेर देव की कृपा से साधक को धन की समस्या का सामना नहीं करना पड़ता। श्री कुबेर की पूजा विशेष पौधा लगा कर सकते हैं। क्रासुला का पौधा कुबेर का सबसे पसंदीदा पौधा है, इसे कुबेर का पौधा भी कहा जाता है, जो मां लक्ष्मी का भी पसंदीदा माना जाता है। श्री कुबेर के अन्य पसंदीदा पौधा गुड़हल, हल्दी, गेंदें का भी है। क्रासुला रसीले पौधों की एक प्रजाति है जिनमें लोकप्रिय जेड प्लांट क्रासुला ओवाटा भी शामिल है वे स्टोनक्रॉप परिवार क्रैसुलेसी के सदस्य हैं। गुड़हल या जवाकुसुम मालवेसी परिवार से संबंधित एक फूलों वाला पौधा है। इसका वानस्पतिक नाम हीबीस्कूस् रोज़ा साइनेन्सिस है। हल्दी यानी टर्मरिक भारतीय वनस्पति है जिसमें जड़ की गांठ में हल्दी मिलती है। हल्दी को आयुर्वेद में प्राचीन काल से ही एक चमत्कारिक द्रव्य के रूप में मान्यता प्राप्त है। औषधि ग्रंथों में इसे हल्दी के अतिरिक्त हरिद्रा, कुरकुमा लौंगा, वरवर्णिनी, गौरी, क्रिमिघ्ना योशितप्रीया, हट्ट विलासनी, हरदल, कुमकुम, टर्मरिक नाम से जाना जाता है। हल्दी का वानस्पतिक नाम करकूमा लूंगा कुल ज़िंगेबरसी है। गेंदा बहुत ही उपयोगी एवं आसानी से उगाया जाने वाला फूलों का पौधा है। यह मुख्य रूप से सजावटी फसल है। यह खुले फूल, माला एवं भू-दृश्य के लिए उगाया जाता है। इसके फूलों का धार्मिक एवं सामाजिक उत्सवों में बड़ा महत्व है। भारत में मुख्य रूप से अफ्रीकन गेंदा और फ्रेंच गेंदा की खेती की जाती है। इसे गुजराती भाषा में गलगोटा और मारवाड़ी भाषा में हजारी गजरा फूल भी कहा जाता है। गेंदें का वानस्पतिक नाम तेजेटस इरेक्टस तथा कुल एस्ट्रेसी है। इन पौधों को गमले में लगाना कुबेर की आराधना करना है।