धर्मक्षेत्र
ओडिशा के तटवर्ती शहर पुरी में स्थित जगन्नाथ पुरी मंदिर में जुड़े हैं कई चमत्कारी रहस्य
आश्चर्य में डाल देते हैं जगन्नाथ पुरी मंदिर के चमत्कारी रहस्य
सीएन, पुरी। सभी हिंदू धार्मिक स्थल से जुड़ी कई मान्यताएं और रहस्य हैं। ओडिशा के तटवर्ती शहर पुरी में स्थित जगन्नाथ पुरी मंदिर से भी कई ऐसे रहस्य जुड़े हुए हैं जिन्हें जानकर आप हैरान रह जाएंगे। जगन्नाथ पुरी मंदिर भगवान विष्णु के अवतार श्री कृष्ण को समर्पित है। यहां पर लाखों की सख्यां में श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचते हैं। इस मंदिर से कुछ ऐसे चमत्कारी रहस्य जुड़े है जो सभी को आश्चर्य में डाल देते हैं। यह मंदिर इन्हीं कारणों से बहुत स्पेशल हैं. जगन्नाथ पुरी मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ती की नहीं बल्कि उनके हृदय की पूजा की जाती है। यहां पर यह सबसे अनोखी बात है जो लोगों को हैरान कर देती है। मंदिर में भगवान जगन्नाथ, बालभद्र और देवी सुभद्र की मूर्ति मौजूद हैं। यह मूर्तियां मिट्टी की नहीं बल्कि चन्दन की लकड़ी की बनी हुई है। जगन्नाथ पुरी मंदिर का आर्किटेक्चर बहुत ही सुंदर और साउंड प्रूफ हैं। यह मंदिर समुद्र के किनारे पर है। यहां पर समुद्र की लहरों की आवाज आती रहती हैं। हालांकि मंदिर के सिंहद्वार में प्रवेश करने के बाद लहरों की जरा भी आवाज सुनाई नहीं देती है। इस मंदिर से एक और रहस्य जुड़ा हुआ है कि इस मंदिर के ऊपर लगा सुदर्शन चक्र हमेशा सीधा ही दिखता हैं। आप कहीं भी खड़े होकर सुदर्शन चक्र को देखें लेकिन ऐसा ही लगेगा की इसका मुंह आपकी ही तरफ हैं। सभी चीजों की सूर्य की रोशनी से परछाई बनती है। हालांकि इस मंदिर के शिखर की कभी भी छाया नहीं बनती है। इसकी छाया हमेशा अदृश्य रहती है। इस मंदिर के शिखर की छाया कोई भी जमीन पर नहीं देख पाया है। जगन्नाथ पुरी मंदिर के शिखर पर लगा झंडा हमेशा हवा के विपरीत दिशा में लहराता है। मंदिर के शिखर पर लगे झंडे के इस रहस्य को कोई भी जान नहीं सका है कि आखिर ऐसा क्यों होता हैं।
कलिंग शैली के मंदिर स्थापत्यकला और शिल्प के आश्चर्यजनक प्रयोग
मंदिर का वृहत क्षेत्र 400,000 वर्ग फुट (37,000 मी 2) में फैला है और चहारदीवारी से घिरा है। कलिंग शैली के मंदिर स्थापत्यकला और शिल्प के आश्चर्यजनक प्रयोग से परिपूर्ण, यह मंदिर, भारत के भव्यतम स्मारक स्थलों में से एक है। मुख्य मंदिर वक्ररेखीय आकार का है, जिसके शिखर पर विष्णु का श्री सुदर्शन चक्र (आठ आरों का चक्र) मंडित है। इसे नीलचक्र भी कहते हैं। यह अष्टधातु से निर्मित है और अति पावन और पवित्र माना जाता है। मंदिर का मुख्य ढांचा एक 214 फीट (65 मी॰) ऊंचे पाषाण चबूतरे पर बना है। इसके भीतर आंतरिक गर्भगृह में मुख्य देवताओं की मूर्तियां स्थापित हैं। यह भाग इसे घेरे हुए अन्य भागों की अपेक्षा अधिक वर्चस्व वाला है। इससे लगे घेरदार मंदिर की पिरामिडाकार छत और लगे हुए मण्डप, अट्टालिकारूपी मुख्य मंदिर के निकट होते हुए ऊंचे होते गये हैं। यह एक पर्वत को घेर हुए अन्य छोटे पहाड़ियों, फिर छोटे टीलों के समूह रूपी बना है। मुख्य मढ़ी (भवन) एक 20 फीट (6.1 मी॰) ऊंची दीवार से घिरा हुआ है तथा दूसरी दीवार मुख्य मंदिर को घेरती है। एक भव्य सोलह किनारों वाला एकाश्म स्तंभ, मुख्य द्वार के ठीक सामने स्थित है। इसका द्वार दो सिंहों द्वारा रक्षित हैं। भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा, इस मंदिर के मुख्य देव हैं। इनकी मूर्तियां, एक रत्न मण्डित पाषाण चबूतरे पर गर्भ गृह में स्थापित हैं। इतिहास अनुसार इन मूर्तियों की अर्चना मंदिर निर्माण से कहीं पहले से की जाती रही है। सम्भव है, कि यह प्राचीन जनजातियों द्वारा भी पूजित रही हो।
कोहिनूर हीरा, भगवान जगन्नाथ के मुकुट की होता शान
कुछ इतिहासकारों का विचार है कि इस मन्दिर के स्थान पर पूर्व में एक बौद्ध स्तूप होता था। उस स्तूप में गौतम बुद्ध का एक दाँत रखा था। बाद में इसे इसकी वर्तमान स्थिति, कैंडी, श्रीलंका पहुँचा दिया गया। इस काल में बौद्ध धर्म को वैष्णव सम्प्रदाय ने आत्मसात कर लिया था और तभी जगन्नाथ अर्चना ने लोकप्रियता पाई। यह दसवीं शताब्दी के लगभग हुआ, जब उड़ीसा में सोमवंशी राज्य चल रहा था। महाराजा रणजीत सिंह, महान सिख सम्राट ने इस मन्दिर को प्रचुर मात्रा में स्वर्ण दान किया था, जो कि उनके द्वारा स्वर्ण मंदिर, अमृतसर को दिये गये स्वर्ण से कहीं अधिक था। उन्होंने अपने अन्तिम दिनों में यह वसीयत भी की थी, कि विश्व प्रसिद्ध कोहिनूर हीरा, जो विश्व में अब तक सबसे मूल्यवान और सबसे बड़ा हीरा है, इस मन्दिर को दान कर दिया जाये। लेकिन यह सम्भव ना हो सका, क्योकि उस समय तक, ब्रिटिश ने पंजाब पर अपना अधिकार करके, उनकी सभी शाही सम्पत्ति जब्त कर ली थी। वर्ना कोहिनूर हीरा, भगवान जगन्नाथ के मुकुट की शान होता।