धर्मक्षेत्र
देव दीपावली विशेष : ॐ श्रीं ह्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महालक्ष्मयै नम:
प्रो. ललित तिवारी, नैनीताल। दिवाली के 15 दिन बाद देव दीपावली का उत्सव मनाया जाता है। जिसे कार्तिक पूर्णिमा भी कहा जाता है। इसी दिन गुरुनानक जी का जन्म भी हुआ तथा गुरुपर्व मनाया जाता है। देव दीपावली देवताओं की दिवाली है। माना जाता है कि इस दिन देवता दिवाली मनाते है तथा देवता स्वयं धरती पर आते है तथा गंगा नदी के किनारे दीप जलाकर दीपावली मनाते है। आज वैसे तो भगवान विष्णु तथा लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है किंतु कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही त्रिपुरासर राक्षस का वध भगवान शिव ने किया था इसलिए दीपदान की परंपरा तथा काशी तथा प्रयागराज की देव दीपावली प्रसिद्ध है। देव दीपावली पर 8 या 12 मुखवाला दीपक जलाने की परंपरा है। क्योंकि भगवान शिव भोलेनाथ की पूजा इसी से मानी जाती है। शास्त्र अनुसार तीन तत्वों का निर्माण सोना, चांदी, लोहे का निर्माण भी आज के दिन माना जाता है। आज ही के दिन अहंकार, क्रोध, लोभ, वासना, के आधार सहज ज्ञान और भीतर देवत्व के परिणामस्वरूप अभिव्यक्ति-देवता भगवान की वापसी का उत्सव तथा हमारे भीतर के राक्षस को समाप्त करने के लिए देव दिवाली मनाते हैं। आज की दिन आकाशदीप के माध्यम से वे धरती पर देवताओं के आगमन का स्वागत एवं अपने पूर्वजों को श्रद्धांजलि देने की परंपरा भी है। देव दीपावली पर पांच स्थानों पर दिए जलाए जाते है जिसमें अपने घर का मंदिर, भगवान विष्णु तथा भगवान शिव के मंदिर, नदी किनारे, गुरु पीपल वृक्ष, खेत पर दिया जलाना शुभ माना गया है जिससे कष्टों का निवारण हो सके।