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शाम पांच बजे से सूर्योदय तक केदारनाथ में यात्रा पर लगी रोक, तेज बारिश में भी नहीं होगी यात्रा

शाम पांच बजे से सूर्योदय तक केदारनाथ में यात्रा पर लगी रोक, तेज बारिश में भी नहीं होगी यात्रा
सीएन, रुद्रप्रयाग।
उत्तराखंड में बारिश के कारण हाहाकार मचा हुआ है। इसका असर चारधाम यात्रा पर भी देखने को मिल रहा है। बीते दिनों केदारनाथ में हुए हादसे के बाद से प्रशासन ने बड़ा फैसला लिया है। यात्रियों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए केदारनाथ पैदल मार्ग पर शाम पांच बजे से अगले दिन सूर्योदय तक यात्रा पर रोक लगा दी गई है। इसके साथ ही तेज बारिश होने पर भी यात्रा नहीं होगी। बीते रविवार को गौरीकुंड-केदारनाथ पैदल मार्ग पर हुआ हादसे में तीन तीर्थयात्रियों की मौत हो गई थी। जिसके बाद प्रशासन ने यात्रियों क सुरक्षा के लिए बड़ा फैसला लिया है। अब केदारनाथ पैदल मार्ग पर शाम पांच बजे से सूर्योदय तक यात्रा पर रोक लगा दी गई है। इसके साथ ही तेज बारिश में भी यात्रा संचालित नहीं की जाएगी। यात्रियों की सुरक्षा के लिए पैदल मार्ग पर खास इंतजाम किए गए हैं। पैदल मार्ग पर संवेदनशील स्थानों पर जवानों की तैनाती की गई है। सोमवार को दोपहर दो बजे तक केदारनाथ धाम के लिए सोनप्रयाग से 2147 श्रद्धालुओं ने प्रस्थान किया। इसके साथ ही यात्रियों से अपील की जा रही है कि मौसम की जानकारी लेने के बाद ही यात्रा पर आएं। उप जिलाधिकारी अनिल कुमार शुक्ला ने बताया कि बारिश के कारण केदारनाथ यात्रा के रूट पर रुद्रप्रयाग-गौरीकुंड हाईवे और गौरीकुंड.केदारनाथ पैदल मार्ग पर कई जगहों पर पत्थर गिर रहे हैं। इसके साथ ही मलबा भी आ रहा है। जिस कारण जानमाल का खतरा बना हुआ है। केदारनाथ पैदल मार्ग पर चिरबासा, गौरीकुंड व लिनचोली के साथ ही कई स्थानों पर भी स्थिति काफी संवेदनशील बनी हुई है। जिस कारण शाम पांच बजे से अगले दिन सुबह सूर्योदय तक पैदल मार्ग पर यात्रा पर रोक लगाने का फैसला लिया गया है। इसके साथ ही अगर दिन में भी तेज बारिश होती है तो यात्रा का संचालन नहीं किया जाएगा। इसके साथ ही उन्होंने यात्रा पर आने वाले सभी श्रद्धालुओं से सतर्कता बरतने की अपील की है।
केदारनाथ का पौराणिक इतिहास
सबसे पुराने वर्णन के अनुसार विष्णु के अवतार रूप ऋषियों नर नारायण की विनती पर भगवान शिव ने केदार में सदा के लिए अपना निवास बनाया था। महाकाव्य महाभारत के अनुसार पांडवों ने महाभारत युद्ध से विजय प्राप्त करने के पश्चात अपने ही भाई बंधुओं की हत्या करने की आत्मग्लानि से पीड़ित होकर महर्षि व्यास जी से उपाय पूछा तो उन्होंने पांडवों को शिव की शरण में जाने को कहा। पांडवों ने शिव से मुक्ति की कामना की किंतु भगवान शिव उन्हें दर्शन देने हेतु इच्छुक न थे। शिव ने पांडवों के केदार की ओर आने की सूचना मिलते ही वे वहीं केदारनाथ में ही जानवरों के एक झुंड में बैल के रूप में छिप गए और सिर की ओर से भूमि में जाने लगे तब पांडवों में से भीम ने बैल की पूंछ पकड़कर उसे रोक लिया और शिवजी को उन्हें दर्शन देकर आशीर्वाद देना पड़ा। उस स्थान से नंदी बैल की पीठ के अतिरिक्त शेष भाग लुप्त हो गया। यहीं उस बैल की पीठ के आकार का ही शिवलिंग आज केदारनाथ ज्योतिर्लिंग कहलाता है और मंदिर के गर्भगृह में यही नुकीली चट्टान भगवान शिव के सदाशिव रूप में पूजी जाती है। इसके बाद पांडवों या उनके ही वंशज जनमेजय ने यहां केदारनाथ ज्योतिर्लिंग की स्थापना की थी।
केदारनाथ में शिव आशीर्वाद मिलने के बाद पांडव पहाड़ की जिस चोटी से स्वर्ग गए थे उसे स्वर्गारोहिणी के नाम से जाना जाता है।

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