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धर्मक्षेत्र

मकर संक्रांति विशेष : एक राशि से दूसरे राशि में जाना ही संक्रांति 

सूर्य संवेदना पुष्पे, दीप्ति कारुण्यगंधने। लब्ध्वा शुभं नववर्षेऽस्मिन्, कुर्यात्सर्वस्य मंगलम्‌।

जिस प्रकार सूर्य प्रकाश देता है, संवेदना करुणा को जन्म देती है, पुष्प सदैव महकता रहता है, उसी तरह  मकर संक्रांति त्यौहार आपके लिए हर दिन, हर पल के लिए मंगलमय हो  ऐसी  हमारी कामना है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार ग्रहों के राजा सूर्य निश्चित अवधि के बाद राशि परिवर्तन करते हैं  अर्थात एक राशि से दूसरे राशि में जाना ही संक्रांति  है। इस वर्ष सूर्य 15 जनवरी  2024 को मकर राशि में प्रवेश कर रहे हैं। माना जाता है की  इस दिन सूर्य देव के रथ के खर निकल जाते हैं और फिर सातों घोड़े सूर्य देव के रथ में जुड़ जाते हैं, इससे सूर्य देव का वेग और प्रभाव बढ़ जाता है, तथा शुभ कार्य शुरू हो जाते हैं । घृणि सूर्याय नम: । ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय सहस्रकिरणराय मनोवांछित फलम् देहि देहि स्वाहा।। ॐ ऐहि सूर्य सहस्त्रांशों तेजो राशे जगत्पते, अनुकंपयेमां भक्त्या, गृहाणार्घय दिवाकर:। मकर संक्रांति  में स्नान करने के बाद पितरों को तर्पण देने तथा जल देने  से पितरों को शांति मिलती है  तथा इसकी बाद उसमें लाल चंदन, लाल फूल और गुड़ डालकर सूर्य मंत्र का जाप करते हुए भगवान भास्कर को अर्घ्य   दिया जाता है। मकर संक्रांति पर ही सूर्य देव अपने पुत्र शनि देव से मिलने उनके घर जाते हैं क्योंकि शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं, इसलिए इसे मकर संक्रांति कहा जाता है। मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन पानी में काले तिल और गंगाजल मिलाकर स्नान करने से कुंडली के ग्रह दोष दूर होते हैं तथा सूर्य की कृपा  प्राप्त होती है।इसी संक्रान्ति के दिन ही गंगा जी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर गंगा  सागर में  मिली थीं। यह भी माना जाता है कि इस दिन यशोदा ने श्रीकृष्ण को प्राप्त करने के लिये व्रत किया था।  पौष मास में सूर्य उत्तरायण होकर मकर राशि में विराजमान होते है तो  लोहड़ी, खिचड़ी,  पोंगल आदि  पर्व के रूप में मनाते हैं. । पुराणों में मकर संक्रांति को देवताओं का दिन बताया गया है. माना जाता है  कि इस दिन  का  दान सौ गुना होकर वापस लौटता है. माना जाता है कि संक्रांति ने इस दिन संकरासुर नामक रक्षक का अंत किया था  मकर संक्रांति से मलमास समाप्त होते हैं. तथा   मांगलिक कार्य विवाह, मुंडन, जनेऊ संस्कार आदि शुरू हो जाते हैं. धार्मिक मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन स्वर्ग का दरवाजा खुल जाता है. इस दिन पूजा, पाठ, दान, तीर्थ नदी में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है. पौराणिक कथा के अनुसार भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था, लेकिन दक्षिणायन सूर्य होने के कारण बाणों की शैया पर रहकर उत्तरायण सूर्य का इंतजार करके मकर संक्रांति होने पर उत्तरायण में अपनी देह का त्याग किया, ताकि  मुक्त हो  जाए । ठंड के दौरान  शरीर को गर्मी पहुंचाने वाले खाद्य साम्रगी खाई जाती है. यही वजह है कि मकर संक्रांति पर तिल, गुड़, खिचड़ी खाते हैं ताकि शरीर में गर्माहट बनी रहे. पुराण और विज्ञान दोनों में मकर संक्रांति  अर्थात सूर्य की उत्तरायण स्थिति का अधिक महत्व है. सूर्य के उत्तरायण से रातें छोटी और दिन बड़े होने लगते हैं. माना जाता है की  उत्तरायण में  मनुष्य प्रगति की ओर अग्रहसर होता है. अंधेरा  कम तथा प्रकाश में वृद्धि के कारण मानव की शक्ति में भी वृद्धि होती है. मकर संक्रांति पर पतंग उड़ाना भी विज्ञान से जुड़ा है. सूर्य का प्रकाश शरीर के लिए स्वास्थवद्र्धक और त्वचा तथा हड्डियों के लिए बेहद लाभदायक होता है.  पतंग उड़ाने के लिए हम कुछ घंटे सूर्य के प्रकाश में रहते हैं, जो आरोग्य प्रदान करता है ।

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माघे मासे महादेव: यो दास्यति घृतकम्बलम।

स भुक्त्वा सकलान भोगान अन्ते मोक्षं प्राप्यति॥

मकर संक्रान्ति के अवसर पर गंगास्नान एवं गंगातट पर दान को अत्यन्त शुभ माना गया है।  सामान्यत: सूर्य सभी राशियों को प्रभावित करते हैं, किन्तु कर्क व मकर राशियों में सूर्य का प्रवेश धार्मिक दृष्टि से अत्यन्त फलदायक है। यह प्रवेश अथवा संक्रमण क्रिया छ:-छ: माह के अन्तराल पर होती है। हमारा देश उत्तरी गोलार्ध में स्थित है। तथा भारतीय पंचांग पद्धति की समस्त तिथियाँ चन्द्रमा की गति को आधार मानकर निर्धारित की जाती हैं, किन्तु मकर संक्रान्ति को सूर्य की गति से निर्धारित किया जाता है। हमारे पवित्र वेद, भागवत गीता जी तथा पूर्ण परमात्मा का संविधान कहा जाता  है ।.भारत के प्रमुख पर्वों में से एक मकर संक्रांति पूरे भारत और नेपाल में अलग अलग रूपों में मनाई  जाती है  है। पौष मास में जिस दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है उस दिन इस पर्व को मनाया जाता है। यह त्योहार जनवरी माह के चौदहवें या पन्द्रहवें दिन ही पड़ता है, जिस दिन सूर्य धनु राशि को छोड़ मकर में प्रवेश करते है । तमिलनाडु में इसे पोंगल , कर्नाटक, केरल,तेलंगाना तथा आंध्र प्रदेश में इसे  संक्रांति  ,उत्तरायण तथा उत्तराखंड में घुघुतिया कहते हैं। । मकर संक्रान्ति पर्व को कहीं-कहीं उत्तरायण भी कहते हैं। 14 जनवरी के बाद से सूर्य उत्तर दिशा की ओर अग्रसर होता है। इसी कारण इस पर्व को ‘उतरायण’ (सूर्य उत्तर की ओर) भी कहते है। वैज्ञानिक तौर पर इसका मुख्य कारण पृथ्वी का निरंतर 6 महीनों के समय अवधि के उपरांत उत्तर से दक्षिण की ओर वलन कर लेना होता है। और यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है। मकर संक्रांति का उत्सव भगवान सूर्य की पूजा के लिए समर्पित है. भक्त इस दिन भगवान सूर्य की पूजा कर आशीर्वाद मांगते हैं, इस दिन से वसंत की शुरुआत होती है। मकर संक्रांति पर भक्त गंगा, रामगंगा  यमुना, गोदावरी, सरयू और सिंधु नदी में पवित्र स्नान करते हैं ।भगवान सूर्य को अर्घ्य देना  और जरूरतमंद लोगों को भोजन, दालें, अनाज, गेहूं का आटा और ऊनी कपड़े दान करना शुभ माना जाता । ॐ घृणि सूर्याय नम: । ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय सहस्रकिरणराय मनोवांछित फलम् देहि देहि स्वाहा।। ॐ ऐहि सूर्य सहस्त्रांशों तेजो राशे जगत्पते, अनुकंपयेमां भक्त्या, गृहाणार्घय दिवाकर: ओउम्

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*भास्करस्य यथा तेजो मकरस्थस्य वर्धते।*

*तथैव भवतां तेजो वर्धतामिति कामये।।*”

जिस प्रकार मकर राशि में प्रवेश करने के बाद दिन प्रतिदिन सूर्य देव का तेज बढ़ता जाता है, उसी प्रकार आप का तेज, यश और कीर्ति भी दिन प्रतिदिन बढ़ती रहे।उत्तरायण का सूर्य आपके सपनों  को नयी ऊर्जा  प्रदान करे, आपके यश एवं कीर्ति में उत्तरोत्तर वृद्धि हो, आप परिजनों सहित स्वस्थ रहें, दीर्घायु हों! उत्तराखंड में मकर संक्रांति पर घुघुते बनाते है तथा अगले दिन बच्चे इस दिन बनाए गए घुघुते कौवे को खिलाकर कहते हैं- ‘काले कौवा काले घुघुति माला खा ले’। 

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प्रो. ललित तिवारी, नैनीताल।

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