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माता पार्वती का शिकार करने आया था शेर, कैसे बन गया सवारी

माता पार्वती का शिकार करने आया था शेर, कैसे बन गया सवारी
दिन के हिसाब से मां के अलग-अलग वाहन, देते हैं शुभ अशुभ का संकेत
सीएन, हरिद्वार।
मां दुर्गा की सवारी शेर है, यह तो हम सभी जानते हैं लेकिन यह ख्याल ज़रूर आता होगा कि आखिर मां की सवारी कैसे बना शेर। कहा जाता है कि माता पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिए काफी प्रयास किए थे। वह उन्हें पति के रूप में पाना चाहती थीं। इसके लिए उन्होंने कठिन तपस्या की जो वर्षों तक चली। तपस्या कठोर थी इस कारण माता के शरीर का रंग गोरे से सांवला हो गया। माता की तपस्या से भोलेनाथ प्रसन्न हुए और उनका विवाह हुआ। काफी समय बाद एक दिन भगवान शिव और देवी पार्वती कैलाश पर्वत पर बैठकर हंसी-मज़ाक़ कर रहे थे। तभी शिवजी ने मां पार्वती को काली कह दिया। शिवजी की यह बात पार्वतीजी को खटक गई। शिवजी के काफी मनाने पर भी वह नहीं मानीं। इसके बाद उन्होंने अपना गौर रूप वापस पाने की ठान ली। फिर क्या माता कैलाश छोड़कर तपस्या करने में लीन हो गईं। एक दिन माता के तपस्या स्थल पर एक शेर जा पहुंचा। शेर को भूख भी लगी थी लेकिन उसने देखा कि मां तपस्या में लीन हैं। शेर काफी समय तक माता को भूखे-प्यासे देखता रहा। पार्वतीजी को देखते-देखते शेर ने सोचा कि जब वह तपस्या से उठेंगी तो उनका शिकार कर लेगा। लेकिन देखते ही देखते कई साल बीत गए। पार्वतीजी की तपस्या जब पूरी हुई, तो भगवान शिव प्रकट हुए और माता को गौरवर्ण यानी मां गौरी होने का वरदान दे दिया। तभी से मां पार्वती महागौरी कहलाने लगीं। तपस्या पूरी होने पर मां पार्वती ने देखा कि शेर भी उनकी तपस्या के दौरान भूखा.प्यासा बैठा है। उन्होंने सोचा कि शेर को भी उसकी तपस्या का फल मिलना चाहिए। इसके बाद ही माता ने शेर को अपनी सवारी बना लिया। इस तरह से सिंह यानी शेर मां दुर्गा की सवारी बना और मां दुर्गा का नाम शेरावाली पड़ा। माता के शेर के वाहन को लेकर एक और मान्यता भी है। स्कंद पुराण में यह पौराणिक कथा आती है। कथा के अनुसार भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र कार्तिकेय ने देवासुर संग्राम में दानव तारक और उसके दो भाई सिंहमुखम और सुरापदमन नामक असुरों को पराजित कर दिया था। सिंहमुखम ने कार्तिकेयजी से माफी मांगी। इसके बाद कार्तिकेय प्रसन्न हो गए। उन्होंने उसे शेर बना दिया और मां दुर्गा का वाहन बनने का भी आशीर्वाद दे दिया। ज्योतिष के अनुसार जब पितृ अपने परिवार से मिलकर धरती से लौटते हैं, तब मां दुर्गा पृथ्वी पर पधारती हैं। उसी दिन से नवरात्र की शुरुआत हो जाती है। दिन के हिसाब से मां के अलग.अलग वाहन होते हैं, जो भविष्य का संकेत भी देते हैं। मां दुर्गा के वाहन डोली, नाव, घोड़ा, भैंसा, मनुष्य और हाथी भी होते हैं। मान्यता के अनुसार अगर नवरात्र रविवार या सोमवार से शुरू हो गये हैं तो मां का वाहन हाथी होता है जो ज़्यादा बारिश के संकेत देता है। यह इस बात का भी संकेत देता है कि आपका यह साल खूब अच्छा बीतेगा। शुभ परिणाम भी मिलने की संभावना है। वहीं अगर नवरात्र मंगलवार और शनिवार से शुरू हैं तो मां का वाहन घोड़ा होता है जो सत्ता परिवर्तन का संकेत देता है। इसके अलावा गुरुवार या शुक्रवार से शुरू होने पर मां दुर्गा डोली में बैठकर आती हैं। यह तांडव, जन.धन हानि का संकेत है। बुधवार के दिन से नवरात्र की शुरुआत होती है तो मां नाव पर सवार होकर आती हैं और अपने भक्तों के सारे कष्ट हर लेती हैं। नवरात्र की शुरुआत पर ही मां के वाहन तय नहीं होते। ख़त्म होने पर भी मां के वाहन अलग होते हैं। अगर नवरात्र का समापन रविवार और सोमवार को हो रहा हैए तो मां दुर्गा भैंसे की सवारी करती हैं। इसका मतलब होता है कि देश में शोक और रोग बढ़ेंगे। शनिवार और मंगलवार को नवरात्र का समापन हो तो मां जगदंबे मुर्गे पर सवार होकर जाती हैं। मुर्गे की सवारी दुख और कष्ट की वृद्धि की ओर इशारा करती है। बुधवार और शुक्रवार को नवरात्र ख़त्म होते हैंए तो मां की वापसी हाथी पर होती है। इसके अलावा अगर नवरात्र का समापन गुरुवार को हो रहा है, तो मां दुर्गा मनुष्य के ऊपर सवार होकर जाती हैं, जो सुख और शांति की वृद्धि की ओर इशारा करता है।
पौराणिक मान्यता के अनुसार देवी का जन्म सबसे पहले दुर्गा के रूप में ही माना जाता है, जिन्होंने राक्षस महिषासुर का वध करने के लिए जन्म लिया था। यही कारण है कि उन्हें महिषासुर मर्दिनी भी कहा जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवताओं को भगाकर महिषासुर ने स्वर्ग पर क़ब्ज़ा कर लिया था, तब सभी देवता परेशान हो गए थे। इसके बाद ही ब्रह्माजी, विष्णुजी और शिवजी ने अपने शरीर की ऊर्जा से एक आकृति बनाई और सभी देवताओं ने अपनी शक्तियां उस आकृति में डालीं। इसलिए मां दुर्गा को शक्ति भी कहा जाता है। मां दुर्गा की छवि बेहद सौम्य और आकर्षक थी और उनके कई हाथ थे। क्योंकि सभी देवताओं ने मिलकर उन्हें शक्ति दी इसलिए वह सबसे ताकतवर भगवान मानी जाती हैं। उन्हें शिवजी का त्रिशूल, विष्णुजी का चक्र, ब्रह्माजी का कमल, वायु देव से नाक हिमावंत पर्वतों के देवता से कपड़े, धनुष और शेर मिला। ऐसे एक-एक कर शक्तियों से वह दुर्गा बनीं और युद्ध के लिए तैयार हुईं। मां और महिषासुर के बीच भीषण युद्ध हुआ। यह युद्ध 9 दिन तक चला। इसलिए नवरात्र 9 दिन मनाया जाता है। इससे जुड़ी अन्य कथाएं भी हैं। जैसे नवरात्र को मां दुर्गा के 9 रूपों से जोड़कर देखा जाता है। कहते हैं कि हर दिन युद्ध में देवी ने अलग रूप लिया था, इसलिए 9 दिन 9 अलग.अलग देवियों की पूजा की जाती है। हर दिन को अलग रंग से जोड़कर भी देखा जाता है।

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