धर्मक्षेत्र
नवमी को विधिवत तरीके से करे मां दुर्गा के नौवें स्वरूप मां सिद्धादात्री की पूजा
नवमी को विधिवत तरीके से करे मां दुर्गा के नौवें स्वरूप मां सिद्धादात्री की पूजा
सीएन, हरिद्वार। 4 अक्टूबर से शुरू हुए नवरात्र 24 अक्टूबर को दशमी तिथि के साथ समाप्त हो रहे है। इस साल पूरे नौ दिनों के नवरात्र पड़े है। इन नौ दिनों में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की विधि विधान से पूजा अर्चना की जाती है। महाभारत काल में पाण्डवों ने श्रीकृष्णजी के परामर्श पर शारदीय नवरात्रि की पावन बेला पर माँ दुर्गा महाशक्ति की उपासना विजय के लिये की थी। तब से तथा उसके पूर्व से शारदीय नवव्रत उपासना का क्रम चला आ रहा है। यह नवरात्रि इन्हीं कारणों से बड़ी नवरात्रि, महत्त्वपूर्ण एवं वार्षिकी नवरात्रि के रूप में मनायी जाती है। बंगाल प्रांत में इसी नवरात्रि को दुर्गापूजा का सबसे बड़ा महोत्सव होता है। बंगाल में सप्तमीए अष्टमी तथा नवमी की विशेष पूजा का विशेष महत्त्व माना जाता है।नवरात्र की शुरुआत में व्रत रखने वाले लोग कलश स्थापना भी करते हैं। वहीं नवमी तिथि को व्रत का पारण करने के बाद विसर्जन करने का विधान है। इसके साथ ही अंतिम दिन मां दुर्गा की पूजा के साथ हवन किया जाता है। कई जगहों पर महा अष्टमी नवमी तो कहीं पर दशमी यानी दशहरा के दिन विसर्जन किया जाता है। अगर आप भी मां दुर्गा की पूजा करने के साथ कलश स्थापना किए हुए है। नवरात्र में हवन कई लोग कुछ सामग्री को लेकर कर लेते हैं। इसके अलावा आप चाहे तो विधिवत तरीके से हवन सामग्री इकट्ठा करके हवन कर सकते हैं। नवरात्र में अंतिम दिन हवन के लिए एक सूखा नारियल, लाल रंग का कपड़ा, कलावा, एक हवन कुंड, सूखी आम की लकड़िया, इसके अलावा अश्वगंधा, ब्राह्मी, मुलैठी की जड़, चंदन, बेल, नीम, पीपल तने की छाल, गूलर की छाल और पलाश की लकड़ियां शामिल कर सकते हैं। हवन धूप में मिलाने के लिए काला तिल, कपूर, चावल, गाय का घी, लौंग, लोभान, इलायची, गुग्गल, जौ और शक्कर मिलाकर रखें। इसके अलावा इसमें पंच मेवा भी डाल सकते हैं।
नवरात्र में हवन करने की विधि
नवरात्र की नवमी तिथि को विधिवत तरीके से मां दुर्गा के नौवें स्वरूप मां सिद्धादात्री की पूजा कर लें। इसके साथ ही कलश स्थापना की पूजा करें। इसके बाद पूजा स्थान या साफ.सुथरी जगह पर आटा से एक रंगोली बनाएं और उसके ऊपर हवन कुंड रख दें। इसके साथ ही पास में चौकी में मां दुर्गा की तस्वीर या मूर्ति केसाथ कलश कर लें। अब हवन शुरू करें। इसके लिए हवन कुंड में लकड़ी रखें और थोड़ा सा कपूर या घी डालकर जला दें। इसके साथ ही एक आसन में बैठ जाएं और मंत्रों के साथ हवन आरंभ करें। जब हवन मंत्रों के साथ आहुति डाल दें, तो फिर खीर का भोग डालें। फिर सूखा नारियल में में बीच से किसी चीज की मदद से छेद कर दें और उसमें घी भर दें। अंत में इसे हवन कुंडल के बीच में दबा दें। इसके बाद अंत में बची हुआ हवन धूप को ऊपर से डालकर इस मंत्र को बोले.
ऊं पूर्णमद, पूर्णमिदम् पुर्णात पूण्य मुदच्यते, पुणस्य पूर्णमादाय पूर्णमेल विसिस्यते स्वाहा।
हवन करते समय इन मंत्रों के साथ दें आहुति
ऊं आग्नेय नमः स्वाहा
ऊं गणेशाय नमः स्वाहा
ऊं गौरियाय नमः स्वाहा
ऊं नवग्रहाय नमः स्वाहा
ऊं दुर्गाय नमः स्वाहा
ऊं महाकालिकाय नमः स्वाहा
ऊं हनुमते नमः स्वाहा
ऊं भैरवाय नमः स्वाहा
ऊं कुल देवताय नमः स्वाहा
ऊं न देवताय नमः स्वाहा
ऊं ब्रह्माय नमः स्वाहा
ऊं विष्णुवे नमः स्वाहा
ऊं शिवाय नम स्वाहा
ऊं जयंती मंगलाकाली, भद्रकाली कपालिनी दुर्गा क्षमा शिवाधात्री स्वाहा
स्वधा नमस्तुति स्वाहा।
ऊं ब्रह्मा मुरारी त्रिपुरांतकारी भानुः शशि भूमि सुतो बुधश्चः गुरुश्च शुक्र शनि राहु केतव सर्वे ग्रहा शांति करा भवंतु स्वाहा।
ऊं गुरुर्ब्रह्मा, गुरुर्विष्णु, गुरुर्देवा महेश्वरः गुरु साक्षात् परब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नमः स्वाहा।
ऊं शरणागत दीनार्त परित्राण परायणे, सर्व स्थार्ति हरे देवि नारायणी नमस्तुते।