धर्मक्षेत्र
17 मार्च को करें दशा माता व्रत, घर-परिवार में सुख-समृद्धि और परेशानियां खत्म
17 मार्च को करें दशा माता व्रत, घर-परिवार में सुख-समृद्धि और परेशानियां खत्म
सीएन, उज्जैन। धर्म ग्रंथों के अनुसार, चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि को दशा माता का व्रत किया जाता है। इस बार ये तिथि 17 मार्च, शुक्रवार को है। मान्यता के अनुसार, इस दिन दशा माता की पूजा करने से घर-परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है और परेशानियां खत्म होती हैं। दशा माता कोई और नहीं बल्कि मां पार्वती का ही स्वरूप है। इस दिन वृक्षों की त्रिवेणी ( पीपल, नीम और बरगद) की पूजा करने का भी विधान है।
इस विधि से करें दशा माता की पूजा
17 मार्च, शुक्रवार की सुबह स्नान आदि करने के बाद व्रत-पूजा का संकल्प लें। इसके बाद पीपल वृक्ष को भगवान विष्णु का स्वरूप मानकर पूजा करें। कच्चे सूत का 10 तार का डोरा बनाकर उसमें 10 गांठ लगाएं और इसकी पूजा करें। पीपल वृक्ष की 10 प्रदक्षिणा करते हुए भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप करें। वृक्ष के नीचे दीपक लगाएं। अबीर, गुलाल, कुंकुम, चावल, फूल आदि चीजें चढ़ाएं। पूजा के बाद वृक्ष के नीचे बैठकर नल दमयंती की कथा सुनें। घर आकर द्वार के दोनों ओर हल्दी कुमकुम के छापे लगाएं। इस दिन व्रत रखें और शाम को बिना नमक का भोजन करें। इस प्रकार पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है और परेशानियां दूर रहती हैं।
दशा माता व्रत की कथा
-किसी समय नल नाम के एक पराक्रमी राजा थे, उनकी पत्नी का नाम दमयंती था। एक दिन रानी दमयंती ने दशा माता का व्रत किया और डोरा अपने गले में बांधा। राजा ने किसी बात पर वो डोरा निकालकर फेंक दिया। उसी रात दशा माता बुढ़िया के रूप में राजा के सपने में आई और कहा कि “तेरा अच्छा समय जा रहा है और बुरा समय आ रहा है, क्योंकि तूने मेरा अपमान किया है।”इसके बाद कुछ ऐसा हुआ कि राजा को वन-वन में भटकना पड़ा। राजा के साथ रानी भी इधर-उधर भटकने लगी। राजा पर चोरी का भी आरोप लगा। एक दिन राजा को सपने वाली बुढि़या दिखाई दी तो वे बोले “माता मुझसे भूल हुई क्षमा। मैं पत्नी सहित दशामाता का पूजन करूंगा। बुढि़या ने उन्हें पूजन की विधि भी बताई। राजा ने उसी विधि के अनुसार, दशामाता का पूजन किया और दशामाता का डोरा गले में बांधा। इस व्रत के प्रभाव से राजा की दशा सुधरी और उन्हें पुनः अपना राज्य मिल गया।