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धर्मक्षेत्र

पितृ पक्ष पितरों का श्राद्ध कर्म करने से व्यक्ति को होती है विशेष फलों की प्राप्ति 

पितृ पक्ष  पितरों का श्राद्ध कर्म करने से व्यक्ति को होती है विशेष फलों की प्राप्ति 
आचार्य इंदु प्रकाश, बनारस।
महर्षि पराशर का मत है कि देश.काल के अनुसार यज्ञ पात्र में हवन आदि के द्वारा, तिल, जौ, कुशा तथा मंत्रों से परिपूर्ण कर्म श्राद्ध होता है। इस प्रकार किया जाने वाला यह पितृ यज्ञ कर्ता के सांसारिक जीवन को सुखमय बनाने के साथ परलोक भी सुधारता है। साथ ही जिस दिव्य आत्मा का श्राद्ध किया जाता है उसे तृप्ति एवं कर्म बंधनों से मुक्ति भी मिल जाती है। 17 सितंबर से पितृ पक्ष यानी श्राद्ध शुरू हो चुके हैं। इसी दिन पूर्णिमा तिथि वालों का श्राद्ध कार्य किया गया था जबकि 18 सितंबर को प्रतिपदा तिथि वालों का श्राद्ध किया गया। बता दें कि जिन लोगों का स्वर्गवास किसी भी महीने के कृष्ण या शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को हुआ हो उन लोगों का श्राद्ध प्रतिपदा तिथि को किया जाएगा। प्रतिपदा तिथि का श्राद्ध कर्म करने वाले व्यक्ति को राजा के समान सुख की प्राप्ति होती है। उसे हर तरह के सुख.साधन आसानी से मिल जाते हैं। वैसे तो भाद्रपद शुक्ल पक्ष पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण पक्ष अमावस्या तक जिस तिथि को जिसका स्वर्गवास हुआ हो उसी तिथि को उस व्यक्ति का श्राद्ध कार्य किया जाता है। वहीं जिन लोगों को अपने पितरों की तिथि याद न हो वे लोग पितृपक्ष की अमावस्या को श्राद्ध.कर्म कर सकते हैं। पितरों का श्राद्ध कर्म करने से व्यक्ति को विशेष फलों की प्राप्ति होती है। जिनका स्वर्गवास किसी भी महीने की प्रतिपदा तिथि को हुआ हो उनका श्राद्ध इसी दिन किया जाएगा। प्रतिपदा तिथि में श्राद्ध करने से श्राद्ध करने वाले को और उसके परिवार को अच्छी बुद्धि पुष्टि पुत्र.पौत्रादि और ऐश्वर्य की प्राप्त होती है। द्वितीया तिथि का श्राद्ध 19 सितंबर को किया गया। तिथि का श्राद्ध 20 सितंबर को किया जाएगा। तृतीया तिथि में उन लोगों को श्राद्ध किया जाएगा जिनका स्वर्गवास किसी भी महीने के कृष्ण या शुक्ल पक्ष की तृतीया को हुआ हो। तृतीया तिथि में श्राद्ध करने से व्यक्ति को शत्रुओं से छुटकारा मिलता है और समस्त कष्टों से मुक्ति मिलती है। चतुर्थी तिथि का श्राद्ध 21 सितंबर को किया जाएगा। चतुर्थी तिथि में उन लोगों का श्राद्ध किया जाएगा, जिनका स्वर्गवास किसी भी महीने के कृष्ण या शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को हुआ हो। इस दिन श्राद्ध करने से व्यक्ति को शत्रुओं से होने वाले अहित का पहले से ही ज्ञान हो जाता है। इस बार महा भरणी श्राद्ध भी चतुर्थी श्राद्ध के साथ मनाया जाएगा। इस दिन किये गये श्राद्ध से व्यक्ति की सुख.समृद्धि में वृद्धि होती है। पंचमी तिथि का श्राद्ध 22 सितंबर को किया जाएगा। पंचमी तिथि को उनका श्राद्ध किया जाएगा जिनका स्वर्गवास किसी भी महीने के कृष्ण या शुक्ल पक्ष की पंचमी को हुआ हो। साथ ही जिनका देहांत अविवाहित अवस्था में, यानि कि शादी से पहले ही हो गया हो उनका श्राद्ध भी इसी दिन किया जाएगा। इस दिन श्राद्ध कर्म करने वाले व्यक्ति को उत्तम लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। षष्ठी तिथि का श्राद्ध 23 सितंबर को किया जाएगा। इस दिन उन लोगों का श्राद्ध किया जाएगा जिनका स्वर्गवास किसी भी महीने के कृष्ण या शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को हुआ हो। इस दिन श्राद्ध करने वाला व्यक्ति सब जगह सम्मान पाने का हकदार होता है।  वहीं सप्तमी तिथि का श्राद्ध भी 23 सितंबर को ही किया जाएगा। सप्तमी तिथि को उन लोगों को श्राद्ध किया जाता है जिनका स्वर्गवास किसी भी महीने के कृष्ण या शुक्ल पक्ष की सप्तमी को हुआ हो। इस दिन श्राद्ध करने वाले व्यक्ति को महान यज्ञों के बराबर पुण्य फल मिलता है और वह श्रेष्ठ विचारों का धनी होता है। अष्टमी तिथि का श्राद्ध 24 सितंबर को किया जाएगा। अष्टमी तिथि को उन लोगों का श्राद्ध किया जाएगा जिनका स्वर्गवास किसी भी महीने के कृष्ण या शुक्ल पक्ष की अष्टमी को हुआ हो। इस दिन श्राद्ध करने वाले व्यक्ति को संपूर्ण सिद्धियों की प्राप्ति होती है। नवमी तिथि का श्राद्ध 25 सितंबर को किया जाएगा। नवमी तिथि को उनका श्राद्ध किया जाएगा जिनका स्वर्गवास किसी भी महीने के कृष्ण या शुक्ल पक्ष की नवमी को हुआ हो। साथ ही सौभाग्यवती स्त्रियों, जिनकी मृत्यु उनके पति से पूर्व ही हो गई हो उनका श्राद्ध कर्म भी 25 सितंबर को ही किया जाएगा। इसके अलावा माता का श्राद्ध भी इसी दिन किया जाता है जिसके चलते इसे मातृ नवमी भी कहते हैं। इस दिन श्राद्ध करने वाले व्यक्ति को ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है और मनचाहा दांपत्य सुख मिलता है। दशमी तिथि का श्राद्ध 26 सितंबर को किया जाएगा। दशमी तिथि को उन लोगों का श्राद्ध किया जाएगा जिनका स्वर्गवास किसी भी महीने के कृष्ण या शुक्ल पक्ष की दशमी को हुआ हो। इस दिन श्राद्ध करने वाले व्यक्ति को कभी भी लक्ष्मी की कमी नहीं होती। उसके पास धन.सम्पदा बनी रहती है। एकादशी तिथि का श्राद्ध 27 सितंबर को किया जाएगा। एकादशी तिथि को उन लोगों का श्राद्ध किया जाएगा जिनका स्वर्गवास किसी भी महीने के कृष्ण या शुक्ल पक्ष की एकादशी को हुआ हो। इस दिन श्राद्ध करना सबसे पुण्यदायी माना गया है। इस दिन श्राद्ध करने वाले व्यक्ति को वेदों का ज्ञान प्राप्त होता है और उसे निरंतर ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। द्वादशी तिथि का श्राद्ध 29 सितंबर को किया जाएगा। द्वादशी तिथि को उन लोगों का श्राद्ध किया जाएगा, जिनका स्वर्गवास किसी भी महीने के कृष्ण या शुक्ल पक्ष की द्वादशी को हुआ हो। साथ ही जिन लोगों ने स्वर्गवास से पहले संन्यास ले लिया होए उन लोगों का श्राद्ध भी 29 सितंबर को ही किया जाएगा। इस दिन श्राद्ध करने वाले के घर में कभी भी अन्न की कमी नहीं होती।  त्रयोदशी तिथि का श्राद्ध 30 सितंबर को किया जाएगा। त्रयोदशी तिथि को उन लोगों का श्राद्ध किया जाएगा जिनका स्वर्गवास किसी भी महीने के कृष्ण या शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को हुआ हो। साथ ही नवजात शिशुओं का श्राद्ध भी 30 सितंबर को ही किया जाएगा। इस दिन श्राद्ध करने से व्यक्ति को श्रेष्ठ बुद्धि, संतति, धारणा शक्ति, स्वतंत्रता, दीर्घायु और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। चतुर्दशी तिथि का श्राद्ध 1 अक्टूबर को किया जाएगा। चतुर्दशी तिथि को उन लोगों का श्राद्ध किया जाएगा जिनका स्वर्गवास किसी भी महीने के कृष्ण या शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को हुआ हो। साथ ही उन लोगों का श्राद्ध भी इसी दिन किया जाएगा जिनकी अकाल मृत्यु हुई हो यानि जिनकी मृत्यु किसी एक्सीडेंट या किसी शस्त्र आदि से हुई हो। इस दिन श्राद्ध करने से व्यक्ति को किसी भी अज्ञात भय का खतरा नहीं होता है। अमावस्या तिथि का श्राद्ध 2 अक्टूबर को किया जाएगा। इस दिन उन लोगों का श्राद्ध किया जाएगा जिनका स्वर्गवास किसी भी महीने की अमावस्या को हुआ हो। साथ ही मातामह, यानि नाना का श्राद्ध भी इसी दिन किया जाएगा। इसमें दौहित्र यानि बेटी का बेटा ये श्राद्ध कर सकते है। भले ही उसके नाना के पुत्र जीवित हों लेकिन वो भी ये श्राद्ध करके उनका आशीर्वाद पा सकता है। बस श्राद्ध करने वाले के खुद के माता.पिता जीवित होने चाहिए। इसके अलावा जुड़वाओं का श्राद्ध, तीन कन्याओं के बाद पुत्र या तीन पुत्रों के बाद कन्या का श्राद्ध भी इसी दिन किया जाएगा। इसके अलावा अज्ञात तिथि वालों का श्राद्ध यानी जिनके स्वर्गवास की तिथि ज्ञात न हो उन लोगों का श्राद्ध भी अमावस्या के दिन ही किया जाता है। साथ ही पितृ विसर्जन और सर्वपित्री भी इसी दिन मनाया जाएगा और अमावस्या के श्राद्ध के साथ ही इस दिन वर्ष 2024 के महालया यानी पितृ पक्ष की समाप्ति हो जायेगी। इस श्राद्ध को करने वाला व्यक्ति अत्यंत सुख को पाता है।

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