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अल्मोड़े के नन्दा देवी मंदिर से छेड़छाड़ करने पर अंधा होता होता बचा था अंग्रेज कमिश्नर

अल्मोड़े के नन्दा देवी मंदिर से छेड़छाड़ करने पर अंधा होता होता बचा था अंग्रेज कमिश्नर
सीएन, अल्मोड़ा।
वर्ष 1815 में तत्कालीन कमिश्नर कुमाऊँ ट्रेल के आदेश पर अंग्रेजों ने अल्मोड़ा के मल्ला महल में धरी नन्दा देवी की मूर्ति को मूलस्थान से हटवा दिया था जिसके बाद गुमानी ने अपनी कविता में इस घटना का ज़िक्र किया। माना जाता है कि कुमाऊँ के चंद राजा बाज बहादुर चंद ने वर्ष 1670 में बधाणगढ़ के किले से लाकर अपनी कुलदेवी नन्दा देवी की मूर्ति को मल्ला महल में स्थापित किया था। फिलहाल मल्ला महल लम्बे समय से अल्मोड़े के कलक्ट्रेट के रूप में काम में लाया जाता रहा है। वर्ष 1699 में राजा ज्ञानचंद भी बधाणकोट से सोने की एक मूर्ति अल्मोड़ा लाए। वर्ष 1710 में राजा जगतचंद ने राजसी खजाने से 200 अशर्फियाँ गलाकर नंदादेवी की मूर्ति बनवाई और ये दोनों प्रतिमाएं भी मल्ला महल में प्रतिष्ठित की गईं। जिस परिसर में वर्तमान नंदादेवी मंदिर स्थित है वहाँ 1690-91 में तत्कालीन राजा उद्योत चंद ने उद्योत चंद्रेश्वर और पार्वती चंद्रेश्वर के दो मंदिर बनवाए। 1815 में अंग्रेजों ने नंदादेवी की मूर्ति को मल्ला महल से वर्तमान नंदादेवी परिसर में स्थानांतरित कर दिया था। इसके कुछ समय बाद कमिश्नर ट्रेल एक लम्बी हिमालयी यात्रा पर गए। बताया जाता है कि इस यात्रा के दौरान नन्दादेवी शिखर को देखने के बाद उनकी आँखों की रोशनी कम होने लगी। अल्मोड़ा वापस लौटने पर अपने स्थानीय सलाहकारों की बात मान उन्होंने 1816 में नंदादेवी का वर्तमान मंदिर बनवाया। कुमाऊँ.गढ़वाल के तमाम राजवंश नन्दा देवी की अपनी कुल देवी के रूप में आराधना करते रहे हैं। नंदा को गढ़वाल और चंद वंश की बहन.बेटी की मान्यता प्राप्त थी। खजुराहो मंदिरों की तर्ज पर नंदादेवी मंदिर की दीवारों में उकेरी गयी कलाकृतियां और मन्दिर के दक्षिणमुखी द्वार से लगता है कि किसी समय यह स्थान तांत्रिक साधना के काम लाया जाता रहा होगा। नंदादेवी परिसर की आज जो स्थिति है वह वर्ष 1925 में निर्मित हुई थी। यह समय भारत के स्वाधीनता संग्राम का था और इस संग्राम में बढ़.चढ़ कर भाग ले रहे आजादी के योद्धाओं ने नन्दा देवी मंडोर के इस परिसर को अपनी राजनैतिक गतिविधियों का सबसे बड़ा गहवारा बना दिया था। इस मंदिर में हर वर्ष नन्दाष्टमी के अवसर पर एक भव्य मेला लगता है। इस मेले की प्रमुखता यह है कि इस में कुमाऊँ भर के लोक कलाकार आकर अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं।
काफल ट्री से साभार

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