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चंद्रताल झील जहां से स्वर्ग गए थे युधिष्ठिर, अब भी रात को यहां आती हैं परियां

चंद्रताल झील जहां से स्वर्ग गए थे युधिष्ठिर, अब भी रात को यहां आती हैं परियां
सीएन, शिमला।
चंद्रताल हिमालय पर लगभग 4,300 मीटर यानी 14,100 फीट की ऊँचाई पर स्थित एक झील है। जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है। जहां से पांडव स्वर्ग गए थे यह सुंदर झील अब भी रहस्य बनी हुई है। दुनियाभर से टूरिस्ट इस झील को देखने के लिए आते हैं। लोक मान्यता है कि इस झील के पास अब भी रात में परियां आती हैं और एक चरवाहे की आत्मा भटकती है। अपने पौराणिक महत्व के कारण ये झील काफी प्रसिद्ध है। इस झील का नाम है चंद्रताल झील। हिंदू पौराणिक कथाओं के मुताबिक महाभारत युद्ध के बाद जब पांडव स्वर्ग को गए और रास्ते में एक.एक कर मरते गए तो युधिष्ठिर बचे और उन्हें इंद्र स्वर्ग को चंद्रताल झील से ही ले गए। यह झील हिमाचल प्रदेश में है। चंद्र ताल से चंद्र नदी का उद्गम होता है और सूरज ताल से भागा नदी का। लाहौल स्पीति के जिला मुख्यालय केलांग से 7 किमी दूर पत्तन घाटी के टाण्डी गांव के पास दोनों मिल कर चंद्रभागा नदी का रूप ले लेती हैं जो कि जम्मू.कश्मीर में जाकर चेनाब कहलाने लगती है। चंद्र ताल एक अति दुर्गम स्थान है। सर्दियों में तो यहां पहुंचा ही नहीं जा सकता। केवल मई के अंत से अक्टूबर प्रारंभ तक के समय में यह झील गम्य है। निकटतम सुविधा संपन्न स्थान मनाली है जो कि राष्ट्रीय राजमार्ग 21 पर स्थित हिमाचल का एक अति प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है। मनाली से भी आगे रोहतांग पास से होते हुए 7-8 घंटे का सफर करके ही यहां पहुंचा जा सकता है। मनाली से चलने से पहले ईंधन वाहन की मरम्मत आदि व खाने पीने के सामान का पूरा इंतजाम कर लेना चाहिए। रोहतांग पास के आगे लगभग लगभग बिलकुल ही निर्जन क्षेत्र है। रोहतांग दर्रा पार करने के बाद पहला गांव ग्रामफू है जहाँ से एक रास्ता लद्दाख की ओर चला जाता है तथा दूसरा लाहौल स्पीति की ओर। चंद्रताल यहाँ से 50 किमी है। मुख्य सड़क छतड़ू, छोटा दड़ा होते हुए बातल तक है। बातल में कुल दो इमारतें हैं जिनमें से एक है सरकारी विश्राम गृह और दूसरा है 40 साल पुराना चंद्रा ढाबा, जो अपने आप में एक विशिष्ट स्थान है। इस ढाबे को चला रहे दंपत्ति पिछले 40 वर्षों में सैकड़ों पर्यटकों की जान बचा चुके हैं जिसके लिए उन्हें कई सम्मान भी दिए गए हैं। यदि कहा जाए कि चंद्रताल की बोधगम्यता इस ढाबे की मौजूदगी के कारण ही संभव है तो गलत ना होगा क्योंकि इसके अतिरिक्त यहाँ पर दूर दूर तक कोई इंसानी बस्ती नहीं है सुविधाओं का तो कहना ही क्या। इस इलाके में एक पेड़ तक नहीं है जैसा कि इस क्षेत्र के चित्रों में स्पष्ट देखा जा सकता है। बातल से वाहन योग्य एक सड़क भी है जिससे चंद्र ताल 14 किमी की दूरी पर पड़ती है किंतु अगस्त से पहले इस सड़क की हालत प्रायः खराब ही होती है। यहाँ पहुंचने का दूसरा रास्ता कुंजम पास से है जो केवल पैदल ही रास्ता है और वो लगभग 8 किमी है। चंडीगढ़ से शिमला, रामपुर बुशहर, किन्नौर के रास्ते स्पीति घाटी के नाको, किब्बर, काज़ा से होते हुए कुंजम पास या बातल आने के एक लंबे रास्ते का भी विकल्प है।

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