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धर्मक्षेत्र

आज 11 मार्च को है प्रतिपदा शुक्ल : प्रतिपदा से चन्द्रमा पूर्णता की ओर बढ़ता है

सीएन, हरिद्वार। प्रतिपदा प्रथम तिथि है। हिन्दू पंचांग की प्रथम तिथि ‘प्रतिपदा’ कही जाती है। यह तिथि मास में दो बार आती है- ‘पूर्णिमा‘ के पश्चात् और ‘अमावस्या‘ के पश्चात। पूर्णिमा के पश्चात् आने वाली प्रतिपदा को “कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा” और अमावस्या के पश्चात् आने वाली प्रतिपदा को “शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा” कहा जाता है। शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से चन्द्रमा पूर्णता की ओर बढ़ता है, अतः इसे ‘प्रतिपदा’ कहते हैं। शुक्ल पक्ष में सूर्य और चन्द्र का अन्तर 0° से 12° अंश तक होता है। कृष्ण पक्ष में सूर्य और चन्द्र का अन्तर 181° से 192° अंश तक होता है, तब प्रतिपदा तिथि होती है। प्रतिपदा को प्राकृत (अर्ध मागधी) में पडिवदा’, अपभ्रंश में ‘पडिवआ’ या ‘पडिवा’ तथा हिन्दी में ‘परिवा’ या ‘एकम’ कहते हैं। पालि भाषा में इसे ‘पटिपदा’ कहते हैं। कृष्ण प्रतिपदा को चन्द्रमा की प्रथम कला होती है। शुक्ल पक्ष प्रतिपदा में चन्द्रमा अस्त रहता है, अतः इसे समस्त शुभ कार्यों में त्याज्य माना गया है। कृष्ण पक्ष प्रतिपदा में स्थिति एकदम विपरीत होती है प्रतिपदा का शाब्दिक अर्थ ‘मार्ग’ होता है। आरम्भ, प्रवेश या प्रयाण भी इससे चिंहित होता है। ‘प्रति’ का अर्थ है- ‘सामने’ और ‘पदा’ का अर्थ है- ‘पग बढ़ाना’। कृष्ण प्रतिपदा में चन्द्र अपने ह्रास की ओर पग रखता है। प्रतिपदा के स्वामी अग्निदेव हैं। प्रतिपदा को ‘नन्दा’ अर्थात् ‘आनन्द देने वाली’ कहा गया है। रविवार एवं मंगलवार के दिन प्रतिपदा होने पर मृत्युदा होती है, तब इसमें शुभ कार्य वर्जित बताये गये हैं, परन्तु शुक्रवार को प्रतिपदा सिद्धिदा हो जाती है। उसमें किये गये कार्य सफल होते हैं। भाद्रपद महीने की प्रतिपदा शून्य होती है। शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा में शिव का वास श्मशान में होने से मृत्युदायक होता है; अतः इसमें ‘महामृत्युंजय-जप’ का प्रारम्भ, ‘रुद्राभिषेक’, पार्थिव-पूजन आदि नहीं करना चाहिये। परन्तु कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा में शिव-गौरी के सान्निध्य में रहते हैं; अतः उनका पूजनादि इसमें शुभ होता है। अतः कृष्ण पक्ष प्रतिपदा में शिव जी से जुड़े सभी कार्य शुभ माने जाते हैं यदि किसी जातक का जन्म कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा का है तो फल इस प्रकार होगा- जातक धनी एवं बुद्धिमान होगा, कृष्ण पक्ष प्रतिपदा को जन्मे जातक पर उनकी माता की विशेष कृपा दृष्टि रहती है अर्थात् हर अवस्था में माता का आशीर्वाद इन जातको पर हमेशा बना रहता है। जातक चंद्रमा के बलवान होने के कारण मानसिक रूप से भी बलवान होते हैं। कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा को श्री अग्निदेव प्रथम कला का अमृतपान कर स्वयं को पुष्ट करते हैं और शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को वापस चन्द्रमा लौटा देते हैं।

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