धर्मक्षेत्र
आज है ईद उल अजहा का त्योहार: बकरीद के दिन बकरे की कुर्बानी देने का महत्व
आज है ईद उल अजहा का त्योहार: बकरीद के दिन बकरे की कुर्बानी देने का महत्व
सीएन, नैनीताल। इस्लामिक कैलेंडर के 12 वें महीने जुल-हिज्जा के दसवें दिन ईद उल अजहा का त्योहार बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। इसे बकरीद या बकरा ईद भी कहते हैं। मीठी ईद के बाद बकरीद इस्लाम का दूसरा बड़ा पर्व है। इसलिए लोगों को इसका बेसब्री से इंतजार रहता है। मुस्लिम परंपरा के अनुसार इस पर्व में कुर्बानी का महत्व है। इस्लाम धर्म से जुड़े अधिकतर त्योहार चांद पर आधारित होते हैं। यानी चांद का दीदार होने के बाद ही तिथि निर्धारित होती है। ऐसे में इस साल भारत में बकरीद कब बनाई जाएगी, इसे लेकर लोगों में असमंजस की स्थिति है। इस्लामिक कैलेंडर के 12 वें और आखिरी महीने की दसवीं तारीख को बकरीद मनाई जाती है। इसे माह-ए-जिलहिज्जा कहा जाता है। 7 जून को माह-ए-जिलहिज्जा की शुरुआत हुई थी, क्योंकि इसी तारीख को धुल हिज्जा का चांद देखा गया था। ऐसे में माह-ए-जिलहिज्जा के दसवें दिन यानी सोमवार 17 जून 2024 को भारत में ईद उल अजहा यानी बकरीद होगी। भारत के साथ ही 17 जून को ही पाकिस्तान, मलेशिया, इंडोनेशिया, जापान, ब्रूनेई और होंगकोंड में भी बकरीद मनेगी। वहीं सऊदी अरबए संयुक्त अरब अमीरात, कतर, कुवैत, ओमान, जोरडन, सीरिया और ईराक जैसे देशों में एक दिन पहले यानी 16 जून 2024 को ही बकरीद मनाया जाएगा। बकरीद का त्योहार मनाए जाने के पीछे पैगंबर हजरत इब्राहिम की कहानी जुड़ी है। जब अल्लाह ने सपने में उनसे उसकी सबसे प्यारी चीज मांगी तो उन्होंने अल्लाह को अपनी सबसे प्यारी चीज के रूप अपने बेटे को सौंपने का फैसला कर लिया। अपनी आंखों पर पट्टी लगाकर पैगंबर हजरत इब्राहिम ने बेटे की कुर्बानी दे दी। लेकिन जब आंखों से पट्टी हटाया तो बेटा सही सलामत था और कुर्बानी के स्थान पर बकरा था। इसलिए बकरीद के दिन बकरे की कुर्बानी देने का महत्व है। बकरीद के दिन कुर्बानी दी जाती है। लोग नए कपड़े पहनते हैं, पकवान बनाए जाते हैं, मस्जिद में बकरीद की नमाज अदा की जाती है और घर पर रिश्तेदारों का आना-जाना होता है। बकरीद हजरत इब्राहिम के अल्लाह के प्रति अपने बेटे इस्माइल की कुर्बानी की याद में मनाया जाता है। यह इस वाकये को दिखाने का तरीका है कि हजरत इब्राहिम अल्लाह में सबसे ज्यादा विश्वास करते थे। अल्लाह पर विश्वास दिखाने के लिए उन्हें अपने बेटे इस्माइल की बलि कुर्बानी देनी थी। जैसे ही उन्होंने ऐसा करने के लिए अपनी तलवार उठाई, तभी अल्लाह के हुक्म से उनके बेटे की बजाए एक दुंबा भेड़ जैसी ही एक प्रजाति वहां पर आ गई। उनके कुर्बान करने के लिए। आज इसी के आधार पर जानवर की कुर्बानी दी जाती है। इसे तीन भागों में काटा जाता है। एक भाग गरीबों में दान कर दिया जाता है। दूसरा भाग दोस्तों और रिश्तेदारों को दे दिया जाता है। और बचा हुआ तीसरा भाग परिवार खाता है।