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उत्तराखंड : राधा कृष्ण व गोपियों ने कुमाऊं के गोपीवन में की थी गोपीश्वर महादेव की पूजा

उत्तराखंड : राधा कृष्ण व गोपियों ने कुमाऊँ के गोपीवन में की थी गोपीश्वर महादेव की पूजा
सीएन, बागेश्वर।
जनपद बागेश्वर के धपोला शेरा में स्थित गोपेश्वर महादेव की महिमा बड़ी ही अद्भुत व निराली है। ऋषियों ने कहा है जन्म जन्मान्तर के पापों के विनाश के लिए भगवान शिव का यह पावन स्थल परम पूजनीय है। जनपद बागेश्वर के कांडा क्षेत्रान्तर्गत गोपीश्वर महादेव का मंदिर पौराणिक काल से परम पूज्यनीय है। स्थानीय जनमानस में इस मंदिर के प्रति अगाध श्रद्धा है। स्कंद पुराण में गोपीश्वर महादेव की महिमा का अद्भुत वर्णन करते हुए कहा गया है स्मरण व दर्शन से समस्त पापों का हरण हो जाता है। पुराणों के अनुसार गोपीश्वर नामक इस स्थान पर गोपियों ने भगवान शंकर की आराधना करके उत्तम गति प्राप्त की। गोपियों के द्वारा इस स्थान पर शिवजी की तपस्या किये जाने से ही इस स्थान का नाम गोपेश्वर पड़ा। इस स्थल की महिमा इतनी विराट है कि उसे शब्दों में नहीं समेटा जा सकता है। इस क्षेत्र से होकर बहने वाली पवित्र नदी भद्रा की महिमा व भद्रकाली की गाथा गोपेश्वर की गरिमा को दर्शाती है। पुराणों में कहा गया है भद्रा में स्नान कर माँ भद्रकाली के दर्शन करके उसके बाईं ओर गोपेश्वर का पूजन करने से मोक्ष प्राप्त होता है। इसके पादतल से होकर बहने वाली सरस्वती नदी भद्रा में मिलती है। महर्षि भगवान वेद व्यास जी ने गोपीश्वर की महिमा का बखान करते हुए कहा है कि इस स्थान पर भगवान शंकर की पूजा करने से पृत माता महादेव पूर्वजों द्वारा किये गये पाप भी प्रभावहीन होकर क्षय को प्राप्त होते है। शिवजी की आराधना के लिए भूमण्डल में यह भूभाग सर्वोत्तम तथा शिवलोक की प्राप्ति कराने वाला कहा गया है। गोपीश्वर नाथ की अपरंपार महिमा के बारे में ऋषियों की जिज्ञासा को शांत करते हुए स्कंद पुराण में व्यास भगवान ने इस पावन स्थल के बारे में बताया है कि कभी यहां के पावन पर्वतों पर नाग समुदाय ने माता कामधेनु की सेवा की थी। पुराणों में इस भूभाग को नागपुर क्षेत्र कहा गया है। ऊँचे पर्वतों पर विराजमान नाग देवताओं के मंदिर गोपीश्वर की अद्भुत महिमा को उजागर करते है। गोपीश्वर व उसके आसपास के तमाम पर्वत नाग पर्वतों के नाम से प्रसिद्ध है। इन तमाम मंदिरों में आज भी विधिवत नागों का पूजन होता है। नाग पर्वत नागपुर के विषय में अनेक रहस्यमयी दंत कथाएँ आज भी लोगों की जुबां पर सुनी जा सकती हैं। पुराणों ने भी इस विषय में शब्द की प्रमाणिकता को प्रकट करते हुए कहा है कि सतयुग के आरम्भ में ब्रह्मा जी ने सारी पृथ्वी को अनेक खण्डों में विभक्त कर दिया था। विभक्त भूभागों में देवता दानव गन्धर्व अप्सरायें विधाधर तथा भांति.भांति पशु पक्षी आदि को रहने के लिए अनेक स्थान वितरित किये। इसी तरह ब्रह्मा जी ने नागों के लिए हिमालय के आंचल में नागपुर नामक स्थान नियत किया। ब्रह्मा के बनाये गये नियमों को शिरोधार्य मानकर नागों ने यह भूखण्ड प्राप्त किया जो नागपुर के नाम से जाना जाता है। इसी नागपुर में कामधेनु ने नागों की सेवा से संतुष्ट होकर उनसे वरदान मांगने को कहा। इस पर नाग देवता बोले हमें अपने समान ही गोकुल प्रदान करके कृतार्थ कीजिए।ष् कामधेनु से वर पाकर असंख्य गायों को प्राप्त करके उनके चरने के लिए नागों ने गोपीवन की रचना की और उस गोचर भूमि में गायों को चराने एवं उनकी रक्षा करने के लिए नाग कन्याओं को जिम्मेदारी सौंपी गई। गोपीवन गोपीश्वर में गायों को चराने के साथ.साथ नाग कन्यायें गोपीश्वर की आराधना में तत्पर रहती थीं। तभी भगवान भोलेनाथ की लीला के प्रभाव से एक बार उन्हें इस पहाड़ के अग्रभाग की तलहटी पर एक अद्भुत गुफा दिखी। गुफा के समक्ष सरस्वती गंगा के भी दर्शन किए। वहां उन्होंने शिवजी की भी पूजा की यह गुफा वर्तमान में सानि उडियार के नाम से प्रसिद्ध है। मान्यता है कि इसी गुफा में शाडिल्य ऋषि ने भगवान शंकर की तपस्या करके उन्हें संतुष्ट किया था। इस गुफा को देखकर नाग कन्याओं की जिज्ञासा गुफा के रहस्य को लेकर बढ़ गयी। नागराज मूल नारायण की कन्या के साथ नाग कन्याओं ने उसमें प्रवेश की चेष्टा की लेकिन वे असफल हुई। निराश नाग कन्याओं ने भगवान शंकर की स्तुति करते हुए कहा यदि हमारी शिवभक्ति सच्ची है तो हम गुफा को पार कर जायें। भगवान शंकर को आगे करके वे गुफा में प्रवेश कर गईं। उन्हें आशा थी अवश्य ही इस गुफा में भगवान शंकर उन्हें दर्शन देकर कृतार्थ करेंगेए लेकिन उनकी यह आस अधूरी रह गई। इतना ही नही उनकी गायें भी गुम हो गयीं। गायों को ढूढते.ढूंढते भटकते.भटकते नाग कन्याओं दूसरे वन में पहुंच गयीं। उस वन के गोचर भूमि में हरी भरी घास के बीच उन्होंने अपनी गायों को चरते देखा और सोचा ये गाये घास के लोभ में यहां तक पहुंच गयीं। इसी बीच उन्होंने गायों के समुदाय के मध्य तेजोमय भगवान शिव के अलौकिक स्वरुप को देखा। दंत कथाओं के अनुसार गोपीश्वर महादेव का पूजन भगवान श्री कृष्ण की आज्ञा पर पांडवों ने भी की कहा जाता है कि इस स्थान पर राधा कृष्ण ने गोपियों के साथ शिवजी का पूजन किया था किवदंती है कि एक बार किसी पर पर भगवान श्री कृष्ण राधा रानी के साथ अदृश्य हो गये। उनके विरह में व्याकुल गोपियों ने उन्हें काफी खोजा लेकिन वे उन्हें ढूढ़ न सकी तब वे श्रीकृष्ण भगवान के गुरु शांडिल्य ऋषि की शरण में गयी तब शाडिल्य ऋषि यहाँ सनी उडिपार नामक स्थान पर तपस्या कर रहे थे उन्हें ढूढ़ते खोजते गोपिया यहाँ पहुंचीं ऋषि के आदेश पर उन्होंने यहाँ शिवजी का पूजन किया प्रसन्न शिवजी ने गोपियों को दर्शन देकर श्री कृष्ण भगवान व राधा से यही मिलवाया मंदिर में मौजूद भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति आज भी यहाँ है उनके चरणों में गोपियाँ है कुल मिलाकर इस स्थान की महिमा का वर्णन अवर्णनीय है इसे शब्दों में नहीं समेटा जा सकता है किंवदंती है कि इस मंदिर का निर्माण भी गोपियों ने एक ही रात में किया था महादेव का यह स्थान त्वरित फल को प्रदान करने वाला कहा गया है।

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