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कौन कहता है भूकंप से बस ऊंची इमारत गिरती है, आफ्टर शॉक अच्छा संकेत

कौन कहता है भूकंप से बस ऊंची इमारत गिरती है, आफ्टर शॉक अच्छा संकेत
सीएन, नईदिल्ली।
बीते दिनों दिल्ली-एनसीआर में महसूस किए गए भूकंप का केंद्र नेपाल के बझांग ज़िले में था। नेपाल के नैशनल अर्थक्वेक मॉनिटरिंग एंड रिसर्च सेंटर के मुताबिक, 30 मिनट के भीतर कुल सात झटके दर्ज किए गए, जिनमें से पांच झटके आफ्टरशॉक के थे। मुख्य भूकंप के बाद भी कई बार धरती हिलती है, इन झटकों को आफ्टरशॉक नाम दिया जाता है। हालांकि आफ्टरशॉक भूकंप केंद्र के आसपास के इलाके़ में ही अधिक महसूस होता है। भारत के नैशनल रिसर्च सेंटर फॉर सिस्मोलॉजी के मुताबिक रिक्टर स्केल पर नेपाल में आए इस भूकंप की तीव्रता 6.2 मापी गई। इसकी गहराई कम से कम 11 किमी रही होगी। अधिक गहराई से उत्पन्न हुए भूकंप अधिक क्षेत्र को प्रभावित करते हैं, इसलिए इन्हें दिल्ली-एनसीआर तक महसूस किया गया। इन झटकों से दिल्ली में दहशत.सी फैल गई। उत्तरी दिल्ली के जीटीबी नगर में पेइंग गेस्ट में रहने वाले छात्रों की हालत सबसे ख़राब थी। दिल्ली विश्वविद्यालय की छात्रा श्रेया जैन बताती हैं, मैं फर्श पर गद्दा बिछाकर गहरी नींद में सो रही थी, तभी दोपहर करीब 2.30 बजे अचानक कमरा हिलने लगा। मैंने कमरे में दीवारों पर लटकी झालर हिलती देखी तो डर गई। मैं नाइटवियर में थी, वही पहने हुए पीजी के दोस्तों के साथ किसी तरह बिल्डिंग से बाहर भागी। दिल्ली.एनसीआर के सारे शहरों में अफरातफरी थी। जैसे ही लोगों ने अपने घरों को हिलते देखाए बाहर भागे। बाहर निकलते ही देखा कि सोशल मीडिया और चैटिंग ऐप पर हिलते पंखों और दीवारों के विडियो भरे पड़े हैं। सुमित दुबे नोएडा के सेक्टर.77 में एक्सप्रेस जेनिथ सोसायटी में रहते हैं। उन्होंने दोपहर में अपने आठ महीने के बच्चे को झपकी लेने के लिए लिटाया ही था कि सीलिंग पर झूमर हिलता हुआ देखा। वह अपनी बेटी को गोद में लेकर सीढ़ियों की तरफ भागे। एक नवजात बच्चे को गोद में लेकर 12वीं मंजिल से नीचे उतरने में उनकी सांस फूल गई। इस दौरान उन्होंने बच्चे के सिर को तकिये से ढक रखा था। जब तक वह नीचे आए, भूकंप का असर ख़त्म हो चुका था। इन दोनों लोगों के डर की वजह एक ही थी, ये ऊंची बिल्डिंग में रह रहे थे। हम जानते हैं कि ऊंची इमारतों में रहने वाले लोग भूकंप के समय सबसे ज़्यादा दहशत में होते हैं। लेकिन, जानकारों का मत इससे अलग है। उनके अनुसार, ऊंची इमारत के लोग भूकंप से ज़्यादा खतरे में हैं, इसके पीछे कोई लॉजिक नहीं है। सीनियर आर्किटेक्ट मौलश्री जोशी बताती हैं, किसी इमारत के ढहने की आशंका सिर्फ इसलिए नहीं बढ़ जाती कि वह ऊंची है। किसी इमारत को भूकंप से कितना ख़तरा है, यह उसके डिजाइन और उसकी मेंटिनेंस और दूसरे कई फैक्टर पर निर्भर करता है। वह कहती हैं कि अर्थक्वेक.प्रूफ बिल्डिंग बनाना तो संभव ही नहीं है। ऐसे में कम से कम अर्थक्वेक रेजिस्टेंट बिल्डिंग तो हम बना ही सकते हैं। वैज्ञानिकों ने भी इस भूकंप के अध्ययन के बाद कहा है कि दिल्ली-एनसीआर में इस भूकंप का बड़े पैमाने पर कोई ख़तरा नहीं है। क्योंकि भूकंप का केंद्र यहां से काफी दूर हिमालय की नेपाल-अल्मोड़ा फॉल्ट लाइन में था। जो भूकंप आया उसमें मेन शॉक की तीव्रता 6.2 थी, शुरू में इसकी गहराई का अंदाज़ा 5 किमी लगाया गया। बाद में माना जा रहा है कि इसकी गहराई कम से कम 14.15 किमी रही होगी। उसके बाद जो आफ्टर शॉक महसूस हुए उनकी तीव्रता 3.8 ही थी, पर गहराई करीब 15 किमी थी। नैशनल सेंटर ऑफ सिस्मोलॉजी के डायरेक्टर ओपी शर्मा ने बताया कि जहां आफ्टरशॉक आया, वहां करीब 50.60 वर्ग किमी का इलाक़ा भूकंप के लिए सॉफ्ट जोन माना जाता है। यह आफ्टरशॉक एक अच्छा संकेत हैं। इसे हम इस तरह समझ सकते हैं कि भूकंप तब आते हैं, जब टेक्टोनिक प्लेटों में तनाव बढ़ जाता है। जब इन चट्टानों के लिए यह तनाव सहनशक्ति के बाहर हो जाता है तो ये हिल.डुलकर अपना तनाव दूर करती हैं। ऐसे में कई बार चट्टानें टूट जाती हैं, कभी ज़्यादा खिसक जाती हैं, जिसका असर पृथ्वी की ऊपरी सतह पर महसूस होता है। इसे हम भूकंप कहते हैं। इसमें आफ्टरशॉक को अच्छा इसलिए कहा गया है कि टेक्टोनिक प्लेट्स में जितना भी तनाव था, वह आफ्टर शॉक के साथ निकल गया। इससे लंबे समय तक अधिक विनाशकारी भूकंप आने की आशंका अपने आप कम हो जाती है।

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