चम्पावत
यात्रा ब्लॉग : एबाॅट माउंट को दुनिया की सबसे खूबसूरत डरावनी जगह कहा जाता था, पर अब नही
यात्रा ब्लॉग : एबाॅट माउंट को दुनिया की सबसे खूबसूरत डरावनी जगह कहा जाता था, पर अब नही
अमृता पांडे, लोहाघाट। उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में किसी भी ओर चले जाइए, प्रकृति बाहें फैलाकर स्वागत करने को तत्पर रहती है। देवभूमि के ऊंचे ऊंचे पर्वतों में कई देवस्थान हैं तो अजब-गजब किस्से कहानियां लिए रहस्यमय किले और कोठियां भी। काली कुमाऊं में ऐसी ही एक जगह है एबाॅट माउंट। चंपावत के पास स्थित लोहाघाट से पिथौरागढ़ रोड पर आगे बढ़ने पर मरोड़ा खान के पास से एबाॅट माउंट को रास्ता जाता है। रोड सिंगल पर पक्की और ठीक-ठाक है। पूरा रास्ता बांज और देवदार के हरे भरे पेड़ों से आच्छादित है। घने जंगलों में वीरानियों के बीच बढ़े जा रहे थे हम। ऐसे में अगर कोयल की कुहुक या किसी चिड़िया का चहचहाना सुनाई दिया तो मन को सुकून मिलता था। ऊपर पहुंचने पर एक विचित्र खुशनुमा अनुभव होता है कि आप वाह कहे बिना नहीं रह पाते। यह स्थान समुद्र तल से लगभग 6400 फीट की ऊंचाई पर स्थित है और ऊपर तक वाहन जाता है। टाॅप में पहुंचने पर एक बहुत बड़ा मैदान है, जहां पर कई वाहन पार्क किए जा सकते हैं। अगर मौसम साफ हो तो यहां से पंचाचूली, त्रिशूल और कंचनजंगा चोटियां साफ दिखाई देती हैं। इस स्थान को दुनिया की सबसे खूबसूरत डरावनी जगह कहा जाता था। बात में विरोधाभास है लेकिन सच्चाई भी। एक तो घने जंगल के बीच में अवस्थित और ऊपर से कुछ डरावनी कहानियां जो इस स्थान को लेकर प्रचलित हैं। एक समय था जब इस बंगले और इसके आसपास के क्षेत्र को प्रेत आत्माओं का गढ़ माना जाता था। शायद यह समय विशेष की बात रही होगी जब लोगों का भूत-प्रेतों में विश्वास अधिक था। एक तरह से यह प्रतिबंधित क्षेत्र था लेकिन अब कुछ उत्साही प्रकृति प्रेमी यहां पर आने लगे हैं। अधिकतर विदेशी पर्यटक ही यहां पर रात्रि निवास करते हैं। एक दो कोठियों को पर्यटकों के लिए आवास के रूप में विकसित किया गया है। पिछले कुछ समय से यहां पर कुमाऊँ मंडल विकास निगम द्वारा अधिकृत कुछ आवासीय भवन भी पर्यटकों के लिए आरक्षित किए गए हैं। यदि जेब अनुमति दे तो अच्छा है। वरना लोहाघाट, चंपावत शहर में होमस्टे और होटलों के रूप में आवासीय सुविधा उपलब्ध है। हिमालय की तलहटी पर बसी यह सबसे ऊंची, चौड़ी और लंबी पर्वत श्रृंखला बताई जाती है। जैव विविधता से भरे इस पहाड़ को 1920 के आसपास एबाॅट ने खरीद लिया था। उनका पूरा नाम जॉन हैराॅल्ड एबाॅट था। एबाॅट का जन्म 1863 में स्कॉटलैंड में होना बताया जाता है। कालांतर में वह झांसी आ गए और व्यापारिक राजनीतिक गतिविधियां करने लगे। स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों से जूझने पर बेहतर स्वास्थ्य की तलाश में वे पत्नी के संग जब पहाड़ों की तरफ आए तो यह जगह उन्हें बहुत रास आ गई और उन्होंने यहीं पर दुनिया बसाने की ठान ली। एबाॅट की लगन और मेहनत रंग लाई। उनके द्वारा यहां पर वृक्षारोपण किया गया। चाय और सेव बागान विकसित हुए। घने जंगलों के बीच यूरोपियन शैली में निर्मित कई कोठियां भी यहां पर निर्मित हुई जो आज भी मौजूद हैं। जैव विविधता की भरमार यहां पर देखी जा सकती हैं। पीले पीले हिसालु पककर डालों पर लटक रहे थे। काफल पूरी तरह से नहीं पके थे, शायद मौसम का असर होगा। ऊंचाई पर स्थित होने के कारण वहां पर जलवायु ठंडी है और पिछले दिनों हुई बेमौसम बारिश का भी असर होगा। पास ही में यूरोपियन शैली में बना हरी टीन की छत से ढका हुआ एक शानदार बंगला है जिसके मालिक अब संजय गुप्ता जी हैं। वहीं पास में पेड़ों से तोड़कर हमने काफल खाने का आनंद उठाया। एबाॅट ने पत्नी और बच्चों के साथ यहां पर सुखमय जीवन बिताया । पत्नी कैथरीन की मौत 1942 में हुई और इसके 3 वर्ष बाद 83 साल की उम्र में 1945 को एबाॅट की मृत्यु भी रामगढ़ में हो गई। उनकी इच्छा के अनुसार उन्हें रामगढ़ से लोहाघाट लाकर इस स्थान पर दफनाया गया। कुछ अन्य कब्रों के साथ उनकी क़ब्र आज भी यहां पर मौजूद है। वहां पर जाकर महसूस हुआ कि जीवन क्षणभंगुर है। जो लोग यहां पर लेटे हैं, वे भी कभी अपने परिवार और मित्रों के साथ हंसी खुशी प्रकृति के सौंदर्य को निहारने का आनंद लेते होंगे। हमारी तरह बातें करते होंगे। दुःख सुख उनके भी जीवन का हिस्सा होगा। अपार संपत्ति अर्जित करने का सपना उन्होंने भी देखा होगा लेकिन आज शांत भाव से लेटे हैं धरती की गोद में मात्र दो गज ज़मीन में।
पत्नी की मृत्यु के बाद एबाॅट ने उनकी याद में यहां एक चर्च भी बनवाया। जो अब खंडहर के रूप में मौजूद है और भुतहा चर्च कहलाता है। इस तरह का एक बोर्ड भी वहां पर लगा है जिसमें बुरी आत्माओं से बचाने की बात लिखी गई है। कई डरावनी कहानियां भी इस जगह को लेकर चर्चा में हैं,जिनमें ऐबी बंगले की कहानी भी एक है। इस बंगले के मालिक डॉक्टर मॉरिस थे जिन्हें डॉक्टर डेथ के नाम से भी जाना जाता था। यह बंगला बाद में हॉस्पिटल में बदल गया था, जहां पर इस डॉक्टर के पास इलाज के लिए दूर-दूर से लोग आते थे और ठीक भी होते थे। डॉक्टर माॅरिस महत्वाकांक्षी थे। वे जानना चाहते थे कि इंसान की मौत के दौरान दिमाग में क्या हलचल और बदलाव होते हैं। बताते हैं कि वह मरीजों की मौत की भविष्यवाणी भी करते थे और जिस मरीज की मौत निकट होती थी, उसे मुक्ति कोठरी नाम से पहचाने जाने वाले भवन में भेज देते थे और अगले ही दिन उस व्यक्ति की मृत्यु हो जाती थी। बताते हैं कि वे लोगों के अंगों को चीर फाड़ कर अध्ययन करते थे और धीरे-धीरे यह कोठरी मौत की कोठरी के नाम से जानी जाने लगी। लोगों का कहना है कि यहां के जंगलों में उस दौरान दफनाए गए लोगों की हड्डियां मिलती हैं। बात में कितनी सच्चाई है नहीं पता। बाहर के पर्यटक कम आते हैं। लेकिन बर्ड वाचिंग, एडवेंचरस ट्रैकिंग, नेचर वॉक के साथ-साथ हेरिटेज वॉक के लिए भी यह एक मुनासिब जगह है। बड़े से ग्राउंड में रील बनाने वाले युवा, युवतियां, पार्टी करने वाले स्थानीय युवा यहां पर मिले। इस बड़े से मैदान के बारे में कहा जाता है कि एबाॅट अपने बच्चों के लिए छोटे विमान उड़ाने के लिए हेलीपैड बनाना चाहते थे पर किसी कारणवश ऐसा संभव नहीं हो पाया। अलबत्ता क्रिकेट के शौकीनों के लिए ऊंचाई पर स्थित यह एक बेहतरीन पिच है। प्लास्टिक के रैपर और कांच की टूटी बोतलें देख कर मन बहुत व्यथित हो रहा था क्योंकि एबाॅट माउंट का यहां पर बसने का उद्देश्य यहां की सुंदरता और शांति को महसूस करना और संरक्षित करना था। लेकिन इस सुंदर जगह को अय्याशी का अड्डा बनता देख मन में कुछ दर्द और गुबार था। इसी दौरान एक सुखद खबर मिली कि एबट माउंट में एस्ट्रो वीक की शुरुआत 16 मई से हो रही है, जिसमें भ्रमण के साथ-साथ बर्डवाचिंग भी की जायेगी। मोहम्मद आसिफ, सलिल डोभाल अनूप साह, थ्रीश कपूर, प्रदीप पांडे और अजय तलवार जैसे बेहतरीन छायाकारों ने एक बार फिर किसी नेक इरादे से इस सुंदर जगह को आबाद किया है और अपने कैमरे के जादू से बेहतरीन पलों को कैच कर हम सबके सामने रखा है। ऐसा ही कुछ उद्देश्य रहा होगा एबाॅट माउंट का भी इस एरिया को बसाने का। लंबी लंबी पूंछ वाली ब्राॅड बिल और भी बहुत सारी सुंदर चिड़ियां वहां पर हर वक़्त देखने को मिलती हैं। भिन्न-भिन्न पक्षियों के आह्लादित करने वाले स्वर, मुदित करने वाले हाव भाव मन मस्तिष्क में दिलासा देने वाली तरंगे छोड़कर उन्हें को तरोताजा़ कर देते हैं। यहां की नैसर्गिक सुंदरता ही है जो एक शताब्दी बीत जाने के बाद भी पर्यटकों को आकर्षित करती है। रंग बिरंगे पंखों वाली सुंदर तितलियां भी यहां पर देखने को मिलती हैं। वन्य जीवन अत्यंत समृद्ध है। बांज, देवदार, चिनार, बुरांश के घने पेड़ों से आच्छादित यह स्थान किसी स्वर्ग से कम प्रतीत नहीं होता और स्वास्थ्य लाभ करने के लिए बेशकीमती जगह। इस मोस्ट हाॅन्टेड कही जाने वाली जगह का मैंने खूब आनंद उठाया। घने जंगलों के अंदर जाने पर रूहानी आत्माओं का तो नहीं पर जंगली जानवरों का खतरा जरूर महसूस हुआ। अपार प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण इस जगह पर नीरवता और कोलाहल को एक साथ महसूस करना एक शानदार अनुभव रहा।
काफल ट्री से साभार