उत्तरकाशी
त्रिपथगा…खुद में समाई गंदगी को ढोकर ले चली है गंगा
अब अपने दोनों किनारों को छूकर,
बहने लगी है गंगा।।
हिमालय की बर्फ और मिट्टी को,
साथ बहाकर चली है गंगा।।
अब हिमालय के हिम व मिट्टी से,
नई सुगंध से महक रही है गंगा।।
अब अपने रंग रूप को,
नए श्रृंगार में बहने लगी है गंगा।।
तापमान बढ़ने के साथ ही,
तेरा आकार भी बढ़ने लगा है गंगा।।
खुद में समाई गंदगी को,
ढोकर ले चली है गंगा।।
आठ महीनों के इंसान के,
दुष्कर्मों को बहा ले गई गंगा।।
तेरे किनारों की जिस जमीं पर,
वर्षभर हम गंदगी फैलाते थे गंगा।।
उस खाली जमीं को अब,
तुमने वापिस ले लिया है गंगा।।
आज तक तेरे किनारों पर,
फैली गंदगी तो दिख जाती थी गंगा।
जो गंदगी हमारे गुनाहों का,
जीता जागता सबूत थे गंगा।।
अब भी तेरे किनारों पर,
गंदगी फेंकी जाएगी गंगा।।
ये अलग बात है कि गुनाहों का,
सबूत तू साथ बहा ले जाएगी गंगा।।
तेरे को रौंदने वाली दानव मशीनें भी,
किनारों पर शांत हो चली हैं गंगा।।
तेरे किनारे अवैध क्रेशर प्लांटों को,
हटाने की हिम्मत कौन जुटाएगा गंगा।।
अब चार महीनों विस्तार में,
यूं ही निर्मल बहेंगी गंगा।।
लोकेन्द्र सिंह बिष्ट
प्रांत संयोजक गंगा विचार मंच उत्तराखण्ड उत्तरकाशी