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स्वास्थ्य

आयुर्वेद दिवस विशेष : भारतीय उपमहाद्वीप में फैली हैं आयुर्वेद की जड़े

आयुर्वेद दिवस विशेष : भारतीय उपमहाद्वीप में फैली हैं आयुर्वेद की जड़े

प्रो. ललित तिवारी, नैनीताल। भारतीय परंपराएं एवम ज्ञान विलक्षण ही नहीं मानवीय गुणों से परिपूर्ण भी है ।धनतेरस के दिन आयुर्वेद दिवस धनवंतरी जी का जन्मदिन है । पहला आयुर्वेद दिवस 2016 में मनाया गया था। विश्व स्तर पर चिकित्सा के सबसे प्राचीन और रचनात्मक दृष्टिकोणों में से एक आयुर्वेद को बढ़ावा देने और संपूर्ण जीव जगत हेतु मनाया जाता है। आयुर्वेद ( = आयुः + वेद ; शाब्दिक अर्थ : ‘आयु का वेद’) एक ऐसी चिकित्सा प्रणाली है जिसकी जड़ें भारतीय उपमहाद्वीप में फैली हैं। चरक को ‘आयुर्वेद का जनक’ कहा जाता है। ‘चरक संहिता’ में उन्होंने लगभग 340 पौधों और 200 प्रकार के जानवरों का उल्लेख किया है । परंपरा में आयुर्वेद के आदि आचार्य अश्विनीकुमार माने जाते हैं जिन्होने दक्ष प्रजापति के धड़ में बकरे का सिर जोड़ा था। अष्टवर्ग के पौधे खोजे ।अश्विनी कुमार से इन्द्र ने यह विद्या प्राप्त की तथा बाद में धन्वन्तरि को सिखाया। दुनिया की प्राचीनतम चिकित्सा प्रणालियों आयुर्वेद की उत्पत्ति 5,000 साल पहले हुई । आयुर्वेद शरीर, आत्मा और दिमाग में होमोस्टैसिस के संचार के साथ स्वस्थ जीवन और संतुलित आहार का अभ्यास कराती है । चरकसंहिता की रचना दूसरी शताब्दी से भी पूर्व मानी गई है जो आठ भागों में विभक्त है जिन्हें ‘स्थान’ कहा जाता है। प्रत्येक ‘स्थान’ में कई अध्याय हैं जिनकी कुल संख्या 120 है। इसमें मानव शरीर से सम्बन्धित सिद्धान्त सहित अनेकानेक रोगों के लक्षण तथा चिकित्सा वर्णित है। इसके अतिरिक्त भेलसंहिता, जतूकर्णसंहिता, क्षारपाणिसंहिता, हारीत – संहिता आदि प्रसिद्ध आयुर्वेद ग्रन्थ हैं। आयुर्वेद शब्द संस्कृत के अयुर (जीवन) और वेद (ज्ञान) से है। आयुर्वेद, या आयुर्वेदिक चिकित्सा को वेदों और पुराणों में भी सम्माहित किया गया है । अब ये योग सहित अन्य पारंपरिक ज्ञान के साथ एकीकृत है। भारत में जन्मा आयुर्वेद भारतीय उपमहाद्वीप में व्यापक रूप से अपनाया गया है । 90 प्रतिशत भारतीय तथा पश्चिमी दुनिया में पिछले दशक में बहुत लोकप्रिय हुआ है । आयुर्वेद में महत्वपूर्ण है तीन दोष जिन्हे त्रिदोष कहते है ये वात-पित्त-कफ है । आयुर्वेद तीन मूल प्रकार के ऊर्जा या कार्यात्मक सिद्धांतों की पहचान करता है जो हर इंसान में मौजूद हैं। इसे त्रिदोष सिद्धांत कहते है। जब ये तीनों दोष – वात, पित्त और कफ संतुलित रहते हैं तो शरीर स्वस्थ रहता है। आयुर्वेद में, शरीर, मन और चेतना संतुलन बनाए रखने में एक साथ काम करते हैं। शरीर, मन और चेतना की असंतुलित अवस्था ही विकृति है। आयुर्वेदिक के अनुसार हमारा शरीर पांच तत्वों (जल, पृथ्वी, आकाश, अग्नि और वायु) से मिलकर बना है।, वात सूक्ष्म ऊर्जा है, जो अंतरिक्ष और वायु से बनी है। पित्त शरीर की चयापचय प्रणाली के रूप में व्यक्त करता है – आग और पानी से बना है।कफ वह ऊर्जा है जो शरीर की संरचना – हड्डियों, मांस का निर्माण करती है। आयुर्वेदस्वस्थ वजन, त्वचा , बाल ,संतुलित आहार से शरीर को स्वस्थ बनाकर मन को प्रसन्न करता है तथा तनाव कम करता है ।योग, मेडिटेशन, स्वसन ,व्यायाम , मसाज और हर्बल उपचारों का नियमित अभ्यास शरीर को शांत, डिटॉक्सिफाई और कायाकल्प करने में मदद करता है। अवसाद और चिंता को दूर रखने के लिए आयुर्वेद में शिरोधारा, अभ्यंगम, शिरोभ्यंगम, और पद्यभंगम जैसे व्यायाम है तो शरीर के शुद्धिकरण में आयुर्वेद में पंचकर्म में मसाज , तेल मालिश, रक्त देना, शुद्धिकरण से शारीरिक विषाक्त पदार्थों को समाप्त करने का अभ्यास है।रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में कारगर है।आयुर्वेदिक जड़ी बूटियां गिलोय ,आंवला,तुलसी, हल्दी,काली मिर्च रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाती है। आयुर्वेद भारतीय संस्कृति है जो जीवोधारियो को समर्पित

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